Karnataka News (कर्नाटक न्यूज़)! इसी महीने के अंतिम सप्ताह तक कर्नाटक चुनाव के घोषणा किये जाने हैं। चुनाव आयोग लगातार राज्य के दौरे पर है और हर स्थिति की जानकारी जुटा रहा है। अप्रैल के अंतिम और मई के प्रथम सप्ताह तह वहाँ चुनाव होने हैं। लेकिन सबसे बड़ी समस्या सत्तारूढ़ बीजेपी के अंदर है। बीजेपी के सभी विधायक इस बात को लेकर डरे हुए थे कि अगर गुजरात मॉडल की तरह ही कर्नाटक में भी सभी विधायकों को बेटिकट कर नए लोगो पर पार्टी जोर लगाती है तब उनका क्या होगा ? बीजेपी के अधिकतर विधायकों को लग रहा था कि पार्टी पुराने नेताओं की जगह नए युवा नेताओं को ही मैदान में उतार सकती है। यही कारण थे कि बीजेपी के कई विधायक कही और भी जगह तलाश रहे थे और पार्टी छोड़ने की तैयारी में थे। लेकिन अब जब पार्टी ने सबको बता दिया है कि अधिकतर विधायकों को टिकट मिलेगा तो सबने चैन की सांसे ली है।
जानकारी मिल रही है कि बीजेपी कर्नाटक में गुजरात का फॉर्मूला लागू नहीं करेगी। यानी अधिकतर विधायकों के टिकट नहीं कटेंगे। गुजरात चुनाव से पहले बीजेपी ने पूरा मंत्रिमंडल ही बदल दिया था और फिर नए लोगो को टिकट देकर मैदान में उतारा था। मुख्यमंत्री रुपानी के साथ ही उनके मंत्रिमंडल के सभी विधायकों के टिकट कट गए थे। इसकी काफी चर्चा हुई थी। तभी यह माना जा रहा था कि बीजेपी कर्नाटक में भी कुछ यही फॉर्मूला लागू कर सकती है। बीजेपी के अधिकतर विधायक डरे हुए थे और दूसरी पार्टी में जाने की तैयारी में भी थे। कई विपक्षी पार्टियां भी इस राह को देख रही थी। लेकिन अब ऐसा नहीं होगा। कहा जा रहा है कि बीजेपी की अंदुरुनी सर्वे के बाद पार्टी ने सभी विधायकों को टिकट देने की राय बना रही है। पार्टी की जीत कितनी होगी यह तो बाद का विषय है लेकिन सर्वे में कहा गया कि अगर विधायकों को टिकट नहीं मिलता है तो जातीय राजनीति पर असर पडेगा और पार्टी को नुक्सान भी हो सकता है। खासकर लिंगायत सामाज से जुड़े विधायकों को टिकट नहीं मिलने से लिंगायत समाज के वोटर पार्टी से अलग हो सकते हैं। बीजेपी किसी भी सूरत में ऐसा नहीं चाहती। बीजेपी के लिए लिंगायत वोट आधार की तरह है। सीएम बोम्मई भी लिंगायत समाज से ही आते हैं।
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गुजरात और कर्नाटक की कहानी भी अलग -अलग है। गुजरात में बीजेपी की जमीन मजबूत है और वहाँ 25 साल से बीजेपी सत्ता में है। जबकि कर्नाटक में बीजेपी भले ही दो टर्म से सत्ता में है लेकिन कोई बहुमत के आधार पर नहीं है। जब भी बीजेपी सत्ता के करीब पहुँच है वह जोड़ तोड़ के जरिये ही। बीजेपी की सरकार यहां हमेशा अल्पमत की ही रही। इधर -उधर से जुगाड़ करके बीजेपी सरकार चलाती रही। इस खेल की वजह से बीजेपी की बदनामी भी खूब हुई है।
उधर कांग्रेस और जेडीएस की अपनी राजनीति है और सबकी चुनौतियाँ भी। ऐसी हालत में भी बीजेपी कोई बड़ा रिस्क लेने को तैयार नहीं है। गुजरात बीजेपी के लिए हिंदुत्व का प्रयोगशाला है लेकिन कर्नाटक अभी प्रयोगशाला नहीं बन सका है। क्योंकि वहाँ कांग्रेस का भी आधार है और जेडीएस की भी जमीन है। यह बात और है कि संघ और बीजेपी से जुड़े कई नेता कर्नाटक में हिंदुत्व का खेल करने से बाज नहीं आते लेकिन कर्नाटक की जनता अभी उस खेल का हिस्सा नहीं बन सकी है। और शायद अभी संभव भी नहीं। यही कारण है कि बीजेपी अब बोम्मई के नेतृत्व में ही चुनाव लड़ेगी और लिंगायत वोट पर यकीन करेगी।