INCREASE IN PRICE OF PIROL: उत्तराखंड में पिरूल के दामों में 3 गुना बढ़ोतरी, वनाग्नि रोकथाम के लिए सरकार का बड़ा फैसला
INCREASE IN PRICE OF PIROL: उत्तराखंड में वनाग्नि पर नियंत्रण और पिरूल के अधिक से अधिक उपयोग को बढ़ावा देने के लिए राज्य सरकार ने इसके दामों में तीन गुना से भी ज्यादा की बढ़ोतरी की है। सरकार ने इस संबंध में आदेश जारी करते हुए कहा है कि वन विभाग के साथ अन्य संबंधित विभाग भी इस योजना में अपनी भूमिका निभाएंगे। पिरूल, जो जंगलों में सूखी घास और पत्तियों के रूप में पाया जाता है, अक्सर गर्मियों में आग लगने का प्रमुख कारण बनता है। सरकार का मानना है कि इसके दाम बढ़ाने से लोग इसे ज्यादा मात्रा में इकट्ठा करेंगे, जिससे जंगलों में आग लगने की घटनाओं में कमी आएगी।
INCREASE IN PRICE OF PIROL: उत्तराखंड सरकार ने वनाग्नि (जंगलों की आग) रोकने और पिरूल एकत्रीकरण को बढ़ावा देने के लिए पिरूल की कीमतों में 3 गुना से अधिक की बढ़ोतरी कर दी है। पहले पिरूल की कीमत ₹3 प्रति किलो थी, जिसे अब बढ़ाकर ₹10 प्रति किलो कर दिया गया है। राज्य सरकार ने इस संबंध में आदेश जारी कर दिए हैं, जिससे जंगलों की आग पर नियंत्रण करने के साथ-साथ स्थानीय लोगों की आजीविका में भी सुधार होगा।
पिरूल के बढ़े दाम: वनाग्नि रोकने की रणनीति का अहम हिस्सा
उत्तराखंड के वन क्षेत्रों में लगभग 15.25% हिस्सा चीड़ के जंगलों से घिरा हुआ है। चीड़ के पेड़ों से गिरने वाली सूखी पत्तियां (पिरूल) अत्यधिक ज्वलनशील होती हैं और जंगलों में आग लगने की एक प्रमुख वजह बनती हैं। हर साल गर्मियों में राज्य के जंगलों में आग लगने की सैकड़ों घटनाएं सामने आती हैं, जिससे वन संपदा को भारी नुकसान पहुंचता है। इसी समस्या को देखते हुए सरकार ने पिरूल की कीमतों में बढ़ोतरी की है, ताकि स्थानीय लोग अधिक मात्रा में पिरूल एकत्रित करें और इसे वन विभाग को बेचकर आय अर्जित कर सकें।
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स्थानीय लोगों के लिए रोजगार का नया अवसर
सरकार के इस फैसले से स्थानीय ग्रामीणों को आर्थिक रूप से भी लाभ मिलेगा। पिरूल की बढ़ी हुई कीमतों से लोगों में इसे एकत्र करने का उत्साह बढ़ेगा, जिससे वे अतिरिक्त आय अर्जित कर सकेंगे। इसके अलावा, पिरूल से बायो फ्यूल और अन्य उपयोगी उत्पाद बनाए जाते हैं, जिससे राज्य की अर्थव्यवस्था को भी बल मिलेगा। सरकार का मानना है कि इस कदम से वनाग्नि की घटनाओं में कमी आएगी और पर्यावरण संरक्षण में भी मदद मिलेगी।
वन विभाग के साथ अन्य विभागों की भी होगी जिम्मेदारी
पहले वनाग्नि की रोकथाम की जिम्मेदारी केवल वन विभाग की थी, लेकिन अब जिला प्रशासन और अन्य विभागों को भी इस कार्य में शामिल किया गया है। जिलाधिकारियों को जंगलों में आग की घटनाओं को रोकने के लिए विशेष टीमें गठित करने के निर्देश दिए गए हैं। इन टीमों को जंगलों में गश्त करने, आग लगने की स्थिति में तत्काल कदम उठाने और स्थानीय लोगों को आग से बचाव के उपाय सिखाने की जिम्मेदारी दी गई है।
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दो जिलों में पहले से सक्रिय की गई टीमें
प्रदेश के दो जिलों में जिलाधिकारियों ने वनाग्नि रोकथाम के लिए विशेष टीमों का गठन कर दिया है। इन टीमों को जंगलों में आग की घटनाओं पर नजर रखने, आग लगने की स्थिति में तत्काल कार्रवाई करने और स्थानीय लोगों को जागरूक करने की जिम्मेदारी दी गई है। इसके अलावा, राज्य सरकार अन्य जिलों में भी इस योजना को लागू करने की तैयारी कर रही है।
वनाग्नि से होने वाले नुकसान पर एक नजर
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उत्तराखंड में हर साल जंगलों की आग से लाखों हेक्टेयर वन क्षेत्र प्रभावित होता है। यह न केवल जैव विविधता को नुकसान पहुंचाता है, बल्कि पर्यावरण और जलवायु पर भी गंभीर प्रभाव डालता है। जंगलों की आग से वन्यजीवों का प्राकृतिक आवास नष्ट हो जाता है, जिससे उनका अस्तित्व संकट में आ जाता है। इसके अलावा, यह कार्बन उत्सर्जन को बढ़ाकर वायु प्रदूषण भी फैलाता है।
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सरकार के इस फैसले से क्या बदलेगा?
जिला प्रशासन की भागीदारी बढ़ेगी – वन विभाग के साथ अन्य सरकारी विभाग भी वनाग्नि रोकथाम में सक्रिय रूप से कार्य करेंगे।
वनाग्नि की घटनाओं में कमी आएगी – पिरूल को जलने से पहले एकत्र करने की प्रक्रिया से जंगलों में आग लगने की घटनाओं में कमी आएगी।
स्थानीय लोगों को रोजगार मिलेगा – पिरूल बेचकर ग्रामीणों की आय में वृद्धि होगी।
पर्यावरण को मिलेगा संरक्षण – जंगलों की आग से होने वाले वायु प्रदूषण में कमी आएगी और वन्यजीवों का संरक्षण होगा।
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