कानपुर: कानपुर हिंसा के मामले में तुष्टिकरण के लिए सपा विधायकों ने कहा कि नमाजियों पर पथराव हुआ है। लेकिन दिल्ली पुलिस की आईएफएसओ (इंटेलीजेंस फ्यूजन एंड स्ट्रेटेजिक ओपरेशन) की यूनिट ने जिन 31लोगों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज हुई है, उसमें दोनों धर्मों के लोगों के नाम हैं, ऐसे में यह नहीं कहा जा सकता कि पुलिस केवल एक धर्म विशेष के लोगों के खिलाफ ही कार्रवाई की है। यह सवाल होता है कि वीडियो में कैद पत्थरबाजों के खिलाफ कार्रवाई उनके मुस्लिम होने के कारण नहीं की जा रही है, बल्कि इसलिए कार्रवाई की जा रही है, क्योंकि उन्होने अपराध किया है।
आखिर क्या कारण है कि सपा विधायकों को पुलिस कमिश्नर को ज्ञापन देकर ये मांग करनी पड़ी कि किसी निर्दोष के खिलाफ कार्रवाई न हो, जबकि आज तक कोई भी ऐसा व्यक्ति सामने नहीं आया कि जिसने यह दावा किया हो कि उसके परिजन को पुलिस ने गलत तरीके से फंसाया गया है। दरअसल इस मामले में समाजवादी पार्टी को ऐसा करना मजबूरी है। कानपुर हिंसा के मुख्य आरोपी हयात जफर हाशमी का सपा से कनेक्शन सामने आने से समाजवादी पार्टी की पोल खुलती नजर आ रही है।
दरअसल सपा को मुस्लिमों की हितैषी होने वाली पार्टी के रुप में माना जाता है। पिछले दिनों उत्तर प्रदेश में कई मुस्लिम नेता आरोप लगा चुके हैं कि समाजवादी पार्टी को चुनावा में केवल मुस्लिम के वोट चाहिए होते हैं। इसके बाद सपा उनके साथ होने वाले किसी भी अन्याय के खिलाफ आवाज नहीं उठाती है। इसलिए कानपुर हिंसा मामले में अब तक वीडियो के आधार पर जितने भी आरोपी पकड़े गये हैं, वे सब मुस्लिम हैं, इसलिए पत्थरबाजों को अप्रत्यक्ष रुप से निर्दोष बताना सपा की मजबूरी है। वैसे भी मुख्य आरोपी के सपा के दो विधायकों के फोटो मिलने से उसका सपा कनेक्शन होने पर सफाई देने का ही प्रयास ही है।