वैसे तो चुनावी हार के कई वजह होते हैं लेकिन हालिया चार राज्यों के चुनावी परिणाम बहुत कुछ कह रहे हैं। मध्यप्रदेश और राजस्थान में कांग्रेस की बड़ी हार से सियासी हलकों में कई तरह की बाते कही जा रही है। कुछ लोग कांग्रेस की रणनीति पर सवाल उठा रहे हैं तो कुछ लोग यह भी कह रहे हैं कि पं मोदी के सामने आज सब बौने हो गए हैं और यही वजह है कि हिंदी पट्टी में मोदी की डंका बज रही है। लेकिन सच यह नहीं है। सच का दूसरा हिस्सा बड़ा ही कड़वा है और यह ऐसा सच है जो कांग्रेस को खाये जा रहा है।
सबसे बड़ा सच तो यही है कि तीन राज्यों में कांग्रेस की हार अपनी रणनीति से नहीं घमंड की वजह से हो गई। अगर चुनावी खेल में इंडिया गठबंधन के दलों को भी शामिल किया जाता तो आज कांग्रेस की हालत यह नहीं होती। परिणाम भी दूसरे तरह के ही होते। जानकार कह रहे हैं कि हिंदी गठबंधन के कई दल कांग्रेस के संपर्क में थे और मध्यप्रदेश से लेकर राजस्थान तक कुछ सीटों की मांग भी कर रहे थे लेकिन कांग्रेस ने उसकी मांग को ख़ारिज कर दिया। कांग्रेस का घमंड इतना बढ़ा हुआ था कि उसे लगने लगा कि उसे किसी की जरूरत नहीं है। कांग्रेस को यह भी लगा कि इन पांच राज्यों में से चार राज्य में वह चुनाव जितने जा रही है और बीजेपी को बुरी तरह से पराजित भी करेगी। कांग्रेस को यह भी लग रहा था कि इस जीत के बाद इंडिया गठबंधन में उसकी औकात और भी बढ़ जाएगी और फिर वह जो चाहेगी वही सब होगा। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। सब गोलमाल हो गया। बीजेपी ने कांग्रेस को कही का नहीं छोड़ा।
सबसे बड़ी बात तो यह है कि कांग्रेस तीन राज्यों की लड़ाई अपनी रणनीति से नहीं बल्कि घमंड की वजह से हार गई है। अगर कांग्रेस ने चुनावी राज्यों में कम से कम इंडिया गठबंधन के नेताओं से ही सलाह मशविरा करती और कुछ सीटें उन्हें भी दे देती तो इसका बड़ा असर चुनाव परिणाम पर पड़ता। अब जानकार भी इस बात का आंकलन कर रहे हैं कि कांग्रेस के नेताओं ने ही कांग्रेस को हरा दिया। जानकार यह भी कह रहे हैं कि मध्यप्रदेश में पार्टी की जो हार हुई है अगर अखिलेश और कुछ दलों को कुछ सीटें दी जाती तो खेल कुछ दूसरा ही होता। लेकिन कांग्रेस ने ऐसा नहीं किया। मध्यप्रदेश में अखिलेश यादव ने मात्र पांच सीटों की मांग कांग्रेस से की थी। लेकिन कमलनाथ ने सीट नहीं दिया और अखिलेश के बारे में यह भी कहा कि छोड़िये अखिलेश -वखिलेश को। कमलनाथ का यह विडिओ वायरल हो गया। कमलनाथ का यह बी अयान कांग्रेस पर भारी पड़ा। यह बात और है कि मध्यप्रदेश में सपा को मात्र आधा फीसदी वोट ही मिला लेकिन जिन सीटों पर सपा के उम्मीदवार खड़े थे वे काफी अहम् थे। हो सकता है कि सपा साथ होकर लड़ती तो खेल कुछ और ही होता।
जानकर भी कह रहे हैं कि कमलनाथ अखिलेश के साथ मिलकर चुनाव लड़ते ,जदयू का भी सहारा लेते और सब नेताओं के साथ मिलकर चुनाव लड़ते तो आज परिणाम कुछ और ही होते। मध्यप्रदेश में बसपा को वैसे तो मात्र साढ़े तीन फीसदी वोट ही पड़े हैं। इसके साथ ही आप को भी आधा फीसदी वोट पड़े हैं। लेकिन कांग्रेस इन दलों के साथ मिलकर चुनाव में जाती तो खेल कुछ और होता। आज इतनी बड़ी हार कांग्रेस की नहीं होती। कांग्रेस की यह हार आगे के लिए सबक के सामान है लेकिन पार्टी अब कहाँ से कहाँ पहुँच जाएगी यह भी कौन जाने !
इसी तरह से कांग्रेस और बीजेपी के बीच चार फीसदी वोट का अंतर है। अगर कांग्रेस छत्तीसगढ़ के कुछ बड़े नेताओं और वहां के कुछ दलों को एक साथ लेकर चुनावी मैदान में जाती तो तस्वीर कुछ अलग ही होती।
राजस्थान में कांग्रेस से दो फीसदी ज्यादा वोट बीजेपी को मिले हैं। लेकिन वहां कई पार्टियां चुनावी मैदान में रही। अगर उन सभी पार्टियों से मिलकर कांग्रेस साझा रणनीति बनाती तो राजस्थान में भी कांग्रेस की हार नहीं होती। कह सकते हैं कि अपनी ख़राब रणनीति की वजह से ही बीजेपी से कांग्रेस हार गई।