Mahashivratri 2025: महाशिवरात्रि विशेष, यहां मंदिर के शीर्ष पर त्रिशूल की जगह है पंचशूल, दर्शन मात्र से होता है कल्याण
बाबा बैद्यनाथ धाम झारखंड के देवघर जिले में स्थित है। इसे बारह ज्योतिर्लिंगों में सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। महाशिवरात्रि के अवसर पर देवघर स्थित बाबाधाम में कई धार्मिक अनुष्ठान किए जाते हैं, जिनमें शिव विवाह, चतुष्प्रहार पूजा, सिंदूर दान बेहद खास होते हैं।
Mahashivratri 2025: बाबा बैद्यनाथ धाम झारखंड के देवघर जिले में स्थित है। इसे बारह ज्योतिर्लिंगों में सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। महाशिवरात्रि के अवसर पर देवघर स्थित बाबाधाम में कई धार्मिक अनुष्ठान किए जाते हैं, जिनमें शिव विवाह, चतुष्प्रहार पूजा, सिंदूर दान बेहद खास होते हैं।
देवघर स्थित बाबा बैद्यनाथ मंदिर की बात करें तो यहां सभी 22 मंदिरों पर पंचशूल स्थापित किए गए हैं, जिन्हें महाशिवरात्रि से पहले उतारकर विधि-विधान से शुद्ध किया जाता है और सभी पंचशूलों को फिर से मंदिरों के शिखरों पर स्थापित कर दिया जाता है। इन पंचशूलों का धार्मिक महत्व बेहद खास माना जाता है।
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बाबा बैद्यनाथ धाम के मंदिरों में स्थापित पंचशूल रहस्यों से भरा है। इसे लेकर कई मान्यताएं भी प्रचलित हैं। खास बात यह है कि पंचशूल का संबंध लंका के राजा रावण से भी है। बाबा मंदिर के तीर्थ पुरोहितों का मानना है कि मुख्य मंदिर पर स्वर्ण कलश के ऊपर पंचशूल स्थापित है, यह माता पार्वती के साथ अन्य मंदिरों पर भी है।
बाबा बैद्यनाथ शिवलिंग की स्थापना का श्रेय रावण को दिया जाता है। रावण ने सुरक्षा के लिए लंका के चारों द्वारों पर पंचशूल स्थापित किया था। इससे लंका की रक्षा हुई। रावण पंचशूल की सुरक्षा को तोड़ना जानता था। राम को यह बात पता नहीं थी। लेकिन, विभीषण की मदद से राम लंका पर विजय प्राप्त करने में सफल रहे।
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मान्यता है कि बाबा बैद्यनाथ धाम में स्थापित पंचशूल किसी भी प्राकृतिक आपदा में मंदिरों की रक्षा करता है। पंचशूल मानव शरीर में मौजूद पांच विकारों काम, क्रोध, लोभ, मोह और ईर्ष्या का नाश करता है। इसे मानव शरीर में मौजूद पांच तत्वों का प्रतीक भी माना जाता है। इसके अलावा भी पंचशूल को लेकर कई मान्यताएं हैं।
बाबा बैद्यनाथ धाम मंदिर के तीर्थ पुरोहित प्रभाकर शांडिल्य कहते हैं, ”देवघर स्थित देव महादेव आत्म लिंग हैं। बाबा बैद्यनाथ धाम महादेव शिव और माता शक्ति दोनों का स्थान है। जब भगवान विष्णु माता सती के शरीर का चीर हरण करने लगे तो सती जी का हृदय देवघर में गिरा, उसी विशिष्ट स्थान पर भगवान विष्णु ने बैद्यनाथ धाम की स्थापना की। यह शिव-शक्ति का मिलन स्थल है। यहां के सभी मंदिरों में पंचशूल है, जिसमें दो शूल आधार शक्ति के प्रतीक हैं, यह उस सहारे का प्रतीक है जो शक्ति ने उन्हें (महादेव को) दिया है और त्रिशूल बाबा का प्रतीक है।”
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इसके अलावा पंचशूल को लेकर कई अन्य मान्यताएं भी हैं। धार्मिक ग्रंथों में उल्लेख है कि बाबा बैद्यनाथ धाम स्थित ज्योतिर्लिंग में भगवान शिव के साथ मां शक्ति भी विराजमान हैं। तंत्र साधना के लिए यहां मां शक्ति की पूजा की जाती है। तीर्थ पुरोहितों का कहना है कि शिवपुराण में उल्लेख है कि पंचशूल के दर्शन मात्र से भक्तों द्वारा जाने-अनजाने में किए गए सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। साथ ही सभी फलों की प्राप्ति भी होती है।
महाशिवरात्रि की बात करें तो इस पावन अवसर पर देवघर में चतुष्प्रहर पूजा की जाती है। बाबा को सिंदूर चढ़ाया जाता है, जिससे शिव विवाह की परंपरा पूरी होती है। बाबा को मोर मुकुट चढ़ाया जाता है। अविवाहित लोगों के लिए यह खास होता है, मोर मुकुट चढ़ाने से विवाह में आ रही रुकावटें दूर होती हैं। महाशिवरात्रि पर बाबा का श्रृंगार नहीं किया जाता, रात भर पूजा होती है और महादेव का विवाह संपन्न होता है। पंचशूल के गठबंधन की भी मान्यता है, ऐसा करने से मनोकामना पूरी होती है।
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