आगरा। शिक्षा की अलख जब जागती है, तो न कब्रिस्तान देखा जाता है, और न ही शमशान। आगरा के एक कब्रिस्तान में बने एक स्कूल में प्रतिदिन सैंकड़ों बच्चे शिक्षा हासिल करते हैं। कब्रिस्तान का नाम सुनकर जहां ज्यादातर लोगों के दिल बैठ जाते हैं, वहीं स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों के मन में कब्रिस्तान को लेकर कोई भय नहीं है।
शहर के पंचकुइया कब्रिस्तान को एशिया का सबसे बड़ा कब्रिस्तान कहा जाता है। दर्सगाह-ए- इस्लामी जूनियर हाई स्कूल इसी पंचकुइया कब्रिस्तान में है। यह स्कूल सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त है। स्कूल के चारों तरफ कब्रें बनी हुई हैं। कब्रिस्तान के बीच में स्कूल चलता है। पिछले करीब 50 साल से यह स्कूल चल रहा है।
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इस स्कूल में वर्तमान में 75 से ज्यादा बच्चे पढ़ते हैं। इन्हें पढाने के लिए 6 टीचर हैं, जिनमें महिला टीचर भी हैं। यहां बच्चों को हिंदी, इंग्लिश, उर्दू, अरबी, गणित, साइंस, इतिहास आदि विषय पढ़ाये जाते हैं। यह स्कूल 1 से 8th तक है। इसी फीस भी बहुत मामूली है।
इस स्कूल में ज्यादातर गरीब बच्चे पढ़ने आते हैं। इनमें से अधिकांश के पिता ढोलक बेचते हैं या मजदूरी करते हैं। इस स्कूल के बच्चों में उम्मीद है कि वे स्कूल में पढेंगे, तभी बड़े आदमी बन सकते हैं। इसलिए इस कब्रिस्तान वाले स्कूल में आते हैं।
दर्सगाह -ए – इस्लामी जूनियर हाई स्कूल के प्रिंसिपल सय्यद शाहीन हाशमी कहते हैं कि इस स्कूल के सिर्फ गरीब बच्चे पढ़ते है। अगर किसी बच्चे के अभिभावक के पास फीस के पैसे भी नही हैं, तो उससे नहीं मांगे जाते हैं।