Memories of 15 August 1947: आज पूरे देश में उत्सव का माहौल है। हर घर में तिरंगा लहर रहा है, और स्कूलों में बच्चे गर्व से तिरंगा फहरा रहे हैं और मिठाइयां बाँट रहे हैं। हर जगह खुशी की लहर दौड़ रही है, और “जय हिंद”, “जय भारत”, और “भारत माता की जय” के नारे गूंज रहे हैं। हम सभी एक स्वतंत्र देश के नागरिक हैं, जहाँ हमें अपनी सोच और अपने रंग को स्वतंत्रता से व्यक्त करने का अधिकार है, और हमारे देश के तिरंगे को गर्व से लहराने की आजादी है।
लेकिन मन में यह सवाल उठता है कि 14 और 15 अगस्त 1947 की वह पहली रात और दिन कैसे रहे होंगे, जब हमारा देश आज़ाद हुआ था। हमारे पूर्वजों ने उस ऐतिहासिक दिन को कैसे मनाया होगा? उन्होंने किस तरह से उस मेहनत को महसूस किया होगा, जो उन्होंने अंग्रेजी शासन से आजादी पाने के लिए की थी? और जब उन्होंने पहली बार लाल किले पर हमारे देश का झंडा लहराते हुए देखा होगा, तो उनके दिल में क्या भावनाएँ उमड़ी होंगी? ये सवाल हमें उस समय की ओर ले जाते हैं, जब हमारे पूर्वजों ने आजादी को न सिर्फ महसूस किया होगा, बल्कि उसे पूरे दिल से जिया भी होगा।
एक मशहूर लेखक डोमिनिक लैपीयरे और लैरी कॉलिन्स ने 14 अगस्त 1947 के ऐतिहासिक दिन के बारे में लिखा है कि सरकारी इमारतों, निजी मकानों, और संस्थानों पर लगे अंग्रेजी झंडे को उतारने का काम शुरू हो चुका था। जैसे ही 14 अगस्त की शाम को सूरज डूबा, पूरे देश में यूनियन जैक को उतार कर तिरंगा लहराने की तैयारियाँ शुरू हो गईं। यह वह क्षण था जब अंग्रेजी शासन के प्रतीक चुपचाप इतिहास के पन्नों में दर्ज हो रहे थे। आधी रात को संविधान सभा भवन पूरी तरह से तैयार था, और वह कक्ष जहाँ कभी तिरंगे का अपमान हुआ था, अब गर्व से तिरंगे को सलामी दे रहा था।
लेखक ने अपनी किताब में लिखा है कि 14 अगस्त की सुबह से ही देश के हर शहर और गाँव में जश्न की शुरुआत हो चुकी थी। दिल्ली के लोग अपने घरों से निकलकर साइकिलों, बसों, तांगों, हाथी-घोड़ों पर सवार होकर इंडिया गेट की ओर रवाना हो चुके थे। और पूरे देश में राष्ट्रगान की ध्वनि गूंज रही थी।
स्थिति कुछ ऐसी थी कि हर दिशा से लोग दिल्ली की ओर उमड़ रहे थे। हर जगह बस एक ही नारा गूंज रहा था: “भारत माता की जय!” इस ऐतिहासिक दिन पर जवाहरलाल नेहरू ने लाल किले पर तिरंगा फहराया था, और हमारा देश आजाद हो गया था। हर व्यक्ति इस आजादी का मतलब अपने-अपने तरीके से समझ रहा था। लोगों का विश्वास था कि अब हमारी जमीन, हमारी फसलें, और हमारे संसाधन पूरी तरह से हमारे होंगे। किसानों ने अपनी पत्नियों से कहा कि अब गायें ज्यादा दूध देंगी, क्योंकि अब हम आजाद हो गए हैं। ऐसी अनगिनत बातें थीं, जो हर कोई अपनी-अपनी तरह से महसूस कर रहा था।