चुनाव आयुक्त अरुण गोयल (Arun Goyal) की मुश्किलें बढ़ती जा रही है। उनकी नियुक्ति को लेकर गैर सरकारी संस्था एडीआर ने सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में चुनौती दी है। यह बात और है कि सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई के लिए सूचीबद्ध तो किया है लेकिन इस मामले की सुनवाई से जस्टिस केएम जोसेफ और जस्टिस नागरत्ना ने खुद को अलग कर लिया है। सुनवाई के दौरान जजों ने एडीआर से पूछा कि अरुण गोयल की चुनाव आयुक्त की नियुक्ति में किन नियमो का उलंघन किया गया है। फिर दो जजों जस्टिस केएम जोसेफ और नागरत्ना ने इस सुनवाई से खुद अलग कर लिया। बाद में सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को दूसरे बेंच को भेज दिया है।
बता दें कि अरुण गोयल (Arun Goyal) की नियुक्ति को लेकर पिछले दिनों काफी बवाल मचा था। इसे जल्दबाजी वाला नियुक्ति कहा गया था। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने इस मसले पर एक अहम् फैसला दिया कि अब से चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति एक कमिटी करेगी जिसमे जिसमे सुप्रीम कोर्ट से चीफ जस्टिस, विपक्ष के नेता और प्रधानमंत्री शामिल रहेंगे। सीजेआई के इस आदेश की काफी सराहना की गई जबकि सत्ता पक्ष इस आदेश पर चुप ही रहा।
उधर, एडीआर ने अपनी याचिका में कहा है कि अरुण गायक की नियुक्ति कानून के मुताबिक नहीं की गई है। यह चुनाव आयोग की सांस्थानिक स्वायत्तता का भी उल्लंघन है। एडीआर ने चुनाव सदस्यों की नियुक्ति के लिए एक तटस्थ और स्वतंत्र समिति के गठन की मांग की है। एडीआर ने याचिका के जरिये केंद्र सरकार और चुनाव आयोग पर स्वयं के लाभ के लिए अरुण गोयल की नियुक्ति करने का आरोप भी लगाया है। कहा जा रहा है कि याचिका में अरुण गोयल की नियुक्ति को रद्द करने की मांग की गई है। जानकार कह रहे हैं कि अगर गोयल की नियुक्ति रद्द होती है तो सरकार को बड़ा झटका लग सकता है। हालांकि यह भी साफ़ है कि गोयल मौजूदा सरकार के प्रति ज्यादा ईमानदार हैं।
एडीआर की तरफ से कोर्ट में चर्चित वकील प्रशांत भूषण पहुंचे थे। सुनवाई के दौरान प्रशांत भूषण (Prashant Bhushan) ने कहा कि गोयल की नियुक्ति प्रक्रिया दुर्भावना पूर्ण और मनमानी थी। देश के 160 अधिकारियों के पुल में से चार अधिकारियों का चयन किया गया था और उनमे से कई गोयल से छोटे थे। भूषण ने कहा कि सरकार द्वारा जो चयन प्रक्रिया अपनाई गई सवालों के घेरे में है। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने दो मार्च को तीन सदस्यों की कमेटी के जरिये नियुक्ति का फैसला सुनाया था और कहा था कि जब केंद्र सरकार कानून बनाकर नियुक्ति की दूसरी व्यवस्था नहीं करती तब तक यह व्यवस्था जारी रहेगी। यही वजह है कि चुनाव आयुक्त गोयल की परेशानी बढ़ सकती है। अगर अदालत ने कोई और फैसला दिया तो सरकार को भी झटका लग सकता है।