क्या है अघोर पंथ, जाने कैसे होती है इनकी साधना?
नई दिल्ली: भगवान शिव के पांच रूपों में से एक रूप है अघोर रूप, जो हमेशा से लोगों की जिज्ञासा का विषय रहा है। आज हम आपको बताएगें अघोरियों के जीवन का वो सच जो जितना कठोर है, उतना ही रहस्यमयी भी। अघोर पंथ हिंदू धर्म का वो संप्रदाय है जिसका पालन करने वालों को अघोरी कहते हैं। अघोर पंथ की उत्पत्ति के काल के बारे में अभी निश्चित प्रमाण नहीं मिले हैं, परन्तु इन्हें काल्पानिक संप्रदाय के समकक्ष मानते हैं। ये भारत के प्राचीनतम धर्म “शैव” (शिव साधक) से संबधित है।
अघोरियों को इस पृथ्वी पर भगवान शिव का जीवित रूप भी माना जाता है। अघोरी यानी बहुत सरल और सहज जिसके मन में कोई भेदभाव नहीं हो, जो हर चीज में समान भाव रखता है। ये सड़ते जीव के मांस को भी उतना ही स्वाद लेकर खाते हैं जितना स्वादिष्ट पकवानों को स्वाद लेकर खाया जाता है। अन्य साधुओं के लिए मांस, मदिरा या शारीरिक संबंध जैसी चीजें पूरी तरह निषेध होती हैं लेकिन अघोरी या तंत्र साधकों द्वारा की जाने वाली अराधना की यह मुख्य शर्ते होती हैं। अघोरियों के दृष्टिकोण से मांस का सेवन यह साबित करता है कि सीमा शब्द उनके लिए मायने नहीं रखता और सब कुछ एक ही धागे से बंधा हुआ है।इसलिए वे इंसान के मांस के साथ-साथ उसके रक्त का भी सेवन करते हैं।
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बहुत से अघोरी अपनी साधना पूरी करने के लिए मृत शरीर के साथ संभोग भी करते हैं और साथ ही स्वयं मदिरा का सेवन कर अपने आराध्य को भी अर्पण करते हैं। ये मूलत: तीन तरह की साधनाएं करते हैं- शिव साधना, शव साधना और श्मशान साधना।
शिव साधना में शव के ऊपर पैर रखकर खड़े रहकर साधना की जाती है। बाकी तरीके शव साधना की ही तरह होते हैं। इस साधना का मूल शिव की छाती पर पार्वती द्वारा रखा हुआ पैर है। ऐसी साधनाओं में मुर्दे को प्रसाद के रूप में मांस और मदिरा चढ़ाई जाती है।
शव और शिव साधना के अतिरिक्त तीसरी साधना होती है श्मशान साधना, जिसमें आम परिवारजनों को भी शामिल किया जा सकता है। इस साधना में मुर्दे की जगह शवपीठ (जिस स्थान पर शवों का दाह संस्कार किया जाता है) की पूजा की जाती है। उस पर गंगा जल चढ़ाया जाता है। यहां प्रसाद के रूप में भी मांस-मदिरा की जगह मावा चढ़ाया जाता है।