Election Commission: उत्तराखंड में छह राजनीतिक दलों को मिला कारण बताओ नोटिस, छह वर्षों से नहीं लिया किसी चुनाव में भाग
उत्तराखंड में छह पंजीकृत अमान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों को पिछले छह वर्षों से चुनाव में भाग न लेने पर कारण बताओ नोटिस जारी किया गया है। इन दलों से 21 जुलाई तक जवाब मांगा गया है, अन्यथा डीलिस्टिंग की कार्रवाई हो सकती है। यह कदम राजनीतिक पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने की दिशा में उठाया गया है।
Election Commission: भारत निर्वाचन आयोग के निर्देशों के तहत उत्तराखंड में चुनावी गतिविधियों की निगरानी के क्रम में एक अहम कदम उठाया गया है। उत्तराखंड के मुख्य निर्वाचन कार्यालय ने प्रदेश में सक्रिय माने जाने वाले छह पंजीकृत अमान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों को कारण बताओ नोटिस जारी किया है। इन दलों पर आरोप है कि उन्होंने बीते छह वर्षों से किसी भी चुनाव में भाग नहीं लिया और न ही कोई राजनीतिक गतिविधि या जनहित कार्य सार्वजनिक रूप से दर्ज कराया है।
छह दलों की सक्रियता पर उठे सवाल
मुख्य निर्वाचन अधिकारी कार्यालय से प्राप्त जानकारी के अनुसार, जिन राजनीतिक दलों को नोटिस भेजा गया है, वे न तो विधानसभा और न ही किसी स्थानीय निकाय चुनाव में सक्रिय रहे हैं। साथ ही इन दलों का संगठनात्मक ढांचा, कार्यालय, पदाधिकारी अथवा किसी भी प्रकार की सार्वजनिक या चुनावी गतिविधि सामने नहीं आई है।
चुनाव आयोग के निर्देशों के अनुरूप ऐसे राजनीतिक दलों को चिन्हित किया गया है जो पंजीकृत अमान्यता प्राप्त राजनीतिक दल (Registered Unrecognized Political Parties – RUPPs) के रूप में रजिस्ट्रेशन के बाद भी न्यूनतम आवश्यकताओं को पूरा नहीं कर पा रहे हैं।
15 दिन में देनी होगी स्पष्टीकरण की सूचना
इन सभी छह राजनीतिक दलों को आगामी 21 जुलाई की शाम 5 बजे तक अपना स्पष्टीकरण देने के लिए कहा गया है। यदि निर्धारित समय सीमा के भीतर कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिलता है, तो भारत निर्वाचन आयोग इन दलों को सूची से बाहर करने (डीलिस्टिंग) का निर्णय ले सकता है।
यह कदम देशभर में चुनावी पारदर्शिता और राजनीतिक दलों की जवाबदेही को सुनिश्चित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल मानी जा रही है।
जिन दलों को भेजा गया नोटिस:
भारतीय जनक्रांति पार्टी
हमारी जनमंच पार्टी
मैदानी क्रांति दल
प्रजा मंडल पार्टी
राष्ट्रीय ग्राम विकास पार्टी
राष्ट्रीय जन सहाय दल
इन दलों के बारे में मुख्य निर्वाचन कार्यालय को पिछले कई वर्षों से कोई अद्यतन जानकारी नहीं प्राप्त हुई है। साथ ही निर्वाचन आयोग के दिशा-निर्देशों के अनुसार आवश्यक वार्षिक दस्तावेज, ऑडिट रिपोर्ट या संगठनात्मक विवरण भी आयोग के समक्ष प्रस्तुत नहीं किए गए हैं।
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पंजीकरण की प्रक्रिया और शर्तें
भारत में किसी भी राजनीतिक दल का पंजीकरण लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 29ए के तहत किया जाता है। इसके अंतर्गत राष्ट्रीय, राज्य और अमान्यता प्राप्त दलों को अपनी राजनीतिक पहचान बनाए रखने के लिए कुछ शर्तों को पूरा करना होता है। इनमें सक्रिय राजनीतिक गतिविधि, चुनाव में भागीदारी, पार्टी पदाधिकारियों की सूची, वार्षिक ऑडिट रिपोर्ट, और अन्य प्रशासनिक जानकारी शामिल होती हैं।
यदि कोई दल इन सभी शर्तों का पालन नहीं करता है, तो उसे डीलिस्टिंग यानी सूची से बाहर करने की प्रक्रिया का सामना करना पड़ता है।
राजनीतिक पारदर्शिता की दिशा में अहम कदम
मुख्य निर्वाचन अधिकारी कार्यालय द्वारा की गई यह पहल राजनीतिक व्यवस्था को पारदर्शी और जिम्मेदार बनाए रखने के लिए आवश्यक मानी जा रही है। इससे चुनावों में केवल उन्हीं दलों को मान्यता मिलेगी, जो वास्तविक रूप से जनता के बीच कार्य कर रहे हैं और लोकतांत्रिक प्रक्रिया में सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं।
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चुनाव विशेषज्ञों के अनुसार, देशभर में कई राजनीतिक दल केवल नाम के लिए पंजीकृत हैं, जिनका उपयोग केवल बैंकिंग लाभ, कर लाभ या अन्य गैर-राजनीतिक उद्देश्यों के लिए होता है। ऐसे दल न केवल लोकतंत्र की मूल भावना के विपरीत हैं, बल्कि संसाधनों का दुरुपयोग भी करते हैं।
उत्तराखंड में छह राजनीतिक दलों को जारी किया गया कारण बताओ नोटिस न केवल इन दलों की निष्क्रियता पर सवाल उठाता है, बल्कि यह चुनावी व्यवस्था की सफाई और पारदर्शिता सुनिश्चित करने की दिशा में एक सख्त कदम है। यदि ये दल जवाब देने में विफल रहते हैं, तो भारत निर्वाचन आयोग द्वारा उनकी डीलिस्टिंग की प्रक्रिया शुरू की जा सकती है, जिससे प्रदेश में केवल सक्रिय और जवाबदेह राजनीतिक संगठन ही बने रहें।
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