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1963 से आज तक कितनी बदल गई है गणतंत्र दिवस परेड, दिल्ली वालों के लिए क्यों है खास?

Republic Day 2024: जसदेव सिंह 1963 से 2013 तक गणतंत्र दिवस परेड (Republic Day ) की कमेंट्री करते रहे। इस दौरान उन्होंने इस दौरान परेड के विस्तार और बदलते चेहरे को देखा। दक्षिण अफ्रीका (South Africa) के मुक्ति योद्धा नेल्सन मंडेला और मुक्केबाज मोहम्मद अली भी गणतंत्र दिवस (Republic Day) परेड में मुख्य अतिथि रहे। अमेरिका, रूस के अलावा फ्रांस के राष्ट्रपती भी इस कार्यक्रम का हिस्सा रह चुके हैं।


जसदेव सिंह की पहचान मूलत: और अंतत: खेल कमेंटेटर की थी, मगर उन्होंने 1963 से लेकर 2013 तक लगातार गणतंत्र दिवस (Republic Day) परेड का देश-दुनिया को आंखों देखा हाल आकाशवाणी और दूरदर्शन से सुनाया था। यानी वे आधी सदी तक 26 जनवरी पर परेड की कमेंट्री करते रहे। उन्होंने इस दौरान परेड के विस्तार और बदलते चेहरे को देखा। जसदेव सिंह ने जब गणतंत्र दिवस परेड का आंखों देखा हाल सुनाना शुरू किया था, तब राजपथ (कर्तव्य पथ) पर आम इंसान भी मजे में पहुंच जाता था। पुलिस की सांकेतिक उपस्थिति रहती थी। उधर खोमचे वाले भी दिखाई देते थे और लोग खाने पीने की चीजें लेकर पहुंचते थे, लेकिन पंजाब में आतंकवाद के पनपने के बाद सब कुछ बदल गया। फिर सुरक्षा व्यवस्था इतनी सख्त हो गई कि आम जन राजपथ जाने से ही बचने लगा।

क्यों फीकी थी 1963 की परेड

चीन से 1962 में हुए युद्ध में उन्नीस रहने के कारण देश उदास था। उसकी अभिव्यक्ति 1963 की गणतंत्र दिवस परेड के फीकेपन में भी कहीं ना कहीं नजर आ रही थी। राजपथ से लेकर परेड के शेष हिस्सों जैसे कस्तूरबा गांधी मार्ग, कनॉट प्लेस, मिंटो रोड, थॉमसन रोड वगैरह में जनता की भागेदारी कम रही थी। जसदेव सिंह बताते थे कि उस साल बाल वीर पुरस्कार भी नहीं दिए गए थे। ये 1959 में दिए जाने चालू हुए थे और सिर्फ उसी वर्ष इस पुरस्कार से किसी बच्चे को नवाजा नहीं गया था।


विदेशी राष्ट्रपति पर भारी मोहम्मद अली

यूं तो तो गणतंत्र दिवस (Republic Day) समारोह के दौरान अमेरिका के राष्ट्रपति रहे बराक ओबामा से लेकर रूस के राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन मुख्य अतिथि रहे हैं। लेकिन दक्षिण अफ्रीका के मुक्ति योद्धा नेल्सन मंडेला और मुक्केबाज मोहम्मद अली का राजपथ (कर्तव्य पथ) पर जनमसूह ने गर्मजोशी से स्वागत किया। मंडेला 1995 में गणतंत्र दिवस परेड के मुख्य अतिथि थे। वहां मैजूद दर्शक मंडेला के नारे लगा रहे थे। जसदेव सिंह बताते थे कि जनसमूह ने मोहम्मद अली का भी करतल ध्वनि से अभिनंदन किया था। वे 1978 के गणतंत्र दिवस समारोह में खास अतिथि थे। उस गणतंत्र दिवस समारोह में कहने को मुख्य अतिथि आयरलैंड के राष्ट्रपति पैट्रिक हिलेरी थे, पर सबकी निगाहें मोहम्मद अली को तलाश रही थीं। वो विश्व नायक थे। वो अपने चाहने वालों के अभिवादन का उत्तर अपने मुक्के को हवा में घुमाते हुए दे रहे थे। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी भी मोहम्मद अली को देखकर मुस्करा रही थीं।

आम दिल्लीवालों से दूर हुई परेड

जसदेव सिंह को इस बात का अफसोस भी था कि किस तरह गणतंत्र दिवस (Republic Day) की परेड आम आदमी से दूर होती चली गई। गणतंत्र दिवस पर सुनाई जाने वाली जसदेव सिंह की कमेंट्री को सुन-सुनकर कई पीढ़ियां बढ़ी हुईं। उन्होंने कुछ साल निजी खबरिया चैनलों पर भी परेड का आंखों देखा हाल सुनाया। उन्होंने बाल वीर विजेता बच्चों को पहले हाथी पर परेड में गुजरता हुए देखा था। ये सिलसिला 2010 में खत्म हो गया। फिर बच्चों को जीप में बैठाकर परेड में लेकर जाया जाने लगा। उन्होंने परेड की समाप्ति के बाद पंडित जवाहर लाल नेहरू को लोगों से घुलते-मिलते देखा था। जसदेव सिंह 26 जनवरी को सुबह चार-साढ़े चार बजे राजपथ पहुंच जाते थे। वे देखते थे कि परेड के रूट पर लोग अल सुबह बैठ जाते थे। इनमें दिल्ली के गांवों और आसपास के राज्यों के लोग भी होते थे। ये सब अपने को परेड से जोड़ते थे। तब गणतंत्र दिवस की परेड को देखना मानो किसी पर्व पर व्रत रखने के समान ही होता था। दिल्लीवालों में गजब का जोश और उत्साह रहता था। दिल्ली में कड़ाके की सर्दी के बावजूद लोग सुबह की परेड के रूट पर आग जलाकर बैठ जाते थे।

Prachi Chaudhary

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