Mission Chandrayaan-3: इस देश की कहानी गजब है। कई विरोधाभास भी है। हर राज्य और हर जिले की अपनी कहानी है और कुल मिलाकर भारत की जो तस्वीर असमान आती है उसका सच यही है कि कही अमीरी की चमक है तो कहीं गरीबी की इंतहां! असमानता की खाई इतनी बढ़ी हुई है कि जिसे पाटना किसी के बुते की बात नहीं। हम चांद (Chandrayaan-3) पर भी पहुंच रहे हैं। पूरी दुनिया हमारी जयकार भी कर रही है और दूसरी तरफ हम इतने गरीब, विवश और लाचार हैं कि वही दुनिया हम पर तरह-तरह की रिपोर्ट भी जारी करती है। कह सकते हैं कि भारत अमीरी और गरीबी का एक ऐसा मिश्रित देश है जहां लोकतंत्र के नाम पर सबकुछ होता दिखता है। देश का हर नागरिक एक वोट देने का हकदार तो है लेकिन उनके वोट के बदले में जो उसे मिलता है वह गरीबी है जबकि एक बड़े तपके के हाथ अमीरी लगती है। लोकतंत्र का यह भ्रम वर्षों से चला आ रहा है।
Read: ब्रिक्स सम्मेलन पहुंचे पीएम मोदी को जब पूरी दुनिया से मिलने लगी चंद्रयान की सफलता की बधाइयां
महाराष्ट्र से कुछ चौंकाने वाले आंकड़े सामने आये हैं। इन आंकड़ों को अगर देखें तो कई सवाल भी खड़े होते हैं। आंकड़े बता रहे हैं कि विदर्भ इलाके के दस जिलों में पिछले एक साल के भीतर 1567 किसानों ने आत्महत्या की है। दूसरा आंकड़ा यह है कि इसी इलाके के यवतमाल में पिछले 83 दिनों में 82 किसानों ने अपनी जान दे दी है। बता दें कि ये सभी मौत प्राकृतिक नहीं है। ये मौत गरीबी, बेबसी की वजह से हुई हैं। किसानों ने खुद को मौत के घाट उतार दिया है। और सबसे बड़ी बात तो यह है कि इस मौत में बड़ी संख्या उन महिलाओं की है जिसको लेकर समाज काफी संवेदनशील होता है।
हालांकि यह कोई पहली बार नहीं है कि महाराष्ट्र से इतनी बड़ी आत्महत्या की खबरें आ रही है। यह तो सालों से होता आ रहा है। मजे की बात यह है कि हर साल किसानों की आत्महत्या पर खबरें आती है। सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच भिड़ंत होती है। विपक्ष सवाल करता है और सरकार सब कुछ ठीक करने की बात करती है लेकिन होता यही है कि मरने वालों की संख्या रुकने के बजाय बढ़ती ही जाती है। विदर्भ इलाका किसान बेल्ट के रूप में चिन्हित है। यहां हर तरह की खेती होती है। बागबानी भी की जाती है। कपास की खेती भी होती और गन्ने की खेती से जुड़े काम भी हैं यहां। इसके साथ ही प्याज, आलू समेत कई व्यावसायिक फसलों की भी यहां खेती की जाती है। सरकार किसानों को खेती के लिए कर्ज भी देती है लेकिन कर्ज लौटता कहां है? बैंक वाले किसानों के पास पहुंचते है। और कर्ज के लिए दबाव बनाते हैं। बैंकों से ज्यादा कर्ज वहां के किसान साहूकारों से कर्ज लेते है। उनके ब्याज काफी ऊंचे होते हैं। ब्याज लौटता नहीं और दबाव में किसान खुद या परिवार के साथ मौत की नींद में सो जाते हैं। विदर्भ का सच यही है।
विदर्भ में एक जन आंदोलन समिति भी है। यह समिति किसानों की समस्या को लेकर काम करती है। इस आंदोलन को आगे बढ़ाने वाले नेता हैं किशोर तिवारी। बड़े नेता है और रसूख भी रखते हैं। उन्होंने कहा है कि जो हालत विदर्भ के किसानों के है वह पहले से भी ज्यादा ख़राब है। केवल एक जिले यवतमाल में 83 दिनों के भीतर 82 किसानों ने अपनी जान गंवा दी है। सरकार कुछ कर नहीं रही। इसका जवाब कौन देगा? सामने लोकसभा चुनाव है और सरकार कहती है कि इस देश का किसान खुशहाल है लेकिन विदर्भ में जो रहा है उसे देख कौन रहा है?
किशोर तिवारी कहते है कि किसानों की हालत कितनी खराब है यह केवल विदर्भ के एक जिले की हालत से ही पता चल जाता है । दूसरे राज्यों के किसानों की हालत को सामने लाया जाए तो स्थिति दर्दनाक होगी । तिवारी कहते है कि जिस तरह से किसान आत्महत्या कर रहे है यह सब नरसंहार से कम नहीं है। सरकार को इन बातों को ध्यान में रखने की जरूरत है ।