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2nd Phase Lok Sabha Election Updates: गाजियाबाद और गौतमबुद्धनगर में कम मतदान के पीछे का सच !

2nd Phase Lok Sabha Election Updates: यह तो समय का फेर है। कभी राजनीति दौड़ती नजर आती है तो कभी वही राजनीति आगे बढ़ाने से भी नहीं बढ़ती। कभी पार्टी के नाम पर राजनीति चलती दिखती है तो कभी पार्टी से ऊपर आ चुके नेता अपने नाम के सहारे ही राजनीति को हांकते हैं। और कभी यह भी होता है कि पूरा जोर लगाने के बाद भी राजनीति आगे बढ़ने का नाम तक नहीं लेती।

यही हाल उस जनता का भी है जिसके नाम पर राजनीति का खेल चलता है। कहने को जनता तो सब कुछ जानती है लेकिन कभी -कभी वही जनता आडम्बर के फेर भी फंस जाती है। जनता कभी किसी पार्टी के मोह फांस में चली जाती है तो कभी किसी नेता के मोह जाल में पड़ जाती है। कभी दवंग नेता जनता को ज्यादा प्रिय लगते हैं तो कभी विनम्र लोग जनता के मन को मोह लेते हैं। कभी जातिवादी नेता की खूब पूछ होती है तो कभी धार्मिक आडम्बर वाले नेताओं की टूटी बोलती है। लेकिन यह सब हमेशा नहीं होता। समय के साथ नेताओं के परिधान भी बदलते हैं और उनके बोल भी। ठीक ऐसे ही जनता के मिजाज भी बदलते हैं और उनके चुनावी खेल भी। इसमें कोई कुछ कर तो नहीं सकता।

हम बात कर रहे हैं गाजियाबाद और गौतमबुद्ध नगर सीट के बारे में जहाँ पिछले दिन ही चुनाव संपन्न हुए हैं। चुनाव से पहले तो बीजेपी को लग रहा था कि गाजियाबाद की सभी जनता उसी की है। जभी जातियों के लोग उनके ही है। सभी जातियां भी उनकी ही है। उनकी ही समझ के अनुसार यहाँ के लोग आगे चलते हैं और उनके ही इशारे पर लोग शोर मचाते हैं और शांति भी कायम रखते हैं। लेकिन सच तो ऐसा होता नहीं। जब चुनाव हुए तो सब कुछ साफ़ हो गया। चुनाव से पहले सभी दलों के नेताओं ने यहाँ तक की प्रधानमंत्री मोदी ने भी जनता से खूब मतदान करने की अपील की थी। कहा था कि यह लोकतंत्र का बड़ा पर्व है और इसे उल्लास से सब मनाइये तभी लोकतंत्र जिवंत होगा। लेकिन जनता को नेताओं के ये बोल रास नहीं आये।

गाजियाबाद में इस बार के चुनाव में जनता ने बहुत ही कम मतदान किये हैं। शुरूआती आंकड़े तो 48 फीसदी ही बाये गए थे लेकिन अब पता चल रहा है कि गाजियाबाद के मात्र 49 फीसदी वोटरों ने ही मतदान किये हैं बाकी लोग घर से निकले ही नहीं।

ऐसा आखिर क्यों हुआ ? यही बड़ा सवाल है। पिछले लोकसभा चुनाव में इसी गाजियाबाद में करीब 55 फीसदी वोट मिले थे और वीके सिंह बड़े अंतर से चुनाव जीत सके थे। 2014 के चुनाव में भी कुछ ऐसा ही खेल था लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ। अब कई लोग कह रहे हैं कि बीजेपी को घमंड था कि वीके सिंह को हटाकर किसी गर्ग को टिकट देने पर भी मोदी के नाम पर उसकी जीत हो जाएगी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। राजपूत समाज के लोगों के साथ ही ब्राह्मण समाज के लोगों ने भी गर्ग को वोट नहीं दिया।

राजपूत समाज के लोगों ने तो अभियान भी चले कि जो बीजेपी को हराएगा वह उसे ही वोट करेगा। कह सकते हैं कि मोदी के नाम का कोई डंका नहीं बजा .गाजियाबाद में किसी जीत होगी और किसकी हार होगी यह तो कोई नहीं बता सकेगा। जब चार जून को परिणाम आएंगे तभी कुछ पता चलेगा लेकिन बीजेपी वाले भी कह रहे हैं कि इस बार गाजियाबाद सीट फंस गई है और यह सब अति उत्साह की वजह से ही संभव हुआ है। उधर कांग्रेस की डोली शर्मा का भी क्या होगा यह भी कोई नहीं जानता क्योंकि इस सेट पर बसपा ने भी काफी वोट लिए हैं। संभव है कि वोट काटने की वजह का लाभ अगर बीजेपी को मिल जाए तो पास पलट भी सकता है।

यही हाल गौतमबुद्ध नगर का भी है। वहां से बीजेपी के महेश शर्मा मैदान में रहे हैं। इस बार उनको भी झटका लग सकता है। वहां भी मतदान काफी कम हुए हैं। गौतमबुद्ध नगर में 53 फीसदी ही मतदान हुए हैं। पिछली बार यहाँ 61 फीसदी मतदान हुए थे। इसके भी कई मायने निकाले जा रहे हैं। गौतम बुद्ध नगर सीट से महेश शर्मा का असर तो काफी रहा है लेकिन यह असर शहरी इलाकों तक ही रहा है। ग्रामीण इलाकों में उनके नाम पर किसी ने वोट नहीं डाले हैं। कुछ लोग बीजेपी के नाम पर जरूर मतदान किये हैं लेकिन विपक्षी के उम्मीदवारों को ज्यादा वोट डाले गए हैं। इस सीट पर भी क्षत्रिय मतदाताओं ने बीजेपी को हराने की बात कही थी। क्साहटरीय मतदाता साफ़ कर गए थे चुकी राजपूत समाज को बीजेपी ने अपमान किया है इसलिए इस बार उसे वोट नहीं देना है और महेश शर्मा के खिलाफ भी काफी लोग रहे हैं।

गाजियाबाद और गौतमबुद्ध नगर में कम मतदान से कांग्रेस और बसपा के समर्थक काफी उत्साहित हैं लेकिन उनका यह उत्साह कब तक बना रहता है यह भी देखने की बात होगी। लेकिन एक बात तो साफ़ हो गया है कि इस बार बीजेपी के लिए यह दोनों सीट फंसती नजर आ रही है और ऐसा हुआ तो खेल खराब हो सकता है।

Akhilesh Akhil

Political Editor

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Akhilesh Akhil

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