Kapil sibal News: देश के प्रतिष्ठित वकील कपिल सिब्बल एक नए मंच की शुरुआत की है। मंच का नाम रखा है इन्साफ के सिपाही। इसकी शुरुआत भी वेबसाइट के जरिये हो गई है। पिछले दिनों इसकी शुरुआत करते हुए उन्होंने कहा कि सबको न्याय मिले ,लोकतंत्र बचा रहे और लोकतान्त्रिक संस्थाएं जीवित रहे यही इस मंच का उद्देश्य है। उन्होंने मौजूदा बीजेपी सरकार को सुधारने की भी बात की। यहां तक तो ठीक था। लेकिन उन्होंने इस मंच से सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों को जुड़ने का भी आह्वान है किया है। उन्होंने मुख्यमंत्रियों से अपील की है कि सभी मुख्यमंत्री इस मंच से जुड़े ताकि अन्याय के खिलाफ लड़ाई को आगे बढ़ाया जा सके। क्या ऐसा संभव है ?
अन्याय से लड़ने के लिए सिब्बल ने खड़ा किया मंच ‘इंसाफ’
दरअसल देश के अधिकतर विपक्षी मुख्यमंत्री और उनके लोग जांच एजेंसियों के घेरे में हैं। सब पर जांच एजेंसियों के केस दर्ज हैं। कपिल सिब्बल लगभग सभी मुख्यमंत्रियों के वकील भी है। उनके मुक़दमे लड़ते भी रहे हैं और बचाते भी रहे हैं। ऐसे में क्या कोई भी विपक्षी मुख्यमंत्री सिब्बल को अपना नेता भी मान लेंगे यह समझ में नहीं आ रहा है। कपिल सिब्बल की पहचान बड़े वकील के साथ ही कांग्रेस के नेता के रूप में रही है। लेकिन अभी वे कांग्रेस में नहीं है। ग्रुप 23 बनाकर उन्होंने कांग्रेस पर कई सवाल किये थे। बड़े बदलाव की बात कही थी। फिर वे सपा के समर्थन से राज्य सभा भी पहुँच गए। पहले भी राजद के सहयोग से राज्य सभा पहुंचे थे। ऐसे में यह मान लेना कि सभी विपक्षी मुख्यमंत्रियों या फिर पार्टियों के लोग उन्हें लेंगे किसी भ्रम से कम नहीं है।
कपिल सिब्बल की वजह से ही कांग्रेस के बड़े नेता गुलाम नवी आजाद से कांग्रेस से अलग हुए। उन्होंने अपनी पार्टी भी बनाई। आज उस पार्टी का क्या हश्र है सबके सामने है। संभव है कि आजाद जब गुलान नवी आजाद के अधिकतर नेता ,सहयोगी उन्हें छोड़कर पुनः कांग्रेस के साथ जा मिले हैं, आजाद की आँखे खुल गई है।
उधर कपिल सिब्बल की तरह ही प्रशांत किशोर की भी कहानी है। प्रशांत किशोर इस देश के बेहतरीन चुनावी रणनीतिकार के रूप में उभरे। उन्होंने कई नेताओं और पार्टियों के लिए काम भी किया। चुनाव भी जिताये। सब उनके आज भी मुरीद हैं। प्रशांत के सभी दलों के साथ बेहतर सरोकार भी हैं। बाद में उन्हें यह भ्रम हो गया कि जब वे सबको चुनाव जीता सकते हैं ,मुख्यमंत्री बना सकते हैं तो खुद ही नेता क्यों नहीं बन सकते। वे नेता बनने निकल गए। आजकल बिहार की लम्बी यात्रा कर रहे हैं और लोगो के बीच अपनी पहचान बनाने की कोशिश में जुटे हैं। जनता से मिलकर वे जो सवाल उठा रहे हैं वे सभी सवाल जनता के हित के ही है। लोकतंत्र को बचाने के ही है और व्यवस्था में बदलाव लाने से ही जुड़े है लेकिन कोई बड़ा असर होता नहीं दिख रहा।
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सच तो यही है कि सिब्बल विपक्षी नेताओं के मुक़दमे लड़ते रहेंगे। यह उनका पेशा भी है। लेकिन इस बात की संभावना बहुत ही कम है कि विपक्षी नेता और मुख्यमंत्री उन्हें अपना नेता बना लेंगे। सिब्बल ख़ास तौर पर कांग्रेस ,राजद और सपा की राजनीति तो कर ही चुके है, इन पार्टियों के प्रति बफादारी भी भी है लेकिन ये पार्टियां भी उन्हें नेता मान लेंगी ऐसा नहीं लगता। वे सर्वदलीय नेता नहीं बन सकते। सच तो यही है कि जांच एजेंसियों में फसे नेताओं के वे वकील हो सकते हैं लेकिन कोई सर्वदलीय नेता नहीं हो सकते।