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जेनेरिक दवाओं को लेकर बड़ा फैसला, क्या हैं जेनेरिक दवाएं, अब से लागू होगा ये नियम

Health News: बीते कई सालों से भारत में बीमारियां अपना पैर तेजी से पसार रही हैं। हर साल कोई न कोई नई बीमारी अपनी दस्तक देती है। तो कभी मानसून अपने साथ बीमारियों की पोटली लेकर आता है। इससे बीमारियों का लगातार बोझ बढ़ता जा रहा है। जिसकी वजह से दवाओं की भी खपत बढ़ती जा रही है और इसी की वजह से दवाओं के दामों में इजाफा देखने को मिलता है। जब दवाओं के दामों में इजाफा होगा तो इसका असर सीधा मरीज की जेब पर पड़ता है। बीमारियों का क्या एक बार अपना किसी को ग्रास बना लिया तो फिर लंबे समय तक टिकी रहती हैं ऐसे में पूरे घर का बजट बिगाड़ देती हैं और कई बार तो कंगाल बनाकर छोड़ती हैं। लेकिन दवाओं की कीमतों पर राहत भरी खबर सामने आई है जिसे जानना बेहद ही जरूरी है। इस आर्टिकल में हम आपको एक नए नियम की जानकारी देंगे। जिससे आपका दवाओं को लेकर बजट बना रहेगा और आपकी जेब कम हल्की होगी।

दरअसल हाल ही में नेशनल मेडिकल कमीशन ने एक नई एडवाइजरी जारी की है। इस एडवाइजरी के मुताबिक अब डॉक्टरों के किसी भी मरीज के प्रिस्क्रिप्शन में जेनेरिक दवाओं को लिखना जरूरी होगा। यदि कोई भी डॉक्टर इस नियम की अवेहलना करता है यानी कि ऐसा नहीं करते हैं तो उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। इतना ही नहीं कुछ मामलों में लाइसेंस भी रद्द किया जा सकता है।

अब आपको ये भी जानना जरूरी होगा कि एनएमसी ने नया नियम बनाया है उसके तहत जेनेरिक दवाएं क्या हैं और कितनी असरदार हैं और ये ब्राडेंड दवाओं से कैसे अलग हैं?

जेनेरिक और ब्रांडेड दवाओं में फर्क
फर्क बस इतना है कि जब कोई भी कंपनी किसी दवा को बनाती है तो वो ब्रांड बन जाती है यानी को वो दवा ब्राडेंड कहलाती है जिस पर कोई भी मरीज पूरा भरोसा करता है। वहीं अगर इसी दवा को कोई छोटी कंपनी बनाती है या फिर हल्के ब्रांड ने बनाया है तो ये जेनेरिक कहलाती हैं। दोनों ही केसों में दवा एक ही होती है। बनाने की प्रक्रिया भी एक ही होती है जिसमें सॉल्ट और केमिकल का प्रयोग किया जाता है लेकिन अलग-अलग दामों में बिकती है वहीं ब्राडेंड दवाओं के प्रचार प्रसार के चलते इनके दामों में काफी बढ़ोत्तरी देखने को मिलती है।

जेनेरिक दवाओं के फायदे
जेनेरिक दवाओं में भी वहीं सॉल्ट होता है एक ही केमिकल होता है। यदि आपको डॉक्टर ने कोई दवा लिखी है तो आप उसका सॉल्ट जरूर चेंक कर लें। ब्रांडेड दवाओं की तुलना में 50 फीसदी छूट होती है। इन दवाओं का प्रचार नहीं किया जाता है। ऐसे में लोगों को सलाह है कि दवा खरीदते समय ब्रांड पर सॉल्ट पर ध्यान दें।

Priyanshi Srivastava

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