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Controversy Ramcharitmanas: आखिर क्यों हो उत्तर से लेकर दक्षिण तक रामचरित्रमानस पर विवाद ?

पहले बिहार फिर कर्नाटक और अब यूपी में रामचरित्रमानस पर विवाद शुरू (Controversy Ramcharitmanas) है। यह विवाद अचानक क्यों सामने आ गए किसी को पता नहीं। इस धर्मग्रंथ पर नेताओं ,लेखकों के बोल क्यों निकलने लगे कोई नहीं जानता। अचानक देश के भीतर बहुत से लोग मानस पर सवाल क्यों उठाने लगे कोई नहीं जानता। सवाल है कि जब कोई कुछ जनता ही नहीं तो चर्चा क्यों हो रही है। सब जानते हैं कि हर बोल के पीछे कोई कारण होते हैं और जब नेता कुछ बोले तो उसके पीछे राजनीति होती है। घटिया समाज की पहली पहचा होती है कि सबकुछ राजनीति से तय होने लगती है और फिर समाज का सारा विकास काम रुक सा जाता है। भारत में पिछले कुछ साल से यही राजनीति चलती है। जनता को भी बड़ा मजा आता है।

यूपी में मानस पर विवाद (Controversy Ramcharitmanas) जारी है। सपा नेता स्वामी प्रसाद मौर्या तो हैं नहीं। राजनीति को हांकते हैं। जातीय राजनीति को साधते हैं और चुनावी धरा को बदलने का खेल भी करते हैं। कभी इस उस पार्टी में जाते हैं। ऐसी राजनीति का क्या चरित्र है इस पर कोई सवाल नहीं करता लेकिन गोस्वामी जी ने क्या कुछ लिखा इस पर सबसे ज्यादा टिप्पणी ऐसे ही लोग करते दिख जायेंगे। अभी हाल में ही मौर्य ने तुलसीदास द्वारा रचित रामचरित्रमानस पर सवाल खड़ा किया और कुछ चंदो पर प्रहार भी। उन्होंने कहा कि इस पुस्तक में कुछ ऐसी बाते कही गई है जो किसी ख़ास समाज के लोगों को घायल करती है। ऐसे में इसे बकवास ही कहा जा सकता है। याद रहे बार -बार आजकल मानस के वे दोहे -शूद्र गवार ,ढोल ,पशु नारी —— की चर्चा होती है और इसे सही नहीं माना जाता। मानस का ये दोहा किस प्रसंग से जुड़ा है और किन बातों के लिए इसे पेश किया गया है इसकी अलग -अलग व्याख्या होती है। लेकिन सीधे रूप में देखें तो तो समाज के कुछ वर्ग को इन पक्तियों से आपत्ति भी होती है। सवाल उठते हैं। यही वजह है कि तुलसीदास हर बार सवालों के घेरे में आते हैं और मानस पर हमला होता है।

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यूपी में अब इस पर बहस जारी है ,निशाने पर ब्राह्मण समाज है। इसका राजनीतिक पहलु ये है कि इस साल और अगले साल देश में चुनाव हैं और बीजेपी भी इस पर खूब मजे ले रही है। बीजेपी अबतक राम के नाम पर ही वोट लेती रही है ऐसे में जब राम और रामायण पर कोई हमला हो जाता है तो बीजेपी मुखर हो जाती है। उधर समाज में एक बड़ा तपका राम को भगवान् तो मानता है लेकिन ब्राह्मणो की कारगुजारियों को भी समझता है। वाह जानता है कि अलग -अलग काल खंडो में धर्म ग्रंथों में भी बदलाव किये गए हैं और अपने लाभ के लिए इसमें कई शब्द और दोहे बदले गए हैं। इसमें सच्चाई भी है।

उधर बिहार में अभी कुछ दिन पहल्रे ही राजद नेता और बिहार के शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर भी मानस पर बयान दिया था। बिहार में भी कुछ ऐसा ही देखने को मिला। वहाँ भी बवाल हुआ। राजद नेता ने भी तुलसीदास के उन्हों पंक्तियों को उद्धृत कर हमला किया था। बीजेपी ने बहुत शोर मचाया।
इधर कर्नाटक में भी पहले एक कन्नड़ लेखक ने राम पर कई अभद्र शब्द निकाले। उन्होंने भगवान् राम को आदर्श पुरुष मानने से इंकार किया और उन पर कई तरह के आरोप भी लगाए। शुम्बक की चर्चा की। कर्नाटक में चुनाव होने हैं और बीजेपी इसे भुनाने को तैयार है। उधर यूपी से बिहार तक में अचानक मानस पर होते हमले से जनमानस भले ही परेशान और दुखी हों लेकिन नेताओं की तो चंडी कट रही है। जब इंसान कमजोर होता है तो धरम का सहारा लेता है। और सच तो ये है कोई भी धरम केवल आस्था से ज्यादा कुछ भी नहीं। और आस्था पर भला सवाल कैसे उठाया जा सकता है ?

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