Laurene Powell Hindu Name And Gotra : महाकुंभ में आई एप्पल को-फाउंडर, मिला नया सनातनी नाम और गोत्र!
हिंदू धर्म के सबसे बड़े आयोजनों में से एक प्रयागराज महाकुंभ में दिवंगत एप्पल के सह-संस्थापक स्टीव जॉब्स की पत्नी लॉरेन पावेल भी शामिल होंगी। वो आज 13 जनवरी को प्रयागराज पहुंचेंगी। उन्हें हिंदू नाम 'कमला' दिया गया है।
Laurene Powell Hindu Name And Gotra : महाकुंभ (mahakumbh) में आई Apple लॉरेन पावेल को मकर संक्रांति (Makar Sankranti) के खास मौके पर पावेल को विधिपूर्वक हिंदू नाम ‘कमला’ और ‘अच्युत’ गोत्र दिया गया है। लॉरेन को अच्युत गोत्र मिलने के बाद लोगों में एक बार फिर गोत्र के धार्मिक महत्व को लेकर चर्चा होने लगी है। आइए, जानते हैं हिंदू धर्म में गोत्र का क्या धार्मिक महत्व है।
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दुनिया की सबसे अमीर महिलाओं में से एप्पल कंपनी की को-फाउंडर लॉरेन पावेल अब सनातनी हो गई हैं। महाकुंभ में मकर संक्रांति के अवसर पर स्वामी कैलाशानंद गिरि ने अपने आचार्य शिविर में विधि-विधान से पूजा-अर्चना करने के बाद पावेल को दीक्षा दी। वहीं, खराब स्वास्थ्य के चलते पावेल संगम में स्नान के लिए नहीं जा सकीं इसलिए स्वामी जी ने उन पर संगम का जल छिड़ककर उन्हें स्नान कराने का पुण्य प्रदान किया और अमृत स्नान का महत्व समझाया। साथ ही, दीक्षा के बाद लॉरेन को गले में रुद्राक्ष की माला धारण करने का संकल्प भी दिलाया गया। मकर संक्रांति के अवसर पर विधि-विधान के साथ पावेल को हिंदू नाम ‘कमला’ और ‘अच्युत’ गोत्र भी दिया गया। लॉरेन को अच्युत गोत्र मिलने के बाद लोगों के बीच एक बार फिर से गोत्र को लेकर चर्चा होने लगी है। आइए, जानते हैं हिंदू धर्म में गोत्र का धार्मिक महत्व क्या है।
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क्या है गोत्र की परंपरा और इसका महत्व
पौराणिक मान्यता के अनुसार गोत्र का संबंध ऋषि परंपरा से है। हम सभी ऋषि-मुनि की संतान माने जाते हैं। ऐसे में पौराणिक मान्यता है कि हम सभी ऋषियों की संतानें है इसलिए हिंदू धर्म में हर व्यक्ति का संबंध एक ऋषिकुल से माना जाता है। प्राचीन काल से ही गोत्र व्यवस्था चली आ रही है। यह चार ऋषियों से शुरू हुई। ये ऋषि अंगिरा, कश्यप, वशिष्ठ और भृगु थे। बाद में जमदग्नि, अत्रि, विश्वामित्र और अगस्त्य भी इसमें शामिल हुए। गोत्र एक तरह की पहचान है, जिससे हमारी किसी व्यक्ति की वंशावली का पता चलता है।
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एक ही गोत्र में नहीं होते विवाह, कारण जानें
गोत्र का मतलब है समान पूर्वजों वाले लोग। ये लोग खून के रिश्ते से जुड़े होते हैं। यह रिश्ता पिता की तरफ से चलता आता है। लेकिन यह रिश्ता हमेशा के लिए नहीं चलता केवल सातवीं पीढ़ी तक के लोग ही गोत्रीय माने जाते हैं। गोत्र से किसी की वंशावली का पता चलता है। ऐसे में जाहिर-सी बात है कि एक ही वंश से चले आ रहे दो लोगों की शादी नहीं हो सकती। उनके बीच रक्त संबंध माना जाता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार अगर कोई पुरुष किसी समान गोत्र वाली महिला से विवाह करता है, तो उनसे होने वाली संतानों में कोई शारीरिक या मानसिक विकार होने की संभावना रहती है इसलिए हिंदू धर्म का पालन करने वाले ज्यादातर लोग एक ही गोत्र में विवाह नहीं करते।
विज्ञान से भी जुड़ा है गोत्र का आधार
गोत्र का अर्थ रक्त संबंध की पहचान से है। इसी तरह साइंस की थ्योरी के अनुसार एक ही ब्लड ग्रुप यानी रक्त समूह वाले दो लोगों के बीच शादी से जन्मे बच्चों में जेनेटिक बीमारियों का खतरा बताया गया है। विज्ञान के अनुसार कि गोत्र प्रथा का संबंध हमारे जीन्स से है। एक ही गोत्र में शादी से बच्चों में जेनेटिक बीमारियों का ख़तरा बढ़ जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि समान गोत्र वाले लोगों में जीन्स भी मिलते-जुलते होते हैं। इससे आनुवंशिक समस्याएं हो सकती हैं। वैज्ञानिक मानते हैं कि अलग-अलग गोत्र के लोगों की शादी से जीन्स में विविधता आती है। इससे बच्चे स्वस्थ रहते हैं।
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आधुनिक दिखने की चाह में गोत्र का बनता मजाक
प्राचीन काल से गोत्र की परंपरा को एक विशिष्ट पहचान से जोड़कर देखा जाता है। गोत्र के आधार पर किसी की सदियों पुरानी वंशावली को भी जाना जा सकता है। साथ ही इसे जानकर एक ही गोत्र में विवाह की स्थिति से भी बचा जा सकता है। इससे स्वस्थ समाज की रचना में भी मदद मिलती है। वहीं, आधुनिक समाज में कई लोग खासकर मनोरंजन की दुनिया जैसे फिल्म आदि में इस परंपरा पर कई अभद्र टिप्पणी करने के साथ कई विवादित डायलॉग्स लिखे जाते हैं। आधुनिक दिखने की चाह में लोग बिना सोचे-समझे गोत्र को असमानता और भेदभाव से जोड़कर भी देखते हैं जबकि पुराणों में इस बात का उल्लेख किया गया है कि हर मनुष्य किसी न किसी ऋषि की ही संतान है, इसलिए हिंदू धर्म में गोत्र की परंपरा एक-दूसरे से जुड़े रहकर प्रेम और सम्मान की शिक्षा देती है।
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