यूपी की राजनीति में चार दशक तक अपना रुतबा कायम रहने वाले मुलायम सिंह यादव आज हमेशा के लिए इस फानी दुनिया को अलिवदा कह गये। लेकिन वह अपने करोड़ों चाहने वालों व समर्थकों के दिलों में हमेशा जिंदा रहेंगे। मुलायम सिंह न केवल कुशल राजनीतिज्ञ थे, बल्कि व्यवहार में सच्चे साथी, सहयोगी, मददगार, दोस्त और सहायक की भी भूमिका निभाते थे।
सबके चहेते थे मुलायम सिंह
मुलायम सिंह यादव के संबंध सभी दलो के नेताओं और अभिनेताओं के साथ बहुत मधुर व आत्मीयता भरे रहे हैं। वे पंडित जवाहर लाल नेहरु, पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर, किसान नेता महेन्द्र सिंह टिकैत, पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी, पूर्व नरसिंहा राव अभिनेता अमिताभ बच्चन, जया बच्चन, विनोद खन्ना, दिलीपी कुमार, क्रिकेटर कपिल देव, पूर्व मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी, सुषमा स्वराज आदि से अच्छे संबंध थे। वे निजी तौर पर वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के प्रसंशक थे।
“रफीक़ुल मुल्क” का ख़िताब मिला था
मुलायम सिंह यादव को “रफीक़ुल मुल्क” का ख़िताब शायद इसीलिए दिया गया था, क्योंकि वो सिर्फ मुल्क के ही मददगार नहीं, बल्कि अपने विरोधी दलों के लिए भी मददगार साबित हुए थे। बेशक वे कद में लंबे नहीं थे, लेकिन मजबूत कदकाठी के थे। उन्होंने अपने पिता की ख्वाहिश पूरी करने के लिए ही बाल्यावस्था में ही पहलवानी शुरु की थी।
इटावा के सैफई गांव में जन्में थे
इटावा के सैफई गांव में 1939 में जन्में पांच भाई-बहनों में दूसरे नंबर के भाई थे। वे भले ही सियासत के चलते लखनऊ रहें, लेकिन अपने पैतृक गांव व परिवार में उनका नियमित आना-जाना लगा रहता था। दमदार राजनीति शख्सियत के कारण विपक्षी दलों के नेता भी मुलायम सिंह यादव का बहुत सम्मान करते थे।
मुलायम सिंह ने आगरा विश्वविद्यालय से राजनीति शास्त्र में परानस्नातक किया था। इसके बाद बीटी करने के बाद उन्हें एक इंटर कालेज में प्रवक्ता की नौकरी मिल गयी थी। लेकिन सक्रिय राजनीति के लिए मुलायम ने इंटर कॉलेज से प्रवक्ता की सरकारी नौकरी छोड़ी थी।
लखनऊ में साइकिल पर चलते थे कभी
मुलायम सिंह ने राजनीति में आने के लिए अपने शुरूआती दिनों में तमाम मुश्किलों का सामना किया था। उन्होने कई बड़े नेताओं की शागिर्दी भी की थी। कुछ लोगों को आज भी वे दृश्य याद हैं जब 80 के दशक में लखनऊ में मुलायम सिंह साइकिल से सवारी करते नजर आ जाते थे।
जब साइकिल से दिल्ली भागे थे
एक बार राजनीतिक प्रतिद्वंदियों द्वारा उन्हें फंसाने की षड़यंत्र रचा गया। इसकी भनक लगने पर मुलायम सिंह यादव अपने घर से साइकिल से ही दिल्ली के लिए भाग निकले थे। वहां जाकर उन्होने अपने राजनीतिक आका के घर शरण ली थी। इसके बाद मुलायम सिंह को साइकिल की सवारी से ऐसी प्रेम हुआ कि जब उन्होने अपना राजनीति दल पार्टी समाजवादी पार्टी बनाया तो उसका चुनाव चिन्ह ही साइकिल रखा था।
वंशवाद के खिलाफ थे, लेकिन अपने वंश के आगे मजबूर हुए……
सपा संरक्षक के बारे में बहुत कम लोगों जानते हैं कि वे कभी वंशवाद के घोर विरोधी हुआ करते थे। सन 80 के दशक तक अपने राजनीतिक आका चरण सिंह के साथ मिलकर मुलायम सिंह यादव इंदिरा गांधी को वंशवाद के लिए कोसने का कोई मौका छोड़ते भी नहीं थे। लेकिन बाद में वे खुद वंशवाद के चक्कर में फंसने को मजबूर हो गये थे।
चौधरी चरण सिंह के खास चेहते में शुमार रहे
