Jagannath Snana Purnima: पुरी में जगन्नाथ महोत्सव का शुभारंभ, देव स्नान पूर्णिमा पर उमड़ा श्रद्धालुओं का सैलाब
पुरी का देव स्नान पूर्णिमा उत्सव आध्यात्मिक आस्था, संस्कृति और परंपरा का अद्वितीय संगम है। यह आयोजन न केवल भगवान जगन्नाथ की दिव्यता का प्रतीक है, बल्कि लाखों भक्तों की अटूट आस्था का भी परिचायक है। रथ यात्रा की तैयारियों के साथ यह पर्व भक्तों के मन में गहराई से बसे विश्वास को और प्रबल करता है।
Jagannath Snana Purnima: पुरी में भगवान जगन्नाथ के पावन महोत्सव की शुरुआत देव स्नान पूर्णिमा से हो गई है। यह आयोजन भगवान जगन्नाथ, उनके भ्राता बलभद्र और भगिनी सुभद्रा के स्नान अनुष्ठान के साथ रथ यात्रा उत्सव का पहला चरण माना जाता है। हजारों की संख्या में श्रद्धालु पुरी पहुंचे हैं, जिन्होंने इस पवित्र पर्व को भक्ति और श्रद्धा से मनाया।
देवताओं का महा स्नान अनुष्ठान
श्री जगन्नाथ मंदिर परिसर में देव स्नान पूर्णिमा के अवसर पर विशेष धार्मिक अनुष्ठान आयोजित किए गए। परंपरा के अनुसार, भगवान जगन्नाथ और उनके दोनों सहचर—बलभद्र और सुभद्रा—को गर्भगृह से बाहर लाकर स्नान मंडप (स्नान वेदी) पर विराजित किया गया। यहां उन्हें 108 कलशों में भरकर लाए गए पवित्र जल से स्नान कराया गया। इस जल को मंदिर परिसर स्थित सुना कुंआ (स्वर्ण कुआं) से निकाला जाता है, जिसे अत्यंत पवित्र और शुभ माना जाता है।
यह आयोजन न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि एक सांस्कृतिक उत्सव का रूप भी ले लेता है, जिसमें भक्तगण पूरे श्रद्धा भाव से भाग लेते हैं।
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हाटी बेशा में भगवानों की अनुपम छवि
देवताओं के स्नान के बाद उन्हें हाथी के स्वरूप की पोशाक, जिसे हाटी बेशा कहा जाता है, पहनाई जाती है। यह पोशाक भगवान के राजसी स्वरूप को दर्शाती है और यही कारण है कि इस दिन का दृश्य अत्यंत दिव्य और अनुपम होता है। बड़ी संख्या में भक्तगण मंदिर के बाहर खड़े होकर भगवान के इस रूप के दर्शन करते हैं, जो साल में सिर्फ एक बार ही संभव होता है।
यह दृश्य विशेष रूप से उन लोगों के लिए महत्वपूर्ण होता है जो मंदिर के अंदर प्रवेश नहीं कर सकते, क्योंकि आज के दिन भगवानों के विग्रह बाहर लाए जाते हैं।
देवताओं की विश्राम अवधि ‘अनासर’
देव स्नान के बाद एक मान्यता है कि भगवान बीमार पड़ जाते हैं। इसे ‘अनासर’ अवधि कहा जाता है, जो लगभग 15 दिनों तक चलती है। इस दौरान भगवानों को मंदिर के भीतर एक अलग कक्ष में रखा जाता है और वहां उन्हें औषधीय उपचार दिए जाते हैं। इस समय आम भक्तों को भगवान के दर्शन नहीं होते। यह विश्राम काल रथ यात्रा से पहले का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
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पुरी पुलिस की सुरक्षा व्यवस्था
भव्य आयोजन को देखते हुए पुरी पुलिस और प्रशासन ने व्यापक सुरक्षा इंतजाम किए हैं। भीड़ नियंत्रण, ट्रैफिक प्रबंधन, आपातकालीन सेवाओं की तैनाती और श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए विशेष व्यवस्थाएं की गई हैं। प्रशासन ने यह भी सुनिश्चित किया कि आयोजन के दौरान कोई बाधा न आए और सभी को सुरक्षित दर्शन का अवसर मिले।
एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने बताया कि “हर कोने पर सुरक्षाकर्मी तैनात हैं, ड्रोन से निगरानी हो रही है और ट्रैफिक को व्यवस्थित रूप से नियंत्रित किया जा रहा है
श्रद्धालुओं में विशेष उत्साह
स्नान पूर्णिमा पर पुरी में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ी, जिनमें देशभर से आए भक्तों के साथ-साथ विदेशी पर्यटक भी शामिल रहे। मंदिर के बाहर धार्मिक गीतों, शंखध्वनि और मंत्रोच्चारण से वातावरण संगीतमय हो गया। श्रद्धालुओं ने भगवान के हाथी रूप के दर्शन कर स्वयं को सौभाग्यशाली माना।
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मंदिर प्रशासन ने श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए भोजन, जल और प्राथमिक चिकित्सा की पर्याप्त व्यवस्था की थी।
पुरी का देव स्नान पूर्णिमा उत्सव आध्यात्मिक आस्था, संस्कृति और परंपरा का अद्वितीय संगम है। यह आयोजन न केवल भगवान जगन्नाथ की दिव्यता का प्रतीक है, बल्कि लाखों भक्तों की अटूट आस्था का भी परिचायक है। रथ यात्रा की तैयारियों के साथ यह पर्व भक्तों के मन में गहराई से बसे विश्वास को और प्रबल करता है।
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