बिहार में बहार है ,नीतीशे सरकार है। यह स्लोगन तो दशक से चल रहा है। बिहार की राजनीति भले ही अलग -अलग खेमे में बंटती चली गई लेकिन नीतीश कुमार सीएम की कुर्सी पर डटे रहे। जब जदयू बीजेपी से बड़ी पार्टी कहलाती थी तब भी और जब बीजेपी के सामने कमजोर हो गई तब भी नीतीश कुमार की ठसक बनी रही। अब बिहार की सरकार महागठबंधन के तहत चल रही है। विपक्ष में बीजेपी है लेकिन असली खींचतान राजद और जदयू (JDU-RJD) के बीच ही है।
इन दिनों बिहार में नारेबाजी खूब चल रही है। एक तरफ बीजेपी सरकार पर हमलावर है तो दूसरी तरफ जदयू और राजद में खींचतान। यह खींचतान स्वाभाविक है या रचित यह कौन जाने ! राजनीति को देखा तो जा सकता है लेकिन उसकी तासीर को कैसे समझा जाए ? सीएम कुमार बिहार की यात्रा पर हैं। वे समाधान यात्रा कर रहे हैं। कह रहे हैं कि जनता की समस्यायों का वे समाधान ढूंढ रहे हैं। लेकिन उनकी नजर आगामी लोकसभा चुनाव पर गड़ी है। नीतीश कुमार पीएम मोदी को चुनौती दे चुके हैं। कह चुके हैं कि सब मिलकर मोदी की राजनीति को रोक देंगे। इसी वजह से कुमार पहले बिहार के मिजाज को पढ़ने निकले हैं ताकि पता चल जाए कि 2024 का शंखनाद करने से पहले बिहार में उनकी हैशियत क्या होगी।
बिहार में राजद और जदयू (JDU-RJD) के बीच भी सबकुछ ठीक नहीं है। राजद वाले चाहते हैं कि नीतीश कुमार अब बिहार की जिम्मेदारी छोड़कर दिल्ली चले जाए। वे पीएम की लड़ाई लादेन और बिहार को तेजस्वी चलाये। यह एक तरह की नयी राजनीति है। शर्तों की राजनीति। क्या ऐसी राजनीति चलती है ? क्या इसके कोई दूरगामी परिणाम निकलते हैं ? कदापि नहीं। नीतीश कुमार को कब क्या करना है उन्हें ही पता है। नीतीश की राजनीति को लालू समझते हैं बाकी कोई और नहीं। लालू इलाजरत हैं और नीतीश यात्रा पर। लेकिन बिहार में भौकाल मचा है। राजद वाले नारे गढ़ रहे हैं तो जवाब में जदयू वाले भी नारे के जरिये नीतीश का महिमामंडन। उधर बीजेपी वाले सब देख रहे हैं। उन्हें कोई मौका नहीं मिलता। केवल बयान देते हैं लेकिन कोई असर नहीं होता।
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बिहार के शिक्षामंत्री हैं चंद्रशेखर। पढ़े लिखे हैं लेकिन कभी बोलने में गलत कर जाते हैं। हालांकि कई लोग मानते हैं कि चुकी वे खुद को ज्यादा ग्यानी मानते हैं इसलिए कुछ भी बोलने से परहेज नहीं करते। लेकिन राजनीति के लिए बोल वचन तो मायने रखते हैं। चंद्रशेखर ने एक ट्वीट किया है -तेजस्वी बिहार। इसके जवाब में जदयू वाले नीरज कुमार ने नारा गाढ़ा है -बढ़ता बिहार ,नीतीश कुमार। उधर बीजेपी वाले इस पर खूब तालियां बजा रहे हैं। दो के झगडे में तीसरे को लाभ यहां दिखती तो है लेकिन सफल होती नहीं दिखती। नीतीश कुमार मौजूदा समय में सबसे ज्यादा बीजेपी से ही नाराज है। राजद वाले क्या बोलते हैं इससे उनको दुःख हो सकता है लेकिन उनके निशाने पर बीजेपी ही है।
नारे की कहानी को आगे बढ़ाने वाले चंद्रशेखर अभी रडार पर हैं। वे राजद के भी रडार पर हैं और (JDU-RJD) जदयू के भी। धर्म को लेकर कुछ प्रलाप उन्होंने किया था उसी का जवाब देते -देते राजद वाले परेशान है। रामचरित्र मानस के प्रसंग पर मंत्री जी कुछ बोल गए थे। काबिल बनने का प्रयास किया। बिहार की जनता ने उन्हें ऐसी घुंटी पिलाई है कि अब बिलबिला रहे हैं। तेजस्वी बिहार का नारा गढ़ने के पीछे की यही कहानी है। इसे आप ठकुरसुहाती कह सकते हैं। लेकिन बिहार के महागठबंधन में अभी कोई डर नहीं आता। लालू प्रसाद हजारो मिल दूर बैठे बिहार को देख रहे हैं। आगामी राजनीति को समझ रहे हैं और इधर नीतीश कुमार यात्रा के जरिए बीजेपी को सबक सिखाने का मंत्र ढूंढ रहे हैं।
बिहार की असलियत तो यही है कि जहां से बिहार आगे बढ़ा था ,आज भी वही खड़ा है। जो वहाँ की बुनियादी जरूरत थी आज भी मुँह बाए खड़ी है। बड़े -बड़े दावे चल रहे हैं लेकिन सच यही है कि देश की जनता जिस तरह से पांच किलो अनाज पर मस्त है उसी तरह बिहारी समाज भी पांच किलो अनाज लिए पलायन को मजबूर है। और इसके बाद नारो की राजनीति किसी भ्रम से ज्यादा कुछ भी नहीं। .