Do-or-die battle of UPNL employees: देहरादून में आज उपनल कर्मचारी संयुक्त मोर्चा अपनी नियमितीकरण की मांग को लेकर सचिवालय कूच करने जा रहा है। बड़ी संख्या में उपनल कर्मचारी इस रैली में भाग लेंगे, जो सचिवालय का घेराव कर सरकार के सामने अपनी मांगे रखने का इरादा रखते हैं। मोर्चा ने इस महारैली में अधिक से अधिक उपनल कर्मचारियों से शामिल होने की अपील की है और इसे अपनी “आर-पार की लड़ाई” के रूप में देखा जा रहा है।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला: संघर्ष का मुख्य कारण
उपनल कर्मियों के इस आंदोलन का प्रमुख कारण 15 अक्टूबर को आया सुप्रीम कोर्ट का फैसला है। पिछले महीने, सुप्रीम कोर्ट ने प्रदेश सरकार द्वारा उपनल कर्मचारियों के नियमितीकरण के खिलाफ दायर एसएलपी को खारिज कर दिया था। इससे पहले 2018 में नैनीताल हाईकोर्ट ने उपनल कर्मियों के पक्ष में नियमितीकरण का निर्णय दिया था, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने भी बरकरार रखा। लेकिन इसके बावजूद, प्रदेश सरकार द्वारा इस फैसले को लागू नहीं किया गया है। उपनल कर्मियों का आरोप है कि सरकार की इस उदासीनता के कारण वे अपने अधिकारों से वंचित हो रहे हैं, और अब उन्होंने आर-पार की लड़ाई का ऐलान किया है।
आज का कार्यक्रम: महारैली और सचिवालय का घेराव
आज की महारैली का नेतृत्व उपनल संयुक्त मोर्चा और महासंघ के पदाधिकारियों द्वारा किया जाएगा। महारैली के दौरान उपनल कर्मी सचिवालय का घेराव करेंगे और सरकार से नियमितीकरण की मांग करेंगे। इसके लिए मोर्चा और महासंघ के पदाधिकारियों ने कई विभागों में जाकर कर्मचारियों के साथ बैठकें कीं और उन्हें इस आंदोलन में शामिल होने के लिए प्रेरित किया।
आपातकालीन सेवाओं पर संकट की चेतावनी
मोर्चा और महासंघ के पदाधिकारियों ने चेतावनी दी है कि अगर सरकार ने जल्द ही उनकी मांगें नहीं मानीं, तो उन्हें अनिश्चितकालीन हड़ताल पर जाने के लिए मजबूर होना पड़ेगा। महासंघ के कार्यकारी प्रदेश अध्यक्ष महेश भट्ट और महामंत्री विनय प्रसाद ने कहा है कि 11 नवंबर के बाद प्रदेश की आपातकालीन सेवाओं, जैसे ऊर्जा, चिकित्सा और परिवहन, को पूर्ण रूप से बंद कर दिया जाएगा। इससे राज्य में आपातकालीन सेवाओं पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है, जिससे आम जनता को भी परेशानी का सामना करना पड़ेगा।
कर्मचारी संगठनों का आक्रोश और सरकार का रुख
उपनल कर्मचारी संयुक्त मोर्चा का आरोप है कि सरकार उनकी समस्याओं को लेकर लापरवाही बरत रही है। इसके बावजूद कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला उनके पक्ष में है, प्रदेश सरकार ने अब तक कोई ठोस निर्णय नहीं लिया है। ऐसे में कर्मचारियों में असंतोष गहराता जा रहा है। मोर्चा का कहना है कि अगर सरकार ने अब भी उनकी मांगों को नहीं माना, तो यह आंदोलन आगे और उग्र हो सकता है।
महत्वपूर्ण सेवाओं में संभावित बाधा
उपनल कर्मचारियों की इस आर-पार की लड़ाई से राज्य की कई महत्वपूर्ण सेवाओं पर भी असर पड़ सकता है। वर्तमान में उपनल के तहत ऊर्जा निगम, चिकित्सा विभाग, वन विभाग, दून मेडिकल कॉलेज एवं चिकित्सालय जैसे अहम विभागों में कर्मचारी कार्यरत हैं। यदि ये कर्मचारी हड़ताल पर चले जाते हैं, तो इन सेवाओं में भी भारी व्यवधान आ सकता है। इससे प्रदेश की जनता को जरूरी सुविधाओं की कमी का सामना करना पड़ सकता है।
सरकार और प्रशासन की तैयारियां
प्रदेश प्रशासन ने अभी तक इस आंदोलन को लेकर कोई ठोस कदम नहीं उठाया है। हालांकि, सरकार की ओर से किसी भी प्रकार की सार्वजनिक सेवा बाधित न हो, इसके लिए व्यवस्थाएं की जा रही हैं। वहीं दूसरी ओर, कर्मचारियों का कहना है कि जब तक उनकी मांगों को पूरी तरह से सुना और स्वीकारा नहीं जाता, वे पीछे हटने को तैयार नहीं हैं।
आंदोलन का भविष्य और संभावित असर
उपनल कर्मियों की इस महारैली और आंदोलन का असर राज्य की राजनीति और प्रशासनिक व्यवस्था पर भी देखने को मिल सकता है। सरकार और कर्मचारियों के बीच इस प्रकार के तनावपूर्ण माहौल से भविष्य में सरकारी सेवाओं की स्थिरता और कार्यक्षमता पर प्रश्नचिह्न लग सकता है।
आम जनता से अपील
उपनल संयुक्त मोर्चा ने आम जनता से भी अपील की है कि वे इस संघर्ष में उनका समर्थन करें। उनके अनुसार, यह लड़ाई केवल कर्मचारियों की नहीं, बल्कि उन सभी नागरिकों की है जो राज्य में सुरक्षित और स्थिर सरकारी सेवाओं की मांग रखते हैं।