Mahakumbh 2025: महाकुम्भ में इस दिन मौन रहकर करें स्नान, मिलेगा चमत्कारिक लाभ
मौन रहने से आध्यात्मिक शक्तियों का विकास होता है, शरीर में ऊर्जा संग्रहित होती है। सम्पूर्ण महाकुम्भ में सबसे शक्तिशाली स्नान, दान, तप, तपस्या हेतु कोई पर्व है, तो वह है माघ मास की अमावस्या। इस तिथि को चुपचाप मौन रहकर मुनियों के समान आचरण पूर्ण स्नान करने के विशेष महत्व के कारण ही माघमास, कृष्णपक्ष की अमावस्या, मौनी अमावस्या कहलाती है।
Mahakumbh 2025: मौन रहने से आध्यात्मिक शक्तियों का विकास होता है, शरीर में ऊर्जा संग्रहित होती है। सम्पूर्ण महाकुम्भ में सबसे शक्तिशाली स्नान, दान, तप, तपस्या हेतु कोई पर्व है, तो वह है माघ मास की अमावस्या। इस तिथि को चुपचाप मौन रहकर मुनियों के समान आचरण पूर्ण स्नान करने के विशेष महत्व के कारण ही माघमास, कृष्णपक्ष की अमावस्या, मौनी अमावस्या कहलाती है।
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शरीर के धुलने का नाम ही स्नान नहीं है, वास्तविक स्नान तो वाक् संयम है और मौन ही वाक् संयम होता है। भगवान श्रीकृष्ण ने श्रीमद्भगवतगीता में वाक्संयम को तप की संज्ञा दी है। मौनव्रत से गंभीरता, आत्मशक्ति तथा वाकशक्ति में वृद्धि होती है। मौन से तात्पर्य है बिना दिखावे के सेवा करना। मौन रहना सभी गुणों में सर्वोपरि है, मौन का अर्थ है संयम के द्वारा धीरे-धीरे इन्द्रियों तथा मन के व्यापार को संयमित करना।
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समस्त सिद्धियों के मूल में मौन ही है। जैसे निद्रा से उठने पर शरीर, मन एवं बुद्धि में नई स्फूर्ति दिखाई देती है वैसे ही मौन रहने पर सर्वदा वही स्फूर्ति शरीर के साथ मन एवं बुद्धि में बनी रहती है। जीवन भर लोभ, मोह, छल, कपट, काम, क्रोध, माया की दलदल में फंसा, कलियुग का श्रेष्ठ आधुनिक मानव कम से कम साल भर में मात्र एक दिन मौन व्रत धारण कर अपनी सूक्ष्म आन्तरित शक्तियों को पुनः संग्रहित कर सकता है।
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धर्मशास्त्रों के अनुसार इस व्रत को मौन धारण करके समापन करने वाले को मुनिपद प्राप्त होता है, जिससे अगले जन्म में व्रतकर्ता मुनि कहलाने का अधिकारी बनता है और अंत में ब्रह्मलोक प्राप्त कर लेता है। मौन व्रत रखने के धार्मिक लाभ होने के साथ ही व्यक्ति के आत्मबल की वृद्धि होती है। साथ ही साथ कम बोलने का अभ्यास भी सरलता से हो जाता है। इस दिन मौन व्रत धारण कर संगम के अक्षय क्षेत्र में स्नान दान, पूजा-पाठ आदि पुण्यकर्म विशेष फलदायक कहे गये हैं।
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पुराणों में मौनी अमावस्या की पावन तिथि में प्रयागराज में स्नान की जो अपार महिमा वर्णित है वह कालिदास के शब्दों में स्वर्ग तथा मोक्षदायनी है। मौनी अमावस्या के दिन श्रद्धालुओं को ब्रह्म मुहूर्त में उठकर, मौनव्रत धारणकर स्नान करना चाहिए। स्नान के पश्चात् अपने तीर्थपुरोहित को गाय आदि का निष्क्रय रूप में दान देना चाहिए। अगर हो सके, तो मौन व्रत का पालन, व्रत कर्ता को पूरे दिन करना चाहिए। मौनव्रत में किसी भी प्रकार के शब्दोच्चार अथवा फुसफुसा कर बात करना भी वर्जित है। मौनव्रत से गंभीरता, आत्मशक्ति तथा वाक शक्ति में वृद्धि होती है। कम बोलने का अभ्यास होने के साथ अधिक बोलने के दोष का निवारण भी हो जाता है। कबीर भी बोलने और मौन में सामंजस्य बनाने को कहते हैं.
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