Lohri Kab Hai: लोहड़ी का त्योहार मकर संक्रांति से एक दिन पहले मनाया जाता है और इस दिन से माघ मास की शुरुआत भी हो जाती है। लोहड़ी (Lohri) के दिन अग्नि जलाकर परिवार के सभी सदस्य परिक्रमा करते हैं और अग्नि को रवि की फसल भेंट की जाती है। साथ ही परिवार के रिश्तेदारों और प्रियजनों को इस त्योहार की बधाई देते हैं और ताल से ताल मिलाकर नाच गाना करते हैं। आइए जानते हैं कब है लोहड़ी (Lohri) का पर्व और कब व कैसे मनाया जाता है यह पर्व… सिखों और पंजाबियों के लिए लोहड़ी (Lohri) का पर्व बेहद खास माना जाता है। यह पर्व मकर संक्रांति से ठीक एक दिन पहले मनाया जाता है। इस पर्व की तैयारियां कुछ दिन पहले से ही शुरू हो जाती हैं। लोहड़ी (Lohri) के बाद से ही दिन बड़े होने शुरू हो जाते हैं, यानी माघ मास की शुरूआत हो जाती है। यह पर्व दुनियाभर में मनाया जाता है। हालांकि पंजाब, हरियाणा और दिल्ली में ये पर्व बहुत धूमधाम से मनाया जाता है। लोहड़ी (Lohri) की रात को सूर्य धनु राशि से निकलकर मकर राशि में प्रवेश करते हैं, जिसके बाद अगले दिन मकर संक्रांति का त्योहार मनाया जाता है।
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बहन और बेटियों को घर बुलाने काल रिवाज
पंजाबियों के लिए लोहड़ी (Lohri) का पर्व खास महत्व रखता है। जिस घर में नई शादी हुई हो या बच्चे का जन्म हुआ हो, उन्हें विशेष तौर पर लोहड़ी (Lohri) की बधाई दी जाती है। घर में नव वधू या बच्चे की पहली लोहड़ी (Lohri) का बेहद महत्व होता है। इस दिन विवाहित बहन और बेटियों को घर बुलाया जाता है। ये पर्व को बहन और बेटियों की रक्षा और सम्मान के लिए मनाया जाता है। समय के साथ एक सबसे खूबसूरत चीज देखने को मिली है कि परिवार वाले अब पहली लड़की के जन्म पर भी काफी धूमधाम से लोहड़ी (Lohri) का पर्व मनाते हैं।
कब मनाया जाएगा लोहड़ी का पर्व?
मकर संक्रांति (makar sankranti) से एक दिन पहले लोहड़ी (Lohri) का त्योहार मनाया जाता है। सूर्य मकर राशि में 15 जनवरी को सुबह 2 बजकर 43 मिनट में प्रवेश करेंगे इसलिए उदया तिथि को मानते हुए मकर संक्रांति का त्योहार 15 जनवरी दिन सोमवार को मनाया जाएगा। वहीं मकर संक्रांति से एक दिन पहले लोहड़ी (Lohri) का त्योहार मनाया जाता है इसलिए लोहड़ी (Lohri) का त्योहार 14 जनवरी दिन रविवार को मनाया जाएगा। लोहड़ी (Lohri) का त्योहार सूर्यदेव और अग्नि देव को समर्पित है।
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कैसे मनाते हैं लोहड़ी का पर्व?
लोहड़ी (Lohri) का पर्व बहुत धूमधाम से मनाया जाता है। लोहड़ी की रात को खुले स्थान पर लकड़ी और उपले का ढेर लगाकर आग जलाई जाती है और फिर पूरा परिवार आग के चारों ओर परिक्रमा करता है और उसमें नई फसल, तिल, गुड़, रेवड़ी, मूंगफली आदि को अग्नि में डालते हैं। साथ ही महिलाएं लोक गीत गाती हैं और परिक्रमा पूरी करने के बाद एक दूसरे को लोहड़ी की बधाई भी देते हैं। यदि कोई मन्नत पूरी हो जाती है, तब गोबर के उपलों की माला बनाकर जलती हुई अग्नि को भेंट किया जाता है, इसे चर्खा चढ़ाना कहते हैं। इस त्योहार के लिए ढोल नगाड़ों को पहले ही बुक कर लिया जाता है और सभी लोग ताल से ताल मिलाकर नाचते हैं।
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लोहड़ी (Lohri) का त्योहार नई फसल की बुआई और पुरानी फसल की कटाई से जुड़ा होता है। इस दिन से ही किसान अपनी नई फसल की कटाई शुरू करते हैं और सबसे पहले भोग अग्नि देव को लगाया जाता है। अच्छी फसल की कामना करते हुए ईश्वर का आभार व्यक्त किया जाता है। लोहड़ी की अग्नि में रवि की फसल जैसे मूंगफली, गुड़, तिल आदि चीजें ही अर्पित की जाती हैं। साथ ही सूर्य देव और अग्नि देव का आभार व्यक्त किया जाता है और प्रार्थना की जाती है