International Booker Prize: कन्नड़ लेखिका बानू मुश्ताक को अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार, ‘हार्ट लैंप’ ने रचा इतिहास
कन्नड़ लेखिका बानू मुश्ताक को उनकी पुस्तक 'हार्ट लैंप' के लिए अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार 2025 से सम्मानित किया गया है। यह पुस्तक कर्नाटक की मुस्लिम महिलाओं के जीवन पर आधारित 12 लघु कहानियों का संग्रह है, जिसे दीपा भस्ती ने अंग्रेज़ी में अनूदित किया है। इस उपलब्धि ने कन्नड़ साहित्य और भारतीय अनुवाद कार्य को वैश्विक पहचान दिलाई है।
International Booker Prize: भारतीय साहित्य जगत के लिए एक ऐतिहासिक क्षण में, प्रसिद्ध कन्नड़ लेखिका बानू मुश्ताक को उनकी अंग्रेजी में अनूदित पुस्तक ‘हार्ट लैंप’ के लिए अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार 2025 से सम्मानित किया गया है। यह पुरस्कार न केवल कन्नड़ भाषा के लिए एक बड़ी उपलब्धि है, बल्कि भारतीय महिला लेखन और अनुवाद साहित्य के क्षेत्र में भी एक मील का पत्थर साबित हुआ है।
‘हार्ट लैंप’ दरअसल बानू मुश्ताक की मूल कन्नड़ पुस्तक ‘हसीना एंड अदर स्टोरीज़’ का अंग्रेजी अनुवाद है, जिसे लेखिका और पत्रकार दीपा भस्ती ने अनूदित किया है। यह संग्रह पिछले 30 वर्षों में लिखी गई 12 लघु कहानियों का संकलन है, जो कर्नाटक में मुस्लिम महिलाओं के जीवन, संघर्षों और जिजीविषा को बेहद संवेदनशीलता और समझदारी के साथ प्रस्तुत करता है।
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पुरस्कार की घोषणा लंदन में
इस प्रतिष्ठित पुरस्कार की घोषणा मंगलवार को लंदन के टेट मॉडर्न गैलरी में आयोजित एक भव्य समारोह के दौरान की गई। बानू मुश्ताक और दीपा भस्ती दोनों इस आयोजन में उपस्थित रहीं। अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार की कुल राशि 50,000 पाउंड है, जिसे लेखक और अनुवादक समान रूप से साझा करते हैं।
इस वर्ष ‘हार्ट लैंप’ को दुनिया भर की छह किताबों की सूची में से विजेता चुना गया। इस संग्रह ने अमेरिका, फ्रांस, कोरिया और जापान जैसे देशों की साहित्यिक कृतियों को पछाड़कर यह सम्मान हासिल किया। यह पहली बार है जब किसी लघु कहानी संग्रह को अंग्रेजी में अनूदित सर्वश्रेष्ठ कथा साहित्य की श्रेणी में बुकर पुरस्कार मिला है।
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लेखिका की प्रतिक्रिया: “हजारों जुगनुओं का उजाला”
पुरस्कार प्राप्त करने के बाद मंच से बोलते हुए 77 वर्षीय बानू मुश्ताक ने कहा, “यह क्षण ऐसा लगता है जैसे हजारों जुगनू एक ही आकाश को रोशन कर रहे हों – संक्षिप्त, शानदार और पूरी तरह से सामूहिक। मैं इस सम्मान को एक व्यक्ति के रूप में नहीं, बल्कि अनेक आवाजों के समूह के रूप में स्वीकार करती हूं।”
बानू मुश्ताक ने अपनी पहली लघु कहानी 1950 के दशक में लिखी थी, जब वे कर्नाटक के हासन शहर में मिडिल स्कूल में पढ़ाई कर रही थीं। लेखन के साथ-साथ वह वकील और सामाजिक कार्यकर्ता भी रही हैं। ‘हार्ट लैंप’ के लिए उन्हें यह सम्मान मिलना उनके दशकों लंबे रचनात्मक योगदान की वैश्विक स्वीकृति है।
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दीपा भस्ती: पहली भारतीय अनुवादक को अंतरराष्ट्रीय बुकर
इस सम्मान के साथ ही दीपा भस्ती अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार जीतने वाली पहली भारतीय अनुवादक बन गई हैं। उन्होंने इस अवसर पर कहा, “यह मेरी सुंदर भाषा के लिए कितनी सुंदर जीत है। यह केवल एक किताब का नहीं, बल्कि अनुवाद की कला और कन्नड़ साहित्य की वैश्विक उपस्थिति का उत्सव है।”
तीन साल में दूसरी भारतीय पुस्तक को मिला सम्मान
यह ध्यान देने योग्य है कि ‘हार्ट लैंप’ पिछले तीन वर्षों में अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार जीतने वाली दूसरी भारतीय पुस्तक है। वर्ष 2022 में गीतांजलि श्री और उनकी अनुवादक डेज़ी रॉकवेल ने ‘रेत समाधि’ (Tomb of Sand) के लिए यह पुरस्कार जीता था।
बानू मुश्ताक की जीत से भारतीय क्षेत्रीय भाषाओं और अनुवाद साहित्य को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नई पहचान मिली है। यह पुरस्कार उन सशक्त कहानियों की मान्यता है, जो वर्षों तक सीमित दायरे में सुनी जाती रहीं, लेकिन अब वैश्विक मंच पर गूंज रही हैं।
यह सफलता न केवल साहित्य प्रेमियों के लिए गर्व का विषय है, बल्कि आने वाले लेखकों और अनुवादकों के लिए भी प्रेरणा है कि भारतीय भाषाओं की समृद्ध विरासत को दुनिया तक पहुंचाया जा सकता है।
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