वाराणसी: जिला एवं सत्र न्यायालय के जज डॉ एके विश्वेश की अदालत में अभी भले ही ज्ञानवापी श्रंगार गौरी-मस्जिद मामले में आर्डर 7 रुल, 11 के तहत वाद पोषणीयता (मामले के चलाये के योग्य होने अथवा न होने) पर सुनवाई पूरी नहीं हो सकी है, लेकिन जिस तरह से मामले के वादी और प्रतिवादी पक्षों को कोर्ट कमिश्नर की सर्वे रिपोर्ट के वीडियो-फोटो संबंधी सीलबंद लिफाफे सौंपे जाने का बाद कुछ देर बाद ही लीक हो गये, वह हैरत करना वाला है। इतना ही नहीं ये सोशल मीडिया में वायरल होने से सनसनी फैल गयी।
कोर्ट कमिश्नर की सर्वे रिपोर्ट के वीडियो-फोटो लीक किसने और कब किये, इसका तो पता नहीं चल सका है, लेकिन शक जताया जा रहा है कि ये दूसरे सर्वे में शामिल एक निजी कमरामैन द्वारा लीक किये जा सकते हैं। मुस्लिम पक्ष ने ही अदालत में वीडियो-फोटो लीक होने की शिकायत की थी। आज हिन्दू पक्ष की याचिकाकर्ता महिलाएं सीता साहू, रेखा यादव, लक्ष्मी देवी और मंजू व्यास जिला जज की अदालत पहुंची और इन चारों ने अदालत द्वारा उन्हें सौंपे गये सर्वे के वीडियो-फोटो वाले सीलबंद लिफाफो को वापस करने की पेशकश की, लेकिन अदालत ने उनकी पेशकश ठुकरा दी। वे अदालत को बताना चाहती थीं कि अदालत से उन्हें जो बंद लिफाफे उपलब्ध कराये गये थे, वे उन्होने खोले ही नहीं। ऐसे में सर्वे रिपोर्ट के वीडियो-फोटो कैसे और कहां से लीक हुए, इसका पता लगाया जाना चाहिए।
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इधर इस मामले में मुस्लिम पक्ष ने कई दिन अदालत में एक अर्जी देकर मांग की थी कि कोर्ट कमिश्नर की सर्वे रिपोर्ट, सर्वे के दौरान लिये गये वीडियो-फोटो सार्वजनिक किये जाने पर रोक लगाई लाये, लेकिन इस अर्जी पर सुनवाई होने से पहले ही ये लीक हो जाने से मुस्लिम पक्ष हताश है, क्योंकि इन वीडियो और फोटोग्राफ्स में स्पष्ट रुप से हिन्दू धर्म के प्रतीक चिन्ह होने के सबूत मिल रहे हैं। इसलिए मुस्लिम पक्ष को शिवलिंग को फव्वारा बताने का शगूफा कारगर होता नहीं दिख रहा।
दूसरी तरफ सर्वे के वीडियो-फोटो जनता तक पहुंचने से हिन्दू पक्ष का दावा मजबूत होता दिख रहा है और मुस्लिम अपनी सफाई में कुछ भी कहने स्थिति में नहीं है और न ही वह अपने दावे के समर्थन में मिले कोई सबूत दे सकता है, जबकि हिन्दू पक्ष के पक्ष में ही सारे सबूत दिखायी दे रहे हैं।