Morari Bapu Sutak Vivad: मोरारी बापू सूतक विवाद में घिरे, काशी में माफी मांगनी पड़ी
प्रसिद्ध रामकथा वाचक मोरारी बापू इन दिनों एक धार्मिक विवाद में घिर गए हैं। मामला काशी विश्वनाथ मंदिर में दर्शन और रामकथा के आयोजन से जुड़ा है, जो उनकी पत्नी के निधन के कुछ दिन बाद हुआ। धार्मिक परंपराओं के उल्लंघन का आरोप लगाते हुए वाराणसी के संतों और श्रद्धालुओं ने विरोध प्रदर्शन किया और मोरारी बापू से सार्वजनिक माफी की मांग की।
Morari Bapu Sutak Vivad: प्रसिद्ध रामकथा वाचक मोरारी बापू इन दिनों एक धार्मिक विवाद में घिर गए हैं। मामला काशी विश्वनाथ मंदिर में दर्शन और रामकथा के आयोजन से जुड़ा है, जो उनकी पत्नी के निधन के कुछ दिन बाद हुआ। धार्मिक परंपराओं के उल्लंघन का आरोप लगाते हुए वाराणसी के संतों और श्रद्धालुओं ने विरोध प्रदर्शन किया और मोरारी बापू से सार्वजनिक माफी की मांग की।
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सूतक काल में कथा और दर्शन पर विवाद
12 जून को मोरारी बापू की पत्नी का निधन हुआ था। इसके दो दिन बाद, 14 जून को वे काशी पहुंचे और काशी विश्वनाथ मंदिर में दर्शन-पूजन के साथ रामकथा का आयोजन किया। संत समाज और श्रद्धालुओं का कहना है कि परिजन के निधन के बाद सूतक काल (शुद्धिकरण की अवधि) माना जाता है, जिसके दौरान मंदिरों में प्रवेश और धार्मिक अनुष्ठान करना वर्जित होता है। इसी धार्मिक परंपरा के उल्लंघन को लेकर अस्सी घाट और गोदौलिया इलाके में विरोध प्रदर्शन हुआ और मोरारी बापू का पुतला भी फूंका गया।
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संत समाज की कड़ी प्रतिक्रिया
अखिल भारतीय संत समिति के महामंत्री स्वामी जितेन्द्रानंद सरस्वती ने मोरारी बापू पर गंभीर आरोप लगाए। उन्होंने कहा कि “मोरारी बापू ने धर्म को धंधा बना दिया है” और यदि वे स्वयं को वैष्णव परंपरा का मानते हैं, तो उन्हें सूतक की मर्यादा का पालन करना चाहिए था। उन्होंने धार्मिक अनुशासन और परंपराओं के पालन की आवश्यकता पर जोर दिया।
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मोरारी बापू की सफाई और माफी
विवाद बढ़ने पर मोरारी बापू ने व्यासपीठ से सार्वजनिक रूप से माफी मांगते हुए कहा, “अगर किसी को बुरा लगा हो तो मैं क्षमा चाहता हूं। मैं छोटा हूं, आप सब बड़े हैं, बड़ों को क्षमा कर देना चाहिए।” उन्होंने स्पष्ट किया कि वे वैष्णव परंपरा से जुड़े हैं, जहां कथा और भजन को सूतक में वर्जित नहीं माना जाता। उनके अनुसार, “भगवान का भजन और कथा करना आत्मिक सुकून देने वाला है।”
यह विवाद धार्मिक परंपराओं की व्याख्या और व्यक्तिगत आस्था के पालन से जुड़ा है। मोरारी बापू ने अपनी परंपरा का हवाला देते हुए क्षमा मांग ली, लेकिन यह प्रकरण धार्मिक अनुशासन और संत समाज की भूमिका पर एक बार फिर गहन विचार का विषय बन गया है।
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