बॉलीवुड की फ़िल्म “मैं तुलसी तेरे आंगन की” और “कटी पतंग” की मशहूर अदाकारा आशा पारेख (Asha Parekh) को दादा साहेब फाल्के अवॉर्ड (Dada Saheb Phalke Award) से सम्मानित करने का एलान किया गया है। आखिरी बार ये अवॉर्ड 2019 में दिया गया था। आशा पारेख अपने समय की काफ़ी दमदार एक्ट्रेस रह चुकी हैं। उन्होंने करीब 95 फिल्मों में काम किया है। वो फिल्मों में काम करने के साथ साथ उन्होंने फिल्म निर्माता के तौर पर भी काम किया है।
आशा पारेख का जीवन
इस दिग्गज एक्ट्रेस (Asha Parekh) ने अपने फिल्मी करियर की शुरूआत बाल कलाकार के तौर पर की थी। बतौर बाल कलाकार उनका जादू नहीं चल पाया था। लेकिन साल 1959 में दिल देके देखो में उन्हें साइन किया गया और फिर उसके बाद उन्होनें कभी भी पीछे मुड़कर नही देखा। इस फिल्म में उनके अपोजिट में दिग्गज एक्टर शम्मी कपूर थे।
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आशा पारेख अभी 79 साल की हैं। उन्होंने अपने करियर में बहुत बड़ी बड़ी फिल्में की हैं। उन्होनें दिल देके देखो, कटी पतंग और कारवां जैसी फिल्मों में अपना जादू चलाया है। इसके अलावा 1990 में टीवी की धारावाहिक “कोरा कागज” का निर्देशन भी किया है।
इन अवॉर्ड से हो चुकी है सम्मानित
अपने फिल्मी सफर में आशा पारेख (Asha Parekh) ने 95 मूवीज की हैं। 1999 में वो आखिरी बार सर आंखों पर फिल्म में नज़र आई थीं। इन्हें 11 बार लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड भी मिल चुका है। इसके अलावा उन्हें 1992 में भारत के सबसे सम्मानित अवॉर्ड पद्मश्री भी दिया जा चुका है। उन्हें कटी पतंग मूवी के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का फिल्म फेयर पुरस्कार भी मिला है।
इस वजह से कभी नही की शादी
साल 2017 में आई अपनी बायोग्राफी में उन्होंने कई खुलासे किए थे। उन्होंने बताया कि वो जिस शख्स से प्यार करती थीं, वो शादीशुदा थे। आशा ने अपनी जिंदगी के इस अहम और इमोशनल किस्से का जिक्र अपनी बायोग्राफी हिट गर्ल में किया था। उन्होंने बताया था कि वो फिल्ममेकर नासिर हुसैन से प्यार करती थीं, मगर वो शादीशुदा थे, जिसके बाद उन्होंने नासिर से दूरी बना ली। उनसे शादी करके वो घर तोड़ने वाली औरत नहीं कहलाना चाहती थीं। इसलिए उनके पास केवल यही विकल्प बचा कि वो आजीवन सिंगल रहें।
22 साल बाद फिर किसी औरत को मिलेगा अवॉर्ड
2000 के बाद अब फिर किसी महिला को ये अवॉर्ड (Dada Saheb Phalke Award) मिलने जा रहा है। इससे पहले साल 2000 में ये अवॉर्ड मशहूर सिंगर आशा भोसले को दिया गया था। सबसे पहले ये अवॉर्ड साल 1969 में जिस महिला को मिला था उनका नाम देविका रानी था।