पूर्वी यूपी से पांच राज्यपालों की नियुक्ति के मायने क्या है ?
राष्ट्रपति मुर्मू द्वारा हालिया 13 राज्यपालों की नियुक्ति की गई हैं जिसमें पांच राज्यपाल पूर्वी उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) से ताल्लुक रखने वाले हो गए हैं!
Lucknow News! राष्ट्रपति मुर्मू द्वारा हालिया 13 राज्यपालों की नियुक्ति के बाद अधिकतर प्रदेशों में राज्यपाल की नियुक्ति तो हो गई है लेकिन जिस तरह से एक ही सूबे से पांच राज्यपालों की नियुक्ति की गई है वह कई राजनीतिक संकेत दे रहे हैं। जिन 13 नए राज्यपालों की नियुक्ति हुई है उसके साथ कुछ पुराने राज्यपालों के नामो पर गौर किया जाए तो पता चलता है कि उनमे पांच राज्यपाल पूर्वी यूपी से आते हैं। एक ही राज्य के एक इलाके से पांच राज्यपाल असंतुलन तो दर्शाते ही है लेकिन इसके राजनीतिक संकेत की ओर इशारा कर रहे हैं। कह सकते हैं कि आगामी लोकसभा चुनाव के मद्दे नजर ऐसा किया गया है। पूर्वी यूपी से अभी पांच राज्यपाल हैं। पूर्वी यूपी में लोकसभा की 35 सीटें है। लगता है कि सरकार इन सीटों को साधने के लिए ही इस इलाके से इतनी संख्या में राज्यपाल की नियुक्ति की है। पिछले 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को पूर्वी यूपी से 32 सीटें हाथ लगी थी लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में इस इलाके में बीजेपी की सीटें कम हो गई थी। कह सकते हैं कि आगामी चुनाव में बीजेपी चाह रही है कि पूर्वी यूपी की सभी सीटों पर उसकी जीत हो ताकि केंद्र में फिर से सरकार की वापसी हो सके।
अभी तक राज्यपालों की नियुक्ति संतुलन बनाकर ही की जाती थी। कोशिश यही रहती थी कि राज्यपालों की नियुक्ति में हर राज्य का योगदान रहे। लेकिन अभी जो देखने को मिल रहे हैं उसमे एक राज्य के एक इलाके से पांच राज्यपाल नियुक्त किये गए हैं जबकि कई राज्यों से एक भी राज्यपाल नहीं बनाये गए। इस आधार पर देखा जाए तो राज्यपालों की नियुक्ति में असंतुलन है। लेकिन सरकार की चाहत के सामने कुछ किया भी नहीं जा सकता। जब चुनावी रणनीति के तहत ही राज्यपालों की नियुक्ति होने लगे तो फिर कोई सवाल कैसा ? मोदी सरकार में इस तरह के फैसले होते रहते हैं।
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हालिया नियुक्त हुए 13 राज्यपालों में दो नाम पूर्वी यूपी से हैं। एक नाम है शिव प्रताप शुक्ल और दूसरा नाम है लक्ष्मण प्रसाद आचार्य का। शिव प्रताप शुक्ल गोरखपुर से आते हैं और वे बीजेपी के कद्दावर नेता है। मोदी सरकार के पहले मंत्रिमंडल में वे वित्त राज्य मंत्री भी थे। इलाके में उनकी अपनी ख़ास पकड़ है और ब्राह्मणो वोटरों के बीच ख़ास पहचान भी। पूर्वांचल में शुक्ल जी आज भी खासे चर्चित हैं। बीजेपी को ब्राह्मण के साथ ही कई और जातियों के वोट दिलाने में शुक्ल जी काफी अहमियत रखते रहे हैं। शुक्ल जी को हिमाचल प्रदेश का राज्यपाल बनाया गया है। उधर , लक्ष्मण प्रसाद आचार्य सिक्किम के राज्यपाल बनाये गए हैं। आचार्य जी वाराणसी इलाके से आते हैं। वाराणसी पीएम मोदी का संसदीय क्षेत्र हैं और आचार्य जी पीएम मोदी के काफी करीब बताये जाते हैं। वाराणसी में इनकी काफी पकड़ है।
बता दें कि इसी पूर्वी यूपी से तीन राज्यपाल या उपराज्यपाल पहले से ही काम कर रहे हैं। मनोज सिन्हा जम्मू कश्मीर के उपराज्यपाल हैं। एक समय वे सूबे के मुख्यमंत्री के उम्मीदवार भी थे। लेकिन संभव नहीं हुआ। योगी मुख्यमंत्री बने तो मनोज सिन्हा को उपराज्यपाल बनाकर जम्मू कश्मीर भेजा गया। पूर्वी यूपी में मनोज सिन्हा की बड़ी हैसियत है और प्रभाव भी। पूर्वांचल के अधिकतर लोग उन्हें अपना नेता मानते रहे हैं। उनकी पहचान सभी धर्मो और जातियों में रही है।
इसी पूर्वांचल से कलराज मिश्र भी आते हैं। वे अभी राजस्थान के राज्यपाल है। बता दें कि कलराज मिश्र और मनोज सिन्हा दोनों गाजीपुर से आते हैं। गाजीपुर से सटा है आजमगढ़। यहां से फगु चौहान आते हैं। चौहान पहले बिहार के राज्यपाल थे अब उन्हें मेघालय भेजा गया है। जबतक चौहान आजमगढ़ की राजनीति करते रहे बीजेपी को लाभ होता रहा। उनकी जमीनी पकड़ भी रही है। वैसे सूबे के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी पूर्वी यूपी से ही आते हैं और पीएम मोदी का संसदीय क्षेत्र भी पूर्वी यूपी का वाराणसी है। ऐसे में देखा जाए इस बार चुनावी जीत के लिए बीजेपी कर समीकरण पर काम करती दिख रही है।
कहा जाता है कि दिल्ली का रास्ता यूपी होकर ही जाता है और यूपी में पूर्वी यूपी को जिसने साध लिया उसकी जीत तय मानी जाती है। ऐसे में यह कहा जा सकता है कि पूर्वी यूपी की 35 सीटों को साधने के लिए इस बार बीजेपी कोई कसर छोड़ना नहीं चाहती।