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Massive Fire in Uttarkashi: मोरी ब्लॉक के सालरा गांव में लगी भीषण आग

Massive fire broke out in Salra village of Mori block.

Massive Fire in Uttarkashi: उत्तरकाशी अग्निकांड मोरी तहसील क्षेत्र में साल दर साल आग की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं, लेकिन इनकी रोकथाम और नियंत्रण के लिए पुख्ता इंतजाम नहीं किए जा रहे हैं। क्षेत्र के 40 से अधिक गांव अभी भी सड़क से नहीं जुड़े हैं। मोरी के 20 से ज्यादा गांवों में आग लगने की बड़ी घटनाएं हुई हैं। प्रशासन ने ऐसी आग से बचाव के लिए गांवों में संसाधन तक उपलब्ध नहीं कराए हैं।

इसके चलते यहां फायर ब्रिगेड और राहत एवं बचाव दल को पहुंचने में घंटों लग जाते हैं। गांवों में पानी की पर्याप्त आपूर्ति भी नहीं है। इन्हीं कारणों से सालरा गांव में अनिल सिंह के भवन में लगी आग इतनी भीषण हो गयी कि समय रहते उस पर काबू नहीं पाया जा सका।

आठ किलोमीटर की पैदल दूरी पर सालरा

यमुना घाटी में बड़कोट के पास एक अग्निशमन केंद्र (Fire Brigade Center) स्थित है। इसके अलावा एक फायर ब्रिगेड की गाड़ी पुरोला और एक मोरी में तैनात है। सालरा मोरी से 8 किलोमीटर की पैदल दूरी पर है। इसके चलते घटना की सूचना के चार घंटे बाद मोरी से फायर ब्रिगेड और एसडीआरएफ की टीम मौके पर पहुंच सकी। तब तक 15 इमारतें जलकर खाक हो चुकी थीं। यदि सालरा में सड़क होती तो फायर ब्रिगेड की टीम एक घंटे में मोरी से गांव पहुंच सकती थी।

इतना ही नहीं गांव में पानी की कमी भी आग बुझाने में बाधा बनी। गांव में पुरानी पेयजल योजना (Old Drinking Water Scheme) से पानी की आपूर्ति नहीं होती है। इसके चलते ग्रामीणों को करीब आधा किमी दूर स्थित जल स्रोत से पानी लाना पड़ा।

प्रशासन ने ऐसी आग से बचाव के लिए गांवों में संसाधन उपलब्ध नहीं कराए हैं। ओसला गांव (Osla Village) के पूर्व प्रधान ठाकुर सिंह (Former Pradhan Thakur Singh) का कहना है कि नालों में आग लगने से गांव जल रहे हैं। गांवों में न तो संसाधन हैं और न ही ग्रामीणों को जागरूक किया गया है।

लकड़ी से घर बनाना है एक मजबूरी

जिले के सीमावर्ती क्षेत्रों (Border Areas) में अधिकांश इमारतें देवदार (Cedar), कैल (Cal) और चीड़ (Pine) की लकड़ी से बनी हैं। इन इमारतों में ग्रामीण अपने जानवरों के लिए चारा भी जमा करके रखते हैं, जो इमारतों में आग लगने की स्थिति में बारूद (Gunpowder) का काम करता है। जिला आपदा प्रबंधन अधिकारी (District Disaster Management Officer) देवेन्द्र पटवाल (Devendra Patwal) का कहना है कि सीमांत क्षेत्रों में लकड़ी के भवन बनाने के दो कारण हैं।

सबसे पहले, सीमावर्ती क्षेत्रों में भारी बर्फबारी (Heavy Snowfall) होती है और वर्ष के अधिकांश समय मौसम ठंडा (Weather Cold) रहता है। ठंड से बचने के लिए ग्रामीण लकड़ी से घर बनाते हैं। दूसरा कारण यह है कि गांव सड़क से कई किलोमीटर दूर हैं, जिसके कारण यहां निर्माण सामग्री ले जाना संभव नहीं है। अधिकांश लकड़ी की इमारतें उन गांवों में हैं जो सड़क से दूर हैं।

सोचने का समय नहीं मिला

सलरा गांव के किताब सिंह का कहना है कि, सुबह करीब साढ़े ग्यारह बजे आग अनिल सिंह के घर से शुरू हुई। देखते ही देखते आग ने 16 इमारतों को अपनी चपेट में ले लिया। इमारतों के साथ-साथ अन्न भंडार (Granary) भी जल गये। सब कुछ इतनी तेजी से हुआ कि सोचने का वक्त तक नहीं मिला। आग की लपटें इतनी भीषण थी कि ग्रामीण पास जाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे थे।

20 वर्षों में 438 इमारतें आग से नष्ट हो गईं

पिछले 20 वर्षों में मोरी में 438 इमारतें जलकर राख हो चुकी हैं। सबसे भीषण अग्निकांड 2009 में सिदरी गांव में हुआ था। इसमें 26 इमारतें समेत दो ग्रामीण और 20 से ज्यादा मवेशी जिंदा जल गए थे। घटना के पांच साल बाद प्रभावित परिवारों को अपना घर बनाने के लिए 45,000 रुपये की राशि मिली।

हालाँकि, प्रभावित परिवारों को अभी भी उचित रूप से विस्थापित नहीं किया गया है। सिदरी अग्निकांड में जिंदा जलने वालों में गजेंद्र सिंह और उनकी बेटी भी शामिल थीं। गजेंद्र के पिता कौर सिंह, मां जुमली देवी और पत्नी त्रेपनी देवी अभी तक सदमे से उबर नहीं पाए हैं। मोरी के 20 से ज्यादा गांवों में आग लगने की बड़ी घटनाएं हुई हैं।

Chanchal Gole

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