Political News: राजनीति में कब किसके साथ क्या हो जाए यह किसी को कहाँ पता होता है ? क्या कोई जानता था कि मोहन यादव अचानक मध्यप्रदेश के सीएम बन जायेंगे ? कोई नहीं जानता था कि राजस्थान में वसुंधरा राजे के सामने कोई भजनलाल जैसे नेता को सीएम की कुर्सी मिल जाएगी ? लेकिन ऐसा हुआ। आगे भी होगा। पार्टी के सामने कहाँ किसी का बस चलता है ? पार्टी आगे चलती है तो कारवां भी आगे बढ़ता रहता है। पार्टी कमजोर हुई तो खेल ख़राब होता है और पार्टी के बड़े से बड़े नेता भी पार्टी से अलग होते चले जाते हैं।
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लेकिन राजनीति का एक दूसरा सच भी है। कई लोग लाभ देखकर पार्टी बदलते हैं। जो ज्यादा महत्वाकांक्षी होते हैं वे कुछ ज्यादा ही उछल कूद करते हैं। उन्हें लगता है कि उनकी बदौलत ही राजनीति चलती है। देश की राजनीति का भार उनके ऊपर ही है। लेकिन शायद वे यह नहीं जानते कि सबकी किस्मत एक जैसी नहीं होती। सभी मोहन यादव और भजनलाल नहीं होते। बीजेपी के साथ गए कई नेताओं की कहानी अभी काफी कमजोर सी है। बिहार वाले उस आरसीपी सिंह को ही आप देख सकते हैं। आजकल वे कहाँ है किसी को पता नहीं। जबतक जदयू से राज्यसभा सांसद थे मोदी मंत्रिमंडल में मंत्री भी रहे। फिर से जदयू ने सांसद नहीं बनाया तो मंत्री का पद भी चला गया। अब कहाँ है किसी को पता नहीं। मंत्री पद जाने के बाद वे बीजेपी में चले गए। उन्होंने बहुत कुछ ऐलान भी किया था। कहा था कि नीतीश को निपटा देंगे। लेकिन आजकल नालंदा में बैठकर मौन बने हुए हैं। बीजेपी उन्हें अभी कहीं नहीं भेज रही है। उम्र ऐसी नहीं है कि उन्हें संगठन से भी जोड़ा जाए। अभी बिहार में राज्यसभा के चुनाव होने हैं। 6 सीटों पर चुनाव है। बीजेपी के हिस्से में दो सीटें जानी है। लेकिन इस बार भी बीजेपी आरसीपी सिंह को राज्य सभा में शायद ही भेज पाए। कई लोग उम्मीदवार हैं। लोकसभा चुनाव को देखते हुए भाजपा ऐसे लोगों को राज्यसभा में भेजने को तैयार है जो बीजेपी को जातीय लाभ दिला सके। कहा जा रहा है कि आरसीपी सिंह के लोकसभा चुनाव में है।
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बैजयंत पांडा का भी यही हाल है। ओडिशा के रहने वाले हैं और बीजू जनतादल की राजनीति को छोड़कर बीजेपी में आ गए थे। उम्मीद थी कि बीजेपी कोई बड़ा पद देगी। राज्य सभा में भी भेज सकती है। लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। पांच साल गुजर गए पांडा को कुछ भी नहीं मिला। अब कहा जा रहा है कि उन्हें भी इस बार लोकसभा की सीट दी जा सकती है। फिर चुनाव में वे कितना सफल होते है यह भी देखने की बात है। भीतर से पांडा काफी दुखी हैं। आगे चुनाव लड़ते भी हैं या नहीं यह कोई नहीं जानता। यूपी में राजभर और दारा सिंह की कहानी तो सबके सामने है। राजभर पला बदलने में माहिर रहे हैं। वे कई बार बीजेपी के साथ गए और निकले। सपा के साथ भी गए। पिछली दफा सपा के साथ थे लेकिन अब बीजेपी के साथ आ गए। उम्मीद लगाए बैठे थे कि योगी सरकार में उन्हें जगह मिल जाएगी। लम्बा समय हो गया लेकिन कुछ भी नहीं मिला। दारा सिंह का भी यही हाल है। वे भी सपा के साथ गए थे और फिर बीजेपी में आये। चुनाव लड़े और जीते भी लेकिन मंत्री नहीं बन पाए। दोनों दुखी हैं। आगे क्या कुछ करेंगे कौन जानता है। अब सुनने में आया है कि योगी किसी भी सूरत में इन्हे मंत्री बनाने को तैयार नहीं है। तो क्या ये लोग फिर से पाला बदल सकते हैं ?सामने लोकसभा चुनाव जो है।