Kanpur News: आंखों की रोशनी खोकर भी सवांर रहे हैं बच्चों की ज़िन्दगी, 22 साल पहले हुए थे दुर्घटना के शिकार
कानपुर देहात (Kanpur News) के झींझक कस्बे के पास उड़नवापुर गांव के प्राथमिक स्कूल में पदस्थ नेत्रहीन शिक्षक की आंखों की रोशनी करीब 22 साल पहले एक हादसे में चली गई थी।
दृष्टिहीन गणेश दत्त द्विवेदी के पास खुद (Kanpur News) तो रौशनी नहीं है लेकिन अपने जज्बाती हौसलों के चलते शिक्षक बनकर ज्ञान के प्रकाश से बच्चों को नई रोशनी दे रहे हैं। गणेश दत्त द्विवेदी पिछले 13 साल स उड़नवापुर के इसी स्कूल में बच्चों को पढ़ा रहे हैं। गणेश दत्त द्विवेदी बताते हैं कि वह अपनी पढ़ाई के अनुभवों के आधार पर बच्चों को पढ़ाते हैं। पढ़ाई कराने में उन्हें ज्यादा परेशानी का सामना नहीं करना पड़ता, बच्चों को बोलकर बोर्ड पर लिखवाते भी हैं और बच्चे भी उनके रहते क्लास में अच्छे से पढ़ाई करते हैं।
संवार रहे बच्चों की ज़िन्दगी
कानपुर देहात (Kanpur News) के झींझक कस्बे के पास उड़नवापुर गांव के प्राथमिक स्कूल में पदस्थ नेत्रहीन शिक्षक की आंखों की रोशनी करीब 22 साल पहले एक हादसे में चली गई थी। आंखों की रोशनी न होने के बावजूद गणेश दत्त द्विवेदी ने अपनी पढ़ाई पूरी की और बाद में सहायक अध्यापक भी बने आज वो प्राथमिक विद्यालय के प्रधानाध्यापक के पद पर रहकर बच्चों का भविष्य उज्ज्वल करने में लगे हुए हैं।
वे पिछले 13 साल से उड़नवापुर (Kanpur News) के इसी स्कूल में बच्चों को पढ़ा रहे हैं। आंखों की रोशनी से मेहरूम शिक्षक गणेश दत्त द्विवेदी बताते हैं कि वे अपनी पुरानी पढ़ाई के अनुभव के आधार पर बच्चों को पढ़ाते हैं। पढ़ाई कराने में उन्हें ज्यादा परेशानी का सामना नहीं करना पड़ता। बच्चों को बोलकर बोर्ड पर लिखवाते भी हैं और बच्चे भी उनके रहते क्लास में अच्छे से पढ़ाई करते हैं।
2000 में दुर्घटना के दौरान गई थी आंखों की रोशनी
शिक्षक गणेश दत्त द्विवेदी बताते हैं कि सन 2000 में वह अपने एक दोस्त के यहां विवाह समारोह में गए हुए थे जहां पर हर्ष फायरिंग के दौरान बंदूक से निकली गोली के छर्रे उनके चेहरे पर चले गए हादसे में उनकी आंखों की रोशनी चली गई। उन्होंने कई सालों तक इसका इलाज कराया लेकिन कोई लाभ नहीं हुआ उस समय वह ग्रेजुएशन की पढ़ाई कर रहे थे शिक्षक गणेश दत्त द्विवेदी ने हार ना मानते हुए अपनी पढ़ाई को जारी रखा उन्होंने इतने बड़ा हादसा होने के बाद भी अपनी ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी की।
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उसके बाद वह देहरादून के एक विद्यालय में पढ़ाई करने के लिए चले गए जहां पर वह ऑडियो लाइब्रेरी में पढ़ाई करते थे। और जब वो घर आए तो उनके भाई बहन पढ़ाई करते थे जिसको सुन सुन कर उन्होंने अपने आप को मजबूत कर लिया, इसके बाद उन्होंने B. Ed, M.A. की पढ़ाई करते हुए 2008 में आई शिक्षक की भर्ती में उन्होंने आवेदन किया और उनका चयन हो गया। जिसके बाद 16 जुलाई 2009 को उनको उड़नवापुर प्राथमिक विद्यालय में नियुक्ति मिल गई।
बच्चों की आंखें हैं इनकी दुनिया
उन्होंने बताया मेरा छोटा भाई मुझे यहां पर छोड़ जाता है और शाम को ले जाता है। वहां के जो प्रधानाध्यापक थे वह सेवानिवृत्त हो गए जिसके बाद उस स्कूल में प्रधानाध्यापक का स्थान रिक्त हो गया, और जब अध्यापकों के प्रमोशन हुए तो गणेश दत्त द्विवेदी का प्रमोशन हो गया।
तो उन्होंने कहीं पर और नियुक्ति न लेकर उसी स्कूल में प्रधानाध्यापक के पद पर नियुक्ति ले ली क्योंकि दूसरी जगह जाने से उन्हे कुछ समस्या होती यहां पर वो कई सालों से शिक्षा दे रहे हैं तो यहां पर हर जगह से अच्छी तरह से वाकिफ हैं जिससे उन्हें यहां पर आने जाने या चलने में कोई समस्या नहीं होती है। शिक्षक गणेश दत्त द्विवेदी ने बताया कि उन्होंने अपनी शादी नहीं की है क्योंकि वो अब अपना जीवन इन्ही बच्चों के बीच में रह कर बिताना चाहते है
ख़बर- गौरव शुक्ला