MP Election News: मध्यप्रदेश के आगामी विधानसभा चुनाव (MP Election) को देखते हुए बीजेपी ने दूसरी लिस्ट जारी की है । 39 लोगों की यह दूसरी लिस्ट है। पहली लिस्ट तो महीना भर पहले ही निकाली गई थी। तब भी बीजेपी के भीतर बवाल मच गया था। अब भी वही हाल है। जिन लोगों के टिकट काटे हैं वे अब क्या करेंगे? कई साल से टिकट के लिए वे झूठ बोल रहे थे। नारे लगा रहे थे। पैसे जमा कर रहे थे और नेता कहलाने का सब खेल कर रहे थे। अपने बड़े नेताओं के पांव भी दबा रहे थे। अपने से छोटे नेताओं पर रौब भी गांठ रहे थे। लेकिन अब जब उन्हें टिकट नहीं मिला तो बमक गए हैं। जैसे सांड़ को लाल कपड़ा दिखाते ही बंकी आ जाती है वही हाल बीजेपी नेताओं का हो रहा है।
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बीजेपी की परेशानी मध्य प्रदेश में बढ़ी हुई है। कांग्रेस वालों ने परेशान कर रखा है। ये कांग्रेस वाले आखिर करेंगे क्या? उनकी सरकार को बीजेपी वालों ने हड़प ली थी। सरकार की डकैती कर ली गई थी। बड़े ही जतन से कांग्रेस ने सत्ता प्राप्त की थी। लेकिन सिंधिया के समर्थकों ने कांग्रेस को कही का नहीं छोड़ा। कमलनाथ बड़े अरमान के साथ सरकार के आगे थे लेकिन सब कुछ ख़त्म जो हो गया। अब तो कमलनाथ यह भी दाव खेल रहे हैं कि वे सीएम बने या नहीं बने शिवराज की सरकार तो नहीं बनेगी। धोखा से बीजेपी वापस आ भी गई तो उसका भी वही इंतजाम किया जाए जो कांग्रेस के साथ बीजेपी ने किया था।
और एक बात यह भी कि जो कहानी अभी बीजेपी के भीतर लोग देख रहे हैं वहीं कहानी कांग्रेस के भीतर भी होनी है। कांग्रेस के पास भी एक सीट पर दस-दस उम्मीदवार लगे हुए हैं। टिकट तो किसी एक को ही मिलनी है। बाकी के 9 लोग तो खिलाफत ही करेंगे। खिलाफत ऐसा की कोई उम्मीदवार का ही विरोध करेगा तो कोई पार्टी का भी विरोध कर सकता है। आज जो लोग बीजेपी से कांग्रेस की तरफ भाग रहे हैं वे कोई कांग्रेस या बीजेपी में आस्था नहीं रखते। उनकी आस्था टिकट से है। टिकट मिल जाने के बाद लगन होती है जीत जाते हैं तो मंत्री बनने के लिए लग जाते हैं लोग। राजनीति करने वाले कितने मक्कार होते हैं उतने मक्कार शायद ही किसी और पेशे में लोग होते होंगे।
तो सच यही है कि जैसे ही 39 लोगों की सूची बीजेपी ने जारी की है बीजेपी के भीतर क्रंदन का भाव है। जिन्होंने आस लगाई थी उनकी आस टूट गई। कुछ पार्टी से भाग निकले तो कोई श्राप की मुद्रा में खड़े हैं। ब्राह्मण लोग तो श्राप ही दे सकते हैं। कलयुग में श्राप किसको कितना लगता है यह तो शोध का विषय है।
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सतना से बीजेपी ने गणेश सिंह को मैदान में उतारा है। सिंह साहब अभी सांसद भी है। अब विधायक का चुनाव लड़ेंगे। लेकिन जो रत्नाकर चतुर्वेदी सालों से टिकट की चाह रखे हुए थे अब उबल गए हैं। उन्होंने पार्टी से इस्तीफा दे दिया और ऐलान कर दिया कि वह चुनाव लड़ेंगे और निर्दलीय लड़कर गणेश सिंह को हराएंगे।
लेकिन मामला केवल सतना तक का ही तो है नहीं। इस बार बीजेपी ने आधा दर्जन सांसदों और केंद्रीय मंत्रियों को भी चुनावी मैदान में उतार दिया है। इस खेल के पीछे बीजेपी की दो चाल भी है। पहली बात तो यही है कि इन सांसदों को मैदान में उतारकर बीजेपी हर हाल में चुनाव जीतना चाहती। अगर ये सांसद और मंत्री चुनाव हार जाते हैं तो अगले लोकसभा चुनाव में भी इन्हें टिकट से वंचित कर दिया जाएगा। बीजेपी की तरफ से कहा जाएगा कि जब आप विधान सभा का चुनाव नहीं जीत सकते तो लोकसभा का चुनाव कैसे जीत सकेंगे? तीसरी बात यह भी है कि जिन सांसदों को विधान सभा के लिए टिकट दिए जाने की बात है उनमें से कई लोग उम्र सीमा भी पार कर रहे हैं। यानी कह सकते हैं कि इस चुनाव के बहाने ही कई नेताओं को ठिकाने लगाने की कोशिश भी की।
सांसदों को उम्मीदवार बनाया गया है उनमें शामिल हैं नरेंद्र सिंह तोमर, कैलाश विजयवर्गीय, फागण सिंह कुलस्ते, प्रह्लाद पटेल, ऋतिक पाठक और गणेश सिंह। ये सभी नेता मध्यप्रदेश (MP Election) के बड़े नेता है और इनकी अपनी पहचान भी है। लेकिन बीजेपी ने इस चुनाव के जरिये भी इनकी जड़ों को काटने की शुरुआत कर दी हैं। रही बात जिनको टिकट नहीं दी जा रही है उनका बवाल तो होगा ही। पार्टी से अभी बहुत से लोग निकल सकते हैं। बीजेपी यह सब जानती है। सिंधिया समर्थक अधिकतर नेता कांग्रेस में फिर से लौट चुके हैं। अगर बीजेपी को विधान सभा चुनाव में जीत हासिल नहीं होती है तो सबसे ज्यादा राजनीतिक बेइज्जती सिंधिया की हो सकती है। इसलिए सिंधिया भी कोई तरकीब निकाल रहे हैं।