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Vaishno Devi: विकास की राह में आजीविका का सवाल, वैष्णो देवी में रोपवे ने घोड़ा-पिट्ठू वालों की उम्मीदों पर फेरा पानी

भारत में आस्था और तीर्थयात्रा का गहरा संबंध है। मां वैष्णो देवी यात्रा न केवल आध्यात्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि हजारों लोगों की आजीविका भी इससे जुड़ी हुई है। हर साल लाखों श्रद्धालु जम्मू-कश्मीर के कटरा से भवन तक की यात्रा करते हैं। इस यात्रा में कई ऐसे लोग होते हैं जो घोड़े, पिट्ठू, और पालकी के सहारे मां के दर्शन तक पहुंचते हैं।

Vaishno Devi: भारत में आस्था और तीर्थयात्रा का गहरा संबंध है। मां वैष्णो देवी यात्रा न केवल आध्यात्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि हजारों लोगों की आजीविका भी इससे जुड़ी हुई है। हर साल लाखों श्रद्धालु जम्मू-कश्मीर के कटरा से भवन तक की यात्रा करते हैं। इस यात्रा में कई ऐसे लोग होते हैं जो घोड़े, पिट्ठू, और पालकी के सहारे मां के दर्शन तक पहुंचते हैं। लेकिन हाल ही में प्रस्तावित रोपवे परियोजना ने इस पूरे पारंपरिक तंत्र को संकट में डाल दिया है।

इस परियोजना को तीर्थयात्रियों की सुविधा के नाम पर शुरू किया गया है, लेकिन इससे स्थानीय सेवा प्रदाताओं में असंतोष और मायूसी देखने को मिल रही है। सवाल उठता है — क्या विकास की राह में हम उन हजारों लोगों की आजीविका को कुर्बान कर रहे हैं, जिनकी पीढ़ियाँ इस व्यवस्था पर निर्भर रही हैं?

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रोपवे परियोजना सुविधा या समस्या?

श्री माता वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड द्वारा प्रस्तावित यह रोपवे परियोजना कटरा से सांझीछत तक बनाई जानी है। लगभग 250 करोड़ रुपये की लागत से बनने वाली यह परियोजना श्रद्धालुओं के लिए यात्रा को आसान और कम समय में पूरी करने का एक जरिया बन सकती है। लेकिन यही सुविधा स्थानीय श्रमिकों के लिए संकट बन गई है। घोड़ा, पिट्ठू, और पालकी सेवा प्रदान करने वाले हज़ारों लोग इस योजना के बाद बेरोजगार होने की कगार पर पहुंच गए हैं। ये सेवाएं पारंपरिक यात्रा मार्ग पर आधारित हैं, और यदि रोपवे शुरू हो जाता है, तो अधिकतर लोग उसका इस्तेमाल करना पसंद करेंगे, जिससे इनके पास काम नहीं रहेगा।

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विरोध और प्रदर्शन

इस स्थिति के विरोध में सैकड़ों पिट्ठू, पालकी और घोड़ा संचालकों ने बीते दिनों हड़ताल की। उन्होंने नारेबाजी की और श्राइन बोर्ड पर पारंपरिक व्यवसाय को नष्ट करने का आरोप लगाया। कई सेवा प्रदाताओं का कहना है कि उन्हें न तो कोई वैकल्पिक रोजगार दिया गया है और न ही कोई मुआवजा प्रस्तावित किया गया है। हड़ताल के दौरान यात्रियों को भारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, क्योंकि बुजुर्गों और शारीरिक रूप से अक्षम श्रद्धालुओं के लिए घोड़े और पालकी एकमात्र सहारा होते हैं।

स्थानीय व्यापारियों की मायूसी

केवल श्रमिक ही नहीं, बल्कि कटरा और रास्ते में स्थित दुकानदार, भोजनालय, और रेस्ट हाउस संचालक भी इस परियोजना से नाखुश हैं। इन व्यापारियों का कहना है कि अगर श्रद्धालु रोपवे से सीधे भवन पहुंचेंगे, तो वे उनके दुकानों के पास रुकेंगे ही नहीं। इससे उनकी बिक्री पर सीधा असर पड़ेगा।
कुछ व्यापारियों ने चेतावनी दी है कि अगर उनकी मांगों को नहीं सुना गया, तो वे भी व्यवसाय बंद करने को मजबूर होंगे।

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सरकार और प्रशासन की भूमिका

श्राइन बोर्ड और प्रशासन का कहना है कि उनका उद्देश्य केवल श्रद्धालुओं की सुविधा को बेहतर बनाना है। लेकिन यह स्पष्ट है कि इस “सुविधा” के चलते हजारों परिवारों की आजीविका खतरे में है।

यह भी देखा गया है कि इन पारंपरिक सेवाओं से अधिकतर लोग अनुसूचित जाति, जनजाति या आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग से आते हैं। उनके लिए यह रोजगार न केवल आमदनी का जरिया है, बल्कि सामाजिक आत्मनिर्भरता का भी प्रतीक है।

वैकल्पिक समाधान की तलाश

समस्या का स्थायी समाधान यह हो सकता है कि सरकार रोपवे के साथ-साथ पारंपरिक मार्ग को भी चालू रखे और घोड़ा-पिट्ठू वालों को लाइसेंस और मान्यता देकर अधिक औपचारिक रूप से जोड़े। इसके अलावा, उन्हें वैकल्पिक रोजगार जैसे होमस्टे, दुकानें, या प्रशिक्षण कार्यक्रमों के जरिये आत्मनिर्भर बनाने का भी प्रयास किया जा सकता है।

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मां वैष्णो देवी यात्रा केवल श्रद्धा की बात नहीं है, यह उन हज़ारों लोगों की जिंदगी है जो इस यात्रा मार्ग से जुड़ी सेवाओं पर निर्भर हैं। जब भी कोई बड़ा विकास कार्य होता है, तो उसका सामाजिक और आर्थिक प्रभाव केवल लाभ तक सीमित नहीं होता।

रोपवे निश्चित रूप से एक आधुनिक सुविधा है और उससे यात्रियों को लाभ होगा, लेकिन यदि इसका दूसरा पहलू हजारों लोगों की बेरोजगारी और पीढ़ियों से चल रहे कार्य का विनाश है, तो यह विकास नहीं बल्कि विस्थापन कहलाएगा।

समय की मांग है कि सरकार और श्राइन बोर्ड विकास और मानवता के बीच संतुलन बनाकर काम करें। तीर्थयात्रा के इस पवित्र मार्ग पर किसी की रोजी-रोटी की आह न पड़े, यही सच्ची सेवा होगी मां वैष्णो देवी की।

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Written By। Kritika Kumari। National Desk। Delhi

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