लखनऊ। इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बैंच में शुक्रवार को वाराणसी ज्ञानवापी मस्जिद परिसर के हुए कोर्ट कमिश्नर सर्वे में वजूखाने में मिले संरचना के स्वरुप/ प्रकृति की जांच के लिए दाखिल जनहित याचिका पर सुनवाई हुई। यह सुनवाई अवकाश कालीन जस्टिस राजेश सिंह चौहान और सुभाष विद्यार्थी की पीठ में हुई, लेकिन सुनवाई के बाद हाईकोर्ट की लखनऊ बैंच ने याचिका को पोषनीय न मानते हुए खारिज कर दिया।
बता दें कि इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बैंच में अधिवक्ता अशोक पांडे के माध्यम से दाखिल जनहित याचिका सात जून को छह शिवभक्तों सुधीर सिंह, रवि मिश्रा, महंत बालक दास, शिवप्रताप सिंह, मार्केंडय तिवारी, राजीव राय और अतुल कुमार की ओर से दायर की गयी थी। याचिका में केन्द्र सरकार, राज्य सरकार और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को विपक्षी पक्षकार बनाया गया था।
याचिकाकर्ताओं ने याचिका में अदालत से कहा था कि वाराणसी के ज्ञानवापी मामले में कोर्ट कमिश्नर सर्वे में मिली संरचना को हिन्दू पक्ष द्वारा विश्वेवर ज्योतिर्लिंग होने का दावा है, जबकि मुस्लिम पक्ष उसे फब्बारा होने की बात कह रहा है। उन्होने मांग की है कि यदि यह फब्बारा है तो इस क्रियाशील बनाया जाए। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि इस प्रकरण में दूसरे समुदाय के लोगों द्वारा गलत बयानबाजी से भारत और इस्लामिक देशों में हिन्दुओं की छवि धूमिल हो रही है।
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याचिका में भी कहा गया था कि इस मामले में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने अपना दायित्व नहीं निभाया। केन्द्र सरकार को भी चाहिए था कि वह अपने अधिकारों का प्रयोग करके फैक्ट फाइंडिंग कमेटी बनाती, ताकि इस विवाद का निपटारा हो जाता। याचिकाकर्ताओं ने की मांग थी कि इस प्रकरण के जल्द निपटारे के लिए सुप्रीम कोर्ट अथवा हाईकोर्ट के जज की अध्यक्षता में कमेटी गठित कर कोर्ट कमिश्नर सर्वे में ज्ञानवापी के वजूखाने मिली संरचना के स्वरुप यानी प्रकृति की जांच कराया जाये, लेकिन लखनऊ बैंच की दो सदस्यीय पीठ ने याचिकाकर्ताओं की दलीलें सुनने के बाद याचिका को पोषनीय नहीं माना और इसे खारिज कर दिया गया।