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क्या देश के बड़े क्षत्रप अब राजनीति से सन्यास लेंगे ?

Political News: सामने लोकसभा चुनाव है और एनडीए -इंडिया गठबंधन के बीच लड़ाई होने की सम्भवना है। यह कोई ममूली लड़ाई नहीं है। गर यह लड़ाई इन्ही दो ध्रुवो के बीच चलती है तो तय मानिये परिणाम चाहे जो भी लड़ाई रोचक होगी और परिणाम भी अबूझ से ही होंगे। इस लड़ाई से पड़े कुछ निर्गुट दल भी ही। कम से कम चर बड़ी पार्टियां तो हैं ही। ओडिश में नवीन पटनायक की सरकार है। तो आंध्र में जगन रेड्डी की सरकार। तेलंगाना में केसीआर की सरकार थी लेकिन अब वहां कांग्रेस की सरकार बन गई है। लेकिन केसीआर की बीआरएस भबि निर्गुट दल में ही है। न एनडीए में और नहीं इंडिया गठबंधन में। इसके बाद एक मायावती भी है। अभी वह भी किसी भी गठबंधन में शामिल नहीं है। अगर इन चार दलों को छोड़ दिया जाए तो देश की हर बड़ी और छोटी राजनीति दो गुटों में सिमट गई है। इसलिए आगे जो कुछ भी होना है वह दिलचस्प होगा ,मजेदार होगा और भर्मित करने वाल भी होगा।
अब इस बीच एक खबर यह चल रही है कि देश के कई बड़े क्षत्रप अवकाश लें को तैयार है यानी रिटायर होने की बात करने लगे हैं। ऐसा हो भी सकता है। लेकिन जिन नेताओं के नाम लिए जा रहे हैं उनकी तरफ से किसी तरह की प्रतिक्रियायें नहीं आयी है। ममता बनर्जी के बारे में खबर आ रही है कि वे अगले साल जनवरी में 69 साल की हो जाएगी और पार्टी के कई लोग कहने लगे हैं कि अब उन्हें पार्टी से अलग होकर काम करना छाइये। यानि रिटायर हो जाना चाहिए और पार्टी की बागडोर भतीजे अभिषेक बनर्जी को सौंप दें चाहिए। लेकिन ममत बनर्जी अभी कुछ भी कहने को तैयार नहीं है। उनके सामने अभी लोकसभा चुनाव है और वह मानती है कि उनके सामने यह उनकी जिंदगी की सबसे चुनती वाला चुनाव है। इस चुनाव में ममता किसी भी सूरत में बंगाल से बीजेपी को हटाने के प्रयास में है। लेकिन क्या यह इतना आसान भी है ?
उधर अभिशेष बनर्जी के समर्थक लगातार यह कहते नजर आ रहे है कि ममता बनारजो को सत्ता अब अभिषेक के हवाले कर देना चाहिए ताकि आगामी विधान सभा चुनाव में बेहतर किया जा सके ,लेकिन अभी ममता इस पर भी उन है। जानकर कह रहे हैं कि बढ़ती उम्र एक वजह तो हो सकती है लेकिन अभी ममता लोकसभा और आगामी विधान सभा चुनाव लड़ने के बाद ही रिटायर का प्लान बन सकती है।


यही हाल मायावती का भी है। कुछ लोगों इ यह कहना शुरू किया है कि मायावती ने अब सबकुछ अपने भतीजे आकाश आनंद को सौपकर रिटायर होना चाहती है। लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं है। यह बात और है कि अपने भतीजे आनंद को 26 राज्यों की जिम्मेदारी दे दी है लेकिन यूपी और उत्तराखंड की जिम्मेदारी आज भू खुद के पास ही राखी हुई है। मयावती जानती है कि पर्त्य लगा लगातरा ग्राफ घटता जा रहा है और पार्टी का जो भी वजूद बच हकै वह इन्ही दोनों राज्यों तक सिमिति है। मयावती यह भी जानती है कि पार्टी अगर उठेगी भी टी इन्ही राज्यों में उठेगी और यही पर फिर से सर्कार बन सकती है। इसलिए अभी पार्टी को आगे बढ़ने की जरूरत है। कहा जा रहा है कि आगामी लोकसभा और आगामी विधान सभा चुनाव तक मायावती खुद के नियंत्रण में ही चुनाव लड़ना चाहती है। ऐसे में अभी रिटायर होने की कोई सम्भावना नहीं है।
तेलंगाना के पूर्व सीम के चंद्रशेखर राव इस बार चुनाव हार गए। इस हर के बाद ही यह खा जाने लगा कि अब वे बढ़ती उम्र की वजह से रिटायर होना चाहते हैं और पार्टी की कमान बेटे को सौपन चाहते हैं। ऐसा हो भी सकता है लेकिन शायद अभी तो नहीं। हालांकि अभी वे गंभीर रूप से घायल है। उनके कमर की एक हड्डी गिरने की वजह से टूट गई है और भी वे इलाजरत है। लेकिन बड़ी बात तो यह भी है कि भी भी वे विधान सभा में विपक्ष ने नेता भी है। पार्टी ने उन्ही को यह जिम्मेदारी दी है। ऐसे में केसीआर भी अभी रिटायर के मूड में नहीं है।


हलाकि देश के काई राज्यों में क्षत्रपों की राजनीति बदली है। महाराष्ट्र में शरद पवार लोकसभा से राज्य सभा पहुँच गए हैं। काफी बूढ़े भी हो गए हैं लेकिन थके नहीं है। उनके भतीजे अजित पवार ने दूसरी पार्टी बना ली है और अभी सत्तारूढ़ दल बीजेपी के साथ सरकार में शामिल है। हो सकता है कि शरद पवार आगे अपनी पार्टी की बागडोर अपनी सांसद बेटी के हाथ में सौप दे। उधर उद्धव शिवसेना का कमान भी आदित्य ठाकरे को मिल सकता है। हालांकि उद्धव ठाकरे अभी भी काफी सक्रिय हैं लेकिन वे भी युवाओं के हवाले पार्टी को सौपने की बात करते रहे हैं। ओडिशा में नवीन पटनायक बी तक चुके हैं और अपनी जगह किसी नेता की तलाश कर रहे हैं ताकि बीजू जनता दाल जिन्दा रह सके। बिहर रजड क कमान पहले ही उनके बेटे के पास जा चूका है। पसवन जी के निधन के बाद लोजपा बंट भी गई और पार्टी का कमान भाई और बेटे के पास जा चुकी है।

Akhilesh Akhil

Political Editor

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