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Dhanteras 2022: धनतेरस को बन रहे बेहद ही शुभ संयोग, जानें पूजा का शुभ मुहूर्त, विधि और महत्व

नई दिल्ली: धनतेरस (Dhanteras 2022) का त्योहार इस बार बेहद शुभ संयोग लेकर आ रहा है, धनतेरस दिवाली से दो दिन पहले मनाई जाती है, इसे धनत्रयोदशी भी कहते हैं। और धनतेरस पर देवताओं के वैद्य माने जाने वाले भगवान धनवंतरी की पूजा करते हैं और प्रदोष काल में यम के नाम दीपदान किया जाता है। साथ ही धनतेरस के दिन सोना, चांदी, बर्तन, वस्त्र, वाहन, भूमि, चल-अचल संपत्ति खरीदना बहुत शुभ माना जाता है। इन वस्तुओं की खरीदारी से संपन्नता और समृद्धि आती है… तो, आइए जानते हैं धनतेरस का दिन, मुहूर्त और शुभ योग।   

धनतेरस के दिन पूजा का शुभ मुहूर्त

प्रदोष काल: शाम 5:52 मिनट से शुरू और  रात 8 : 24 मिनट तक

वृषभ काल: शाम 7:10 मिनट से शुरू और  रात 9 : 6 मिनट तक

इन बर्तनों की खरीददारी

धनतेरस (Dhanteras 2022) के दिन चांदी का बर्तन खरीदना बहुत शुभ माना जाता है, वहीं जो लोग चांदी का बर्तन खरीदने में सक्षम नहीं हैं वे इस दिन स्टील या पीतल से निर्मित बर्तन को खरीद सकते हैं और इस दिन जिस भी बर्तन की खरीददारी करें उस पर स्वास्तिक का चिन्ह बनाकर उसमें मिष्ठान्न का भोग लगाकर भगवान धनवंतरि के प्रतिमा के सामने रखें।

इन चीजों का खरीदना होता है शुभ

धनतेरस (Dhanteras 2022) के दिन सोना, चांदी, भुमि, भवन और नए वाहन खरीदना बहुत शुभ माना जाता है, ऐसी मान्यता है कि, जो लोग धनतेरस के दिन इन चीजों की खरीददारी करते हैं उन पर मां लक्ष्मी और भगवान धनवंतरि दोनों की कृपा प्राप्त होती है और वे पूरे साल खुशहाल रहते हैं।

धनतेरस का महत्व

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार धनतेरस के दिन समुद्र मंथन के दौरान भगवान धन्वंतरि, भगवान कुबेर और मां लक्ष्मी अमृत कलश लेकर पैदा हुए थें. ऐसे में इस दिन इन लोगों की पूजा करने से धन दौलत में कभी कमी नहीं होती है.

ऐसे हुई धनतेरस मनाने की शुरुआत

धनतेरस (Dhanteras 2022) मनाए जाने के पीछे एक अन्य पौराणिक कथा यह भी है कि कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी की तिथि पर देवताओं के कार्य में बाधा डालने के कारण भगवान विष्णु ने असुरों के गुरु शुक्राचार्य की एक आंख फोड़ी थी। इस कथा के अनुसार, देवताओं को राजा बलि के अत्याचार से मुक्त कराने के लिए भगवान विष्णु ने वामन के अवतार में प्रकट हुए लेकिन शुक्राचार्य ने वामन रूप में भगवान विष्णु को पहचान लिया और राजा बलि से बोले कि ‘वामन दान में कुछ भी मांगे तो मत देना, वामन साक्षात भगवान विष्णु हैं जो देवताओं की सहायता के लिए तुमसे सब कुछ छीनने आए हैं।’ हालांकि राजा बलि ने शुक्राचार्य की बात नहीं मानी।

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जानिए क्या है पूरी कहानी?

वामन भगवान द्वारा मांगी गई तीन पग भूमि, दान करने के लिए कमंडल से जल लेकर संकल्प लेने लगे। बलि को दान से रोकने के लिए शुक्राचार्य राजा बलि के कमंडल में लघु रूप धारण करके प्रवेश कर गए। इससे कमंडल से जल निकलने का मार्ग बंद हो गया। वामन भगवान शुक्रचार्य की चाल को समझ गए। भगवान वामन ने अपने हाथ में रखे हुए कुशा को कमण्डल में इस तरह रखा कि शुक्राचार्य की एक आंख फूट गई। शुक्राचार्य छटपटाकर कमण्डल से बाहर आ गए। इसके बाद बलि ने तीन पग भूमि दान करने का संकल्प ले लिया।

तब भगवान वामन ने अपने एक पैर से पूरी पृथ्वी को नाप लिया और दूसरे पग से अंतरिक्ष को। तीसरा पग रखने के लिए कोई स्थान नहीं होने पर बलि ने अपना सिर वामन भगवान के चरणों (Dhanteras 2022) में रख दिया। बलि दान में अपना सब कुछ दे दिया और इस तरह बलि के भय से देवताओं को मुक्ति मिली और बलि ने जो धन-संपत्ति देवताओं से छीन ली थी उससे कई गुना धन-संपत्ति देवताओं को मिल गई। इस उपलक्ष्य में भी धनतेरस का त्योहार मनाया जाता है।

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