Indian Economic Growth 2025: भारत की अर्थव्यवस्था वैश्विक अनिश्चितताओं के बीच भी बनी मजबूत, वित्त मंत्रालय की रिपोर्ट में खुलासा
भारत की अर्थव्यवस्था ने वित्त वर्ष 2025 की चौथी तिमाही में बेहतर प्रदर्शन किया है। मार्च 2025 में जीएसटी संग्रह 1.96 लाख करोड़ रुपये तक पहुंचा, जो आर्थिक गतिविधियों की मजबूती को दर्शाता है। पूरे वर्ष में जीएसटी संग्रह में 9.4% की वृद्धि दर्ज की गई है।
Indian Economic Growth 2025: वित्त मंत्रालय द्वारा मंगलवार को जारी की गई मासिक आर्थिक रिपोर्ट में इस बात पर जोर दिया गया है कि भारत की अर्थव्यवस्था वैश्विक स्तर पर जारी अनिश्चितताओं के बावजूद स्थिरता और मजबूती के संकेत दे रही है। रिपोर्ट के अनुसार, यह मजबूती घरेलू मांग, घटती महंगाई, राजकोषीय अनुशासन और मजबूत वित्तीय प्रणाली जैसे कारकों के कारण संभव हो पाई है।
रिपोर्ट में स्पष्ट किया गया है कि हालांकि अंतरराष्ट्रीय बाजार और भू-राजनीतिक परिस्थितियां अभी भी अस्थिर बनी हुई हैं, फिर भी भारत की आर्थिक विकास दर में निरंतरता दिखाई दे रही है। मंत्रालय का मानना है कि अगर निजी क्षेत्र और नीति निर्माता समय पर आवश्यक कदम उठाएं, तो देश की आर्थिक प्रगति और भी अधिक सुदृढ़ हो सकती है।
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निजी निवेश में सतर्कता की जरूरत
रिपोर्ट में कहा गया है कि वैश्विक स्तर पर जारी अस्थिरता और जोखिमों को देखते हुए, निजी कंपनियों को सतर्कता बरतने की आवश्यकता है। अगर ये जोखिम लंबे समय तक बने रहते हैं तो निजी निवेश में गिरावट आ सकती है, जिसका असर रोजगार सृजन और आर्थिक गतिविधियों पर पड़ सकता है। नीति निर्माताओं को चाहिए कि वे अनिश्चितताओं से निपटने के लिए पूर्व तैयारी करें और अर्थव्यवस्था को स्थिर बनाए रखने के लिए आवश्यक नीतिगत कदम उठाएं।
घरेलू संकेतकों में मजबूती के संकेत
रिपोर्ट के अनुसार, वित्त वर्ष 2025 की चौथी तिमाही में भारतीय अर्थव्यवस्था ने बेहतर प्रदर्शन किया है। मार्च 2025 में वस्तु एवं सेवा कर (GST) संग्रहण 1.96 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गया, जो आर्थिक गतिविधियों की मजबूती का संकेत है। पूरे वित्तीय वर्ष के दौरान कुल GST संग्रह 22.1 लाख करोड़ रुपये रहा, जो कि पिछले वर्ष की तुलना में 9.4 प्रतिशत अधिक है।
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भू-राजनीतिक जोखिम और संभावनाएं
हालांकि भू-राजनीतिक तनाव और वैश्विक व्यापार में अनिश्चितताएं भारत के लिए चुनौती पेश करती हैं, लेकिन रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि भारत के पास इन स्थितियों को अवसर में बदलने की क्षमता है। देश चुनिंदा उत्पादों और सेवाओं में अपने तुलनात्मक लाभ का उपयोग कर अंतर्राष्ट्रीय व्यापार और विनिर्माण में अपनी स्थिति को और मजबूत कर सकता है।
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रोजगार और खपत में सुधार की संभावना
आईआईटी दिल्ली की प्रोफेसर सीमा गुप्ता का मानना है कि यदि वर्तमान माहौल में निजी निवेश प्रभावित होता है, तो इसका असर लोगों की आमदनी और उनकी खर्च करने की क्षमता पर पड़ेगा। हालांकि यह प्रभाव तात्कालिक रूप से महसूस नहीं होगा, लेकिन दीर्घकालिक रूप में यह आर्थिक विकास की रफ्तार को धीमा कर सकता है। उन्होंने यह भी उम्मीद जताई कि भारत और अमेरिका के बीच यदि व्यापार कर समझौते पर प्रगति होती है, तो स्थिति में जल्द ही सुधार हो सकता है।
नीति और निवेश का संतुलन आवश्यक
वित्त मंत्रालय की इस रिपोर्ट का निष्कर्ष यह है कि भारत की दीर्घकालिक आर्थिक स्थिरता और वृद्धि को बनाए रखने के लिए निजी पूंजी निर्माण और प्रभावी सार्वजनिक नीतियों के बीच संतुलन जरूरी है। घरेलू सुधारों, बुनियादी ढांचे के विकास और रोजगार सृजन पर केंद्रित रणनीतियों के जरिए भारत वैश्विक अस्थिरताओं के बीच भी लचीली और मजबूत अर्थव्यवस्था के रूप में उभर सकता है।
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