New Delhi: जो ज्यादा बोलता है और ज्यादा एक्शन दिखाता है उसे पीएम मोदी ( PM MODI ) पसंद नही करते।अमित शाह तो कतई नहीं ।और जनता से कट चुके नेताओं को तो दोनो देखना तक नही चाहते ।बीजेपी में ऐसे दर्जनों नेता है जिनकी कभी तूती बोलती थी ।बब्बर शेर कहलाते थे। विपक्ष को मटियामेट कर देते थे लेकिन वही नेता बिल्ली की भांति मौन हैं, आस लगाए बैठे हैं कि शायद आका की नजर इनपर इनायत हो जाए लेकिन सच यही है कि आका इनके नाम तक भूल गए हैं। ऐसे नेताओं की लंबी सूची है कहने के लिए बीजेपी में तो हैं लेकिन उनकी कोई न पूछ है न कोई औकात न सरकार में है न ही संगठन में, उम्मीद भी अब नहीं बची है जुगाड तो बहुत करते है कि साहेब की कृपा मिल जाए लेकिन सब निरर्थक एक उम्मीद थी कि हालिया मंत्रिमंडल फेर बदल में कुछ मिल सकती है लेकिन जो रुख है उससे तो इनकी दाल भी नही गलेगी। इनमे से कई नेता संघ के पास भी दौड़ लगा रहे है तो कुछ अपनी जाति के बड़े नेताओं के दरबार में हाजिरी लगा रहे हैं लेकिन सब बेकार। सच तो ये है कि संघ से ऊपर मौजूदा बीजेपी भारी पड़ चुकी है तो जातीय नेता तो खुद डरे हुए हैं कि न जाने आगामी चुनाव में उनकी स्थिति क्या होगी।
हालांकि जानकार सूत्रों का कहना है कि सरकार और पार्टी में किनारे लगाए गए नेताओं को शायद ही कोई बड़ी जिम्मेदारी मिले। उन्होंने कोई छोटा मोटा काम मिल सकता है लेकिन बड़ी जिम्मेदारी के लिए नए नेता तैयार किए जा रहे हैं। पिछले साल मुख्तार अब्बास नकवी का राज्यसभा का कार्यकाल खत्म हो रहा था तो किसी को अंदाजा नहीं था कि वे इस तरह से किनारे होंगे। उनको कहीं से भी राज्यसभा नहीं मिली और वे सरकार से बाहर हो गए। फिर न संगठन में कोई जगह मिली और न राज्यपाल बनाए गए। भाजपा के सबसे चर्चित मुस्लिम नेता सैयद शाहनवाज हुसैन भी बिहार में तालमेल टूटने के बाद सरकार से बाहर हो गए हैं। वे केंद्रीय चुनाव समिति से भी बाहर हैं।
बिहार के दो और नेता, जो एक जमाने में भाजपा की राजनीति और मीडिया दोनों में बहुत खास जगह रखते थे, अभी हाशिए पर हैं। पूर्व केंद्रीय मंत्री राजीव प्रताप रूड़ी का नाम जरूर भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ताओं की सूची में है लेकिन उनको लंबे समय से प्रेस कांफ्रेंस करते या पार्टी की तरह से बयान देते नहीं देखा गया है।
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इसी तरह पिछली फेरबदल में हटाए गए केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद भी नई जिम्मेदारी के इंतजार में हैं। उन्होंने हालांकि पिछले दिनों दो-चार प्रेस कांफ्रेंस की लेकिन उनको कोई आधिकारिक जिम्मेदारी नहीं मिली है।
ज्यादा समय नहीं बीता, जब डॉक्टर हर्षवर्धन दिल्ली में भाजपा की राजनीति का सबसे बड़ा चेहरा थे। पार्टी ने 2013 का चुनाव उनके चेहरे पर लड़ा था और 32 सीट के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनी थी। उनको भी पिछली फेरबदल में सरकार हटा दिया गया था। दिल्ली में इतनी राजनीति हो रही है लेकिन पार्टी सांसद होने के बावजूद उनके पास कोई जिम्मेदारी नहीं है। ऐसे ही भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता रहे पूर्व केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावडेकर भी अपने लिए नई भूमिका तलाश रहे हैं, जो मिल नहीं रही है। कर्नाटक के अनंत हेगड़े, उत्तर प्रदेश के महेश शर्मा, उत्तराखंड के रमेश पोखरियाल निशंक, राजस्थान के राज्यवर्धन सिंह राठौड़, झारखंड के जयंत सिन्हा जैसे कई नेता हैं, जो राजनीतिक पुनर्वास के इंतजार में हैं।