एक समय में वे चौधरी चरण सिंह के खास नेताओं में हुआ करते थे। मुलायम सिंह और चौधरी चरण सिंह के संबधों में खटास तब आई थी, जब चरण सिंह ने राष्ट्रीय लोकदल में उनकी पकड़ मजबूत होने के बावजूद.अमेरिका से लौटे अपने बेटे अजित सिंह को पार्टी की कमान सौंप दी थी।
चरण सिंह के बाद एक गुट की थी अगुवाई
चौधरी चरण सिंह के निधन के बाद उनकी पार्टी में बिखराव आ गया था। पार्टी के दोफाड़ होने पर उसके एक धड़े की अगुवाई मुलायम सिंह करने लगे थे। वे उसकी दशा और दिशा खुद तय करने लगे थे।
सियासी हवा का रुख भांपने में माहिर थे मुलायम
सियासी गलियारों में हवाओं को भंपकर खुद को उस हिसाब से ढ़ालने वाले मुलायम सिंह अक्सर अपने बयानों से पलट जाया करते थे। ये उनकी सूझबूझ ही थी कि कई बार उन्होंने अपने फैसलों और बयानों से ही खुद को अलग करना पड़ा था। इस कारण अक्सर उन्हें विरोधी दल उन पर छींटाकशी भी करते थे।
राम मनोहर लोहिया गुरु द्रोण, तो एकलव्य थे मुलायम
मुलायम को राजनीति के दांव पेंच सिखाने वाले गुरू द्रोण कोई और नहीं बल्कि राम मनोहर लोहिया और चौधरी चरण सिंह थे। लोहिया ने उनका हाथ पकड़ा और उन्हें पार्टी में जगह दी। पहली बार में मुलायम सिंह यादव ने विधानसभा की पारी में अपना दम दिखने में कामयाब रहे थे।
इमर्जेंसी में गये थे जेल
देश में लगे आपात काल में मुलायम सिंह, चौधरी चरण सिंह व कई छोटे-बड़े नेताओं के साथ गिरफ्तार हुए। इनके साथ वे तब जेल भी गये थे। इमर्जेंसी ने राजनीति हालात काफी बदल गये थे। ये वो समय था जब भारतीय लोकदल को जनता पार्टी की शक्ल में आयी थी तब मुलायम सिंह यादव मंत्री बन गए थे।
मुश्किल समय में भाई शिवपाल का मिला था साथ
मुश्किल समय में एक बार मउस मुश्किल दौर में मुलायम पर कई हमले हुए।
उन पर हमलों की साजिश हुई, लेकिन शिवपाल हमेशा उनकी ढाल बनकर आगे खड़े रहे। शिवपाल ने मुलायम का साथ व हाथ कभी नहीं छोड़ा। ये अलग बाद है कि मुलायम के हाथ से जब पार्टी उनके बेटे अखिलेश के हाथों में चली गयी, तब मुलायम व शिवपाल यादव दोनों कमजोर साबित हुए।
8 बार विधायक व 7 बार सांसद बने
1967 से लेकर 1996 तक मुलायम सिंह 8 बार यूपी में विधानसभा के लिए चुने गए। 1982 से 1987 तक विधान परिषद के सदस्य रहे। 1996 में उन्होंने लोकसभा का पहला चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। इसके बाद से 7 बार लोकसभा में पहुंचे। 1985 से 87 में यूपी में जनता दल के अध्यक्ष रहे। फिर पहली बार 1989 में यूपी के CM का ताज उनके सर पर काबिज हुआ। उसके बाद 4 बार में मुख्यमंत्री की कुर्सी पर आसीन हुए। वे केन्द्र में रक्षा मंत्री भी रहे।
अखिलेश ने संभाली राजनीतिक विरासत
यह अलग बात है कि मुलायम सिंह यादव की सत्ता से विदाई बहुत सुखद नहीं थी। मुलायम के बेटे अखिलेश यादव ने उनकी राजनीतिक विरासत संभाली। लेकिन अखिलेश यादव उनकी विरासत को आगे नहीं बढा पाये।
मुलायम के नेतृत्व में सपा को मिली जीत के बाद उन्होने अपने बेटे अखिलेश यादव को मुख्यमंत्री बनाया। अखिलेश यादव सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद न तो कुनबे के लोगों को जोड़कर रख सके, न ही पार्टी को मजबूती दिला पाये।
अब क्या अखिलेश पड़ जाएंगे अकेले !
अब देखना है कि मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद अखिलेश यादव अकेले पड़ जाएंगे। उनकी राजनीतिक विरासत को किस हद तक आगे ले जाते हैं। अखिलेश यादव के अपने सगे चाचा शिवपाल यादव से अच्छे राजनीतिक संबंध नहीं हैं। अब देखना होगा कि वे कैसे परिवार को साथ लेकर समाजवादी पार्टी को कैसे आगे ले जाते हैं।