नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश के देवबंद (सहारनपुर) में जमीयत उलेमा-ए-हिन्द के दो दिवसीय सम्मेलन में धर्मगुरुओं ने इस्लामिक कट्टरवाद को बढावा देने वाले कई प्रस्तावों को जानबूझकर पास केवल इसलिए किया है, ताकि देश के मुस्लिमों को खुश रखा जा सके, हालांकि वे ये भली भांति जानते हैं कि व्यवहारिक तौर पर इन प्रस्तावों पर अमल करना आसान नहीं है।
जमीयत उलेमा-ए-हिन्द द्वारा पास किये गये प्रस्तावों में से एक प्रमुख प्रस्ताव केन्द्र सरकार और देश की उन सरकारों को चुनौती देने वाला था, जो समान नागरिक संहिता (UCC) लागू करने की तैयारी में जुटी हैं। जमीयत के धर्मगुरुओं ने कहा था कि वे किसी भी कीमत पर समान नागरिक संहिता को बर्दाश्त नहीं करेंगे। उनके इस प्रस्ताव को सरकारों के कामकाज की सीधे तौर पर विरोध माना जा रहा है। लेकिन केन्द्र सरकार और कई भाजपा शासित राज्य सरकारें मुस्लिम धर्मगुरुओं को जोर का झटका देने की तैयारी में हैं।
देश में इस समय केवल गोवा ही एक मात्र ऐसा राज्य है, जिसमें यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) लागू है। आने वाले कुछ महीनों में उत्तराखंड देश का दूसरा राज्य हो सकता है, जिसमें यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू हो। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने विशेषज्ञों की समिति गठित कर दी है, जो ट्राफ्ट तैयार कर रही है, इसके मिलती ही उत्तराखंड सरकार इसे लागू करने के लिए आवश्यक कदम उठा सकती है।
उधर भाजपा शासित कई राज्य, जिनमें कर्नाटक भी शामिल है, वे अपने राज्यों में समान नागरिक संहिता लागू करने के संकेत दे चुके हैं। देश में इस समय 18 ऐसे राज्य हैं, जहां पर भाजपा और उनके सहयोगी दलों की सरकार है, इसलिए उम्मीद है कि जल्द ही कई भाजपा शासित राज्य यूसीसी को लागू करके जमीयत उलेमा-ए-हिन्द के उलेमाओं और उनके प्रस्ताव को बडा झटका दे सकते हैं। उधर केन्द्र सरकार भी एनआरसी (नेशनल रजिस्टर आफ सिटिजंस) को लागू करने एक वर्ग विशेष द्वारा इसका विरोध करने वालों का मनोबल तोड़ने की तैयारी में है।