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Elisa Carlson: दुनिया ने कहा नामुमकिन, एलिसा ने कहा… यही तो मेरा मिशन है!

जब हम तीन साल की उम्र में ठीक से बोलना भी नहीं सीख पाते, उस उम्र में अमेरिका की एक बच्ची ने मंगल ग्रह पर जाने का सपना देखा। नाम था एलिसा कार्सन। एक साधारण परिवार में जन्मी यह बच्ची आज पूरी दुनिया के लिए प्रेरणा बन चुकी है।

Elisa Carlson: जब हम तीन साल की उम्र में ठीक से बोलना भी नहीं सीख पाते, उस उम्र में अमेरिका की एक बच्ची ने मंगल ग्रह पर जाने का सपना देखा। नाम था एलिसा कार्सन। एक साधारण परिवार में जन्मी यह बच्ची आज पूरी दुनिया के लिए प्रेरणा बन चुकी है।

एलिसा का जन्म 10 मार्च 2001 को अमेरिका के लुइज़ियाना में हुआ था। तीन साल की उम्र में उसने एक कार्टून शो देखा जिसमें मंगल ग्रह को दिखाया गया था। उसी दिन उसने अपने पिता से एक मासूम-सा सवाल किया – “क्या मैं वहां जा सकती हूं?” और पिता के एक सशक्त जवाब – “अगर तुम चाहो, तो ज़रूर जा सकती हो…” ने उसकी ज़िंदगी की दिशा तय कर दी।

बाकी बच्चे से कैसे अलग है एलिसा

जहां बाकी बच्चे खेल-खिलौनों में व्यस्त रहते हैं, वहीं एलिसा किताबों, अंतरिक्ष और रॉकेट्स की दुनिया में खोई रहती थी। उसने अपने बचपन की आम खुशियों से दूरी बना ली न जन्मदिन की पार्टी, न छुट्टियां, न ही कोई सामाजिक जीवन। उसके लिए असली उत्सव था नासा की ट्रेनिंग, और सबसे प्यारी साथी थीं मंगल ग्रह की तस्वीरें।

एलिसा ने पढ़ाई के साथ-साथ व्यावहारिक ट्रेनिंग को भी उतना ही महत्व दिया। वो नासा की ट्रेनिंग प्रोग्राम में शामिल होने वाली सबसे कम उम्र की छात्रा बनी। महज़ 12 साल की उम्र में वह नासा के सभी 14 स्पेस सेंटर का दौरा कर चुकी थी। उसे फ्लाइट सर्टिफिकेट मिला, साइंटिफिक मिशनों में हिस्सा लिया और अंतरिक्ष जीवन के हर पहलू को गंभीरता से समझा।

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सफलता के पीछे की कहानी

लेकिन सफलता की इस कहानी के पीछे एक कठिन और तन्हा राह भी रही। अपने सपनों के लिए एलिसा ने न सिर्फ़ बचपन की मासूमियत छोड़ी, बल्कि हर उस रिश्ते से दूरी बना ली जो उसे लक्ष्य से भटका सकता था। आज भी वो कहती है –
“नासा के मिशन के लिए ज़रूरी है कि आप पूरी तरह समर्पित रहें… इसमें भावनाओं के लिए बहुत कम जगह होती है।”

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एलिसा अब Mars Mission 2030

एलिसा अब Mars Mission 2030 की संभावित उम्मीदवारों में से एक है। उसका सपना केवल खुद के लिए नहीं, बल्कि इंसानियत के लिए है। वह मानती है कि यदि उसकी एक कोशिश से अगली पीढ़ी मंगल पर जीवन शुरू कर पाए, तो वो अपने जीवन को भी न्यौछावर करने को तैयार है।

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पिता का साथ

पिता, जो हमेशा बेटी की हर उड़ान के पीछे एक मजबूत आधार बनकर खड़े रहे — आज भी जब वे एलिसा को मंगल मिशन की तैयारियों में जुटा देखते हैं, तो गर्व की एक शांत मुस्कान उनके चेहरे पर उभर आती है और आंखें अनायास ही भीग जाती हैं। एलिसा अब उनके लिए सिर्फ एक बेटी नहीं, बल्कि एक ऐसी प्रेरणा बन चुकी है, जो अपनी ज़मीन से उठकर आकाश की सीमाओं को चुनौती दे रही है — मानो पिता के सपनों ने बेटी के कंधों पर चढ़कर अंतरिक्ष तक की उड़ान भर ली हो।

यह कहानी सिर्फ़ एक लड़की की नहीं, बल्कि उन तमाम सपनों की है जिन्हें बड़ा सोचने की हिम्मत मिलती है। यह हमें सिखाती है कि अगर इरादा सच्चा हो, तो कोई भी सपना – चाहे वो धरती पर हो या किसी दूसरे ग्रह पर – नामुमकिन नहीं होता।

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Written By। Kritika Kumari। National Desk। Delhi

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