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क्या वाकई खड़गे विपक्ष के PM उम्मीदवार हो सकते हैं ?

INDIA Alliance PM Face: राजनीति में कब क्या हो जाए और किसका भाग्य जाग जाए यह कोई नहीं जनता। भला भाग्य को कोई कैसे जान सकता है ? अभी हाल में जिन तीन राज्यों में बीजेपी की जीत हुई है और जो सीएम बने हैं उनके बारे में ही कौन जानता था ? उनकी क्या पहचान थी ? राजनीति के कोई बड़े चेहरे तो हैं नहीं। उनकी कोई बड़ी राजनीति तो है नहीं। कोई जनता में पहुंच भी नहीं। पहचान यही है कि संघ और बीजेपी से उनका जुड़ाव है और वे विधायक हैं। लेकिन भाग्य चमका और सीएम बन गए। कुछ इसी तरह का खेला शिंदे के साथ भी हुआ था। महाराष्ट्र के शिंदे की कहानी तो और भी अद्भुत है। खेल हुआ और सीएम बन गए। पार्टी जाए भार में लेकिन पद तो मिल गया। आगे का भविष्य क्या होगा उसके बारे में किसको चिंता है ? लेकिन वर्तमान में वे प्रदेश के सीएम तो है। ऐसे अनेकों उदाहरण देश के भीतर हैं।

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इंडिया गठबंधन की चौथी बैठक मंगलवार को दिल्ली में हुई है। कुछ लोग इस बैठक को शानदार बता रहे हैं तो कुछ लोग इस बैठक की आलोचना कर रहे हैं। जो लोग इंडिया गठबंधन के साथ खड़े है उनकी नजर अलग हो सकती है और जो लोग इस गठबंधन के आलोचक है उनकी सोंच और समझ कुछ अलग होगी। बीजेपी के समर्थकों को इंडिया गठबंधन की राजनीति भला कैसे भाएगी ? उसे तो देश की सभी समस्याओं के लिए विपक्ष ही दोषी नजर आते हैं। बीजेपी समर्थक मौजूदा सरकार को ईश्वर का वरदान मानते हैं। लेकिन यही सोंच विपक्षी लोगों की नहीं है। सभी अपनी सोंच और तर्क भी रखते है जिस सोंच में तर्क नहीं वह सोच बेकार है। जिस सोंच में विज्ञान नहीं वह निराधार है। जिस सोंच में भविष्य नहीं वह बेकार है।

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इंडिया गठबंधन की बैठक में अचानक कांग्रेस अध्यक्ष खड़गे का नाम आगामी पीएम के लिए ममता बनर्जी ने उछाला। बड़ी बात यह रही कि झट से इस प्रस्ताव का अनुमोदन केजरीवाल ने कर दिया। गजब की राजनीति रही। उधर खड़गे अवाक रह गए , उन्होंने सुना और आगे कुछ और नेता अपनी बात रखते इससे पहले ही उन्होंने साफ -साफ कहा कि अभी किसी को प्रधानमंत्री का चेहरा बनाने की कोई जरूरत नहीं है। बड़ी चुनौती तो यही है कि सबसे पहले बड़ी संख्या में सांसदो को चुना जाए। लोकतंत्र में यही होता भी है। पीएम का चुनाव सांसद करते हैं। इसलिए हमारा लक्ष्य अधिक से अधिक सांसद बनाने का है।

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मामला थोड़ा ठंडा हुआ। फिर कुछ खुसुर फुसुर बाते भी होने लगी। जिस नेता के बगल जो नेता बैठे थे सब एक दूसरे को ताकने लगे। कोई कुछ बोलता ही नहीं। थोड़ी देर के बाद सबकी तन्द्रा भांग हुई फिर आगे की कार्रवाई होने लगी।
अब सवाल है कि आखिर ममता ने यह सब क्यों किया ? एक दिन पहले तक तो उनका बयान यही आया था कि पहले सब मिलाकर चुनाव लड़ेंगे और फिर चुनाव के बाद पीएम उम्मीदवार तय होगा। फिर अचानक बैठक में ममता ने यह सब क्यों बोली ? जानकार कहते हैं कि यह सब एक राजनीति का हिस्सा है। ममता ने जाबुझकर यह खेल किया। एक तो राहुल को काटने के लिए दलित कार्ड खेला गया और दूसरी बात यह कि खड़गे से ज्याद अनुभवी नेता अभी देश के भीतर कोई है नहीं। वे दलित भी हैं और देश और समाज को भी जानते हैं। कहने वाले तो यह भी कहते हैं कि ममता ने एक दिन पहले ही केजरीवाल से मुलाकात की थी। जाहिर है यह सब आगे की राजनीति को दर्शाता है।

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एक बात तय है कि खड़गे आगे क्या करेंगे यह तो कोई नहीं जानता। इस गठबंधन की अगली राजनीति क्या होगी यह भी कोई नहीं जानता। लेकिन खड़गे का नाम उछलने से बीजेपी की परेशानी बढ़ गई है। बीजेपी के भीतर यह मंथन जारी है कि अगर खड़गे जैसे दलित नेता को विपक्ष ने आगे बढ़ा दिया तो उसका सारा खेल ही खराब होगा। वैसे भी राहुल गांधी पीएम की रेस में नहीं है। यह बीजेपी और संघ के लोग जबरन यह कहते हैं कि राहुल पीएम बनना चाहते हैं। लेकिन सच यह नहीं है। लेकिन खड़गे ने अपनी तैयारी कर ली तो देश की राजनीति बदल जाएगी। विपक्षी गठबंधन का असली खेल भी तो यही है।

Akhilesh Akhil

Political Editor

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