Ayodhya Ram Mandir: बीजेपी ने सचमुच राम मंदिर का समां साइआ बाँध दिया है जिसकी आंधी में पूरी राजनीति गोते खा रही है। कोई निमंत्रण मिलने पर भी निमंत्रण को ठुकरा रहा है तो कोई निमंत्रण नहीं मिलने पर बीजेपी पर तंज कस रहा है। धार्मिक संत ,महात्मा अलग से नाराज हैं। जो नाराज हैं उनके बारे में बीजेपी के भीतर अलग-अलग कहानी गढ़ी जा रही है। और जो नाराज नहीं है बीजेपी कीभक्ति में डूबे हुए हैं उनके राग कुछ अलग ही है। राग तो सभी अलाप रहे हैं। जो इस खेल के समर्थक हैं उनके राग अलग हैं जो खिलाफ हैं उनके राग अलग हैं। देश के भीतर मानो सब कुछ राम मंदिर पर ही जाकर ठहर गया है। मंदिर प्राण प्रतिष्ठा का निमंत्रण कांग्रेस के तीन बड़े लोगों को दिया गया था। खड़गे सोनिया गांधी और अधीर रंजन चौधरी को निमंत्रण पत्र मिले थे। कांग्रेस के भीतर एक राय यह थी कि राम के भक्त सब हैं। सभी कांग्रेसी भी रामभक्त हैं ऐसे में निश्चित तारीख को कांग्रेस के तीनो बड़े नेताओं में से कोई न कोई वहां जरूर जायेगा। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। खड़गे और सोनिया के बीच बातचीत हुई और ऐलान कर दिया गया कि अधूरे राम मंदिर के उद्घाटन समारोह में कांग्रेस की तरफ से कोई नहीं जायेगा। याद कीजिये यही बयान उन चार शंकराचार्यों के भी हैं। जिन्हे निमंत्रण तो मिले हैं लेकिन धार्मिक बातो को बताकर और अधूरे मंदिर की बात कहकर वे चारो धर्म रक्षक मंदिर उद्घाटन में नहीं जा रहे हैं।
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कहा जा रहा है कि जिस समय चारो मठों के शंकरचार्य अयोध्या जायेंगे उसके बाद ही कांग्रेस नेता भी जायेंगे। यह बात साफ़ कर दिया गया है कि 22 जनवरी को जो इवेंट किया जा रहा है वह बीजेपी का इवेंट है। यह चुनावी इवेंट है और इस इवेंट का मकसद लोकसभा चुनाव में बीजेपी को जीत दिलाने को लेकर है। इसमें कोई शक नहीं है यह सब बीजेपी लोकसभा चुनाव को लेकर ही कर रही है। बीजेपी के लोग इसे मानते भी हैं। बीजेपी यह भी मान लेती है कि भले ही यह सब धार्मिक अनुष्ठान के तहत किया जा रहा है लेकिन उसका मकसद चुनाव तो है ही। कुल मिलकर बीजेपी ने राम मंदिर को पूरी तरह से अपने पक्ष में कर लिया है और संभव है कि इसका लाभ उसे चुनाव में मिलेगा। यह लाभ ठीक वैसा ही होगा जैसा कि पांच राज्यों के चुनाव में तीन राज्यों में बीजेपी हारते-हारते भारी बहुमत से जीत गई और कांग्रेस कही की नहीं रही। अब जैसे ही कांग्रेस के नेताओं ने अयोध्या जाने से मनाही की है पार्टी के भीतर ही बवाल मचा गया है। पार्टी के बहुत से नेता मानते हैं कि कांग्रेस को भी इस माहौल में वहां जाने की जरूरत है। हम भी राम भक्त हैं और भक्ति का कोई परिचय नहीं देता। बीजेपी वाले क्या करते हैं उससे कांग्रेस को कुछ लेना देना नहीं है लेकिन अयोध्या और राम कांग्रेस भी का है। हम राम से दूर कैसे हो सकते हैं ?
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याद रहे जब राजीव गाँधी प्रधानमंत्री थे तब ही उन्होंने मंदिर का ताला खुलवाया था। उस समय यूपी के मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह थे। वीर बहादुर सिंह ने मंदिर न्यास को मंदिर बनवाने के लिए 46 एकड़ जमीन देने का वादा भी किया था। बाद में वीर बहादुर सिंह अपने वादे से पीछे हट गए और मंदिर निर्माण का काम लटक गया। लेकिन सच यही है कि बीजेपी आज जो भी करती दिख रही है लेकिन मंदिर का ताला सबसे पहले राजीव गाँधी ने ही खुलवाया था। ये बात और है कि असली राम भक्त राजीव गाँधी आज हमारे बीच नहीं है। बीजेपी ने अब इस खेल को पूरी तरह से हड़प लिया है। लेकिन कांग्रेस के नेताओं ने जिस तरह से मंदिर के निमंत्रण पत्र को लौटाया है उससे कांग्रेस के नेता खासे नाराज हैं। खुद पार्टी के बड़े नेता दिग्विजय सिंह और उनके भाई लक्ष्मण सिंह ने कहा है कि हम चाहे जिस वजह से मंदिर नहीं जा रहे हैं लेकिन इसका असर चुनाव परिणाम पर पड़ेंगे। उन्होंने कहा है कि नियंत्रण को अस्वीकार करने का क्या मतलब है? आखिर हम सन्देश क्या देना चाहते हैं? जब राजीव गाँधी ने ताला खुलवाया था तो आप लोग कौन हैं मना करने वाले। लगता है हमारे नेता गलत सलाहकारों के फेर में पड़ गए हैं।