Ramcharitmanas Controversy: क्षेत्रीय पार्टियों के रडार पर भगवान् राम क्यों है ?
अभी हाल में ही बिहार ,यूपी और कर्नाटक में भगवान् राम के खिलाफ बहुत कुछ सुना गया। वैसे दिल्ली की आम आदमी पार्टी भी इसमें पीछे नहीं है। उसके भी कई नेता भगवान् राम के खिलाफ अक्सर बोलते रहे हैं। कइयों ने तो बहुत कुछ कहा है।
प्रभु श्रीराम इन दिनों राजनीतिक रडार पर हैं। भारत एक धार्मिक देश है और भगवान् राम के प्रति आस्था यहाँ के कण -कण में है लेकिन बदली राजनीति में अब बहुत कुछ बदलता दिख रहा है। जिस तरह से कई सुबो में भगवान् राम को लेकर राजनीति होती दिख रही है उसे गौर से देखें तो साफ़ हो जाता है कि जो पार्टियां जाति आधारित है वहाँ ऐसी राजनीति कुछ ज्यादा ही हो रही है। अभी हाल में ही बिहार ,यूपी और कर्नाटक में भगवान् राम के खिलाफ बहुत कुछ सुना गया। वैसे दिल्ली की आम आदमी पार्टी भी इसमें पीछे नहीं है। उसके भी कई नेता भगवान् राम के खिलाफ अक्सर बोलते रहे हैं। कइयों ने तो बहुत कुछ कहा है।
लगता है कि भगवान् अब सबके राम नहीं रह गए। सवर्ण समाज को आज भी प्रभु राम पर काफी आस्था है लेकिन दलित और पिछड़ी जातियों ने नेता राम को शायद भगवान् नहीं मान रहे। बिहार से उठा यह बवंडर जब यूपी पहुंचा तो साफ़ हो गया कि जो नेता भगवान् राम पर टिप्पणी कर रहे हैं वे सब पिछड़ी समाज से हैं। यह बात और है कि राजनीति में उनकी अपनी हाशियत है और जन आधार भी।
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पहले बिहार के चंद्रशेखर ने भगवान् राम पर टिप्पणी की। उन्होंने बहुत कुछ कहा। बवाल मचा तो वे चुप हो गए लेकिन कोई माफ़ी नहीं मांग सके। चंद्रशेखर यादव समाज से आते हैं और बिहार में इस समाज की राजनीति अधिकतर राजद के साथ चलती है। इस मामले में उनके किसी भी बड़े नेता ने कुछ नहीं बोला। तेजस्वी भी नहीं। लेकिन सवर्ण नेताओं ने इसका विरोध किया। राजद के भीतर जो सवर्ण नेता है उन्होंने साफ़ किया कि ऐसी टिप्पणी नहीं जानी चाहिए। हम इसका विरोध करते हैं। बाद में कुछ लोगों ने यह भी कहा कि चंद्रशेखर की टिप्पणी उनकी व्यक्तिगत टिप्पणी है। यह पार्टी की राय नहीं है।
इसके बाद यूपी में स्वामी प्रसाद मौर्य भगवान् राम पर बोल गए। उनकी टिप्पणी बिहार वाली टिप्पणी से भी आगे की रही। सपा के किसी नेता ने कुछ भी नहीं कहा। हालांकि खबर आयी कि सपा प्रमुख अखिलेश यादव इससे नाराज हैं। मौर्य कुर्मी समाज से आते हैं और उनकी राजनीति भी जमीनी है। यूपी के सवर्णो ने इसका भारी विरोध किया। बीजेपी वालों ने तो तो इसका मुद्दा ही बना दिया। लेकिन फिर सब शांत हो गया।
आप की राजनीति भी कुछ इसी राह पर रही है। पार्टी के कई नेता बार-बार भगवान् राम पर टिप्पणी करते रहे हैं। आप नेता गौटन ने तो हिन्दू धर्म ग्रंथो पर कई बार टिप्पणी की। उन्हें मंत्री पद से भी हाथ धोना पड़ा। आप के भीतर स्वर्ण समाज ने भी इसका विरोध किया था और केजरीवाल मौन ही रहे। उधर कर्नाटक में एक लेखक ने भगवान् राम को क्या क्या नहीं कहा। वे लम्बे समय से राम के खिलाफ बोले तहे हैं। ऐसे में साफ़ है कि मौजूदा समय में भगवान् राम के प्रति आस्था में कमी आ रही है और सवर्ण समाज की तुलना में दूसरी जातियां कुछ ज्यादा ही तल्ख़ हो गई है।
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