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राम  मंदिर के उद्घाटन पर सियासी पारा हाई, मंदिर में जाने को लेकर बंटा विपक्ष!

Political turmoil in Ram Mandir Inaguration: नई अयोध्या में नई उमंग है, राम भक्तों में उत्साह है लेकिन इस उत्साह पर राजनीतिक जंग भी हावी होने लगी है। समाजवादी पार्टी के सांसद शफीकुर्रहमान बर्क (Samajwadi Party MP Shafiqur Rahman Burke) का बयान महज सियासी ही नहीं बल्कि सुप्रीम कोर्ट (Supreem Court) के फैसले पर भी सवाल उठा रहा है। अयोध्या (Ayodhya) में मंदिर का निर्माण कोर्ट के आदेश पर ही हुआ इसके बावजूद बर्क कह रहे है कि राम मंदिर का निर्माण इंसानियत, धर्म और कानून के खिलाफ है। सरकार की ताकत के बल पर बाबरी मस्जिद हमसे छीन ली गई। जब कोर्ट ही गलत फैसले देने लगे तो हम भी क्या कर सकते हैं बर्क की ये बातें उनकी सोच बयां कर रही हैं और बीजेपी ने अपने अंदाज में जवाब भी दिया है।

बीजेपी नेता मुख्तार अब्बास नकवी (Mukhtar Abbas Naqbi) ने भी समाजवादी पार्टी पर जमकर प्रहार किया। दरअसल आपको बता दें कि भगवान राम के नाम पर सियासत पहले भी होती रही है और आगे भी इसके थमने के आसार नहीं हैं। जैसे-जैसे प्राण प्रतिष्ठा की तारीख नजदीक आएगी वैसे-वैसे जुबानी जंग भी हावी होती रहेगी। अयोध्या में रामलला का भव्य मंदिर करोड़ों श्रद्धालुओं मान्यताओं का वो आधार है जो कई युगों की विरासत का संदेश दे रहा है। 500 वर्ष के संघर्ष के बाद मंदिर का सपना साकार हुआ है और 22 जनवरी को एक नये अध्याय का आगाज़ होने जा रहा है।

पूरी अयोध्या जब रामलला के स्वागत की तैयारियों में जुटी है तब मंदिर के मुद्दे पर राजनीतिक महाभारत भी नये सिरे से छिड़ चुकी है। एक तरफ बीजेपी है जिसने राम मंदिर के सहारे शून्य से शिखर तक सफर तय किया और दूसरी तरफ वो विपक्षी दल हैं जिन पर बार-बार मंदिर निर्माण में अड़ंगे डालने का आरोप लगता रहा है। आरोपों की राजनीति का सिलसिला 22 जनवरी को प्राण प्रतिष्ठा समारोह के निमंत्रण को लेकर भी हावी है। जिन्हें न्यौता नहीं मिला है वो सवाल उठा रहे हैं और कई नेता ऐसे भी हैं जो कार्ड मिलने के बाद भी जाने के मूड में नहीं हैं।

अयोध्या में 22 जनवरी को प्राण प्रतिष्ठा होनी है। उससे पहले अब मंदिर निर्माण में किसका कितना योगदान रहा इसे लेकर भी राजनीति तेज है। उद्धव ठाकरे की शिवसेना भी सवाल जवाब वाली सियासत का हिस्सा बनी है और उसके निशाने पर बीजेपी है।  राम मंदिर को लेकर लंबा संघर्ष हुआ आंदोलन के साथ ही अदालती लड़ाई भी लड़ी गई। मगर जब प्राण प्रतिष्ठा की शुभ घड़ी करीब आ रही है तो सियासत भी अलग ही अंदाज और मिजाज के साथ आगे बढ़ रही है।

राम नाम पर मचा सियासी घमासान रोज नए तूफान खड़े कर रहा है। बीजेपी पहले ही राम मंदिर का मुद्दा घर-घर पहुंचाने की तैयारी कर चुकी है। ऐसे में विपक्ष की ओर से कोई निमंत्रण को लेकर सवाल उठा रहा है तो कोई राम के राजनीतिक इस्तेमाल का आरोप लगाकर बीजेपी को घेरने की कोशिश कर रहा है। सबकी निगाहें 2024 चुनाव पर टिकी हैं और बड़ा सवाल यही है कि क्या चुनाव में हर किसी को अब राम-राम ही करना पड़ेगा।

चुनाव से पहले राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा होनी है। ये सिर्फ मंदिर नहीं बल्कि लोगों की आस्था का केंद्र है। 22 जनवरी को भव्य समारोह के जरिए देश दुनिया के सनातनियों को बड़ा संदेश दिये जाने की तैयारी है। वहीं इस पर हो रही बयानबाजी ये बता रही है कि राम नाम पर छिड़ी जंग अभी और भी आक्रामक होगी।

Shubham Pandey। Uttar Pradesh Bureau

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