Political News: नेता लोग किसको ठगते हैं यह समझ से बाहर ही। इस देश के अधिकतर नेता आज भी कम पढ़े लिखे हैं। जो जायद पढ़े लिखे हैं उनके पास भी कोई विध्वं होने के बड़े लक्षण नहीं है लेकिन इस देश को सबसे जयदा ज्ञान की घुट्टी यही नेता लोग ही पिलाते रहते हैं। जब वे ज्ञान देते हैउन तो तो लगता है कि वे कितने बड़े दर्शन और त्यागी हैं। उनके भाषण से लगता है कि ये नेता ही देश के संबसे बड़े समाज सुधारक हैं और नीति निर्धारक भी। वे ही नैतिकता के पुजारी हैं और वे ही सबसे बड़े धार्मिक पुजारी भी। ऐसे नेताओं की देश में कमी नहीं है। पहले भी कुछ ऐसे ही नेता होते रहे हैं और आज भयउ ऐसे ही नेताओं की लम्बी श्रृंखला है। पार्टी चाहे जो भी हो ऐसे नेताओं की कमी नहीं।
यह तो देश का बच्चा -बच्चा भी जानता है कि नेता रूपी जीव कभी सच नहीं बोलते। कई लोग तो,यह भी कहते हैं कि जिस दिन कोई नेता सच बोल देगा उसी दिन उसकी पराजय हो जाएगी। उसकी राजनीतिक मौत भी हो जाएगी। आजादी के बाद हमारे देश में भले ही कुछ नेता सत्य और अहिंसा के मार्ग को अपनाते हुए मरते वक्त भी उसे निभाया है लेकिन ऐसे नेता अब कहाँ से मिलेंगे ?आज की राजनीतिक सच यही है कि राजनीति ने ही देश को कई खंडो में ,समाज और लोगों को बाँट रखा है। समाज बनता रहे , टूटता रहे और एक धर्म दूसरे धर्म पर हमलावर बना रहे तभी तो नेताओं की राजनीति चलती है। जब कोई मुद्दा ही न हो होगा तो राजनीति किस बात की ? जब समाज से गरीबी ही ख़त्म हो जाएगी तो सत्ता और सरकार बनाने का खेल कैसा ? जब सब कोई धार्मिक ही हो जायेगा तो अधर्म और धर्म की लड़ाई में राजनीति का संयोग ही ख़त्म हो जायेगा और राजनीति नहीं होगी तो यह सब खेल समाज को दिखायेगा ?
मुद्दा परिवारवाद का है। यह कोई आज का मुद्दा तो है नहीं। नेता लोग अपने हिसाब से इसे परिभाषित करते हैं और देश की जनता जिस पार्टी की भक्ति में लीन होती है उसे गाना भी गाते रहती है। भक्तों का अपना कुछ होता नहीं है। भक्त जन कभी अपने माता -पिता और भाई बंधू से भक्ति नहीं रखते। उनकी भक्ति तो अपने आका के प्रति होती है। उनके आका जो कहते हैं वही अमृत रस है और उसी अमृत रस को पाकर वे जीते हैं।
तो परिवारवाद को लेकर बीजेपी और प्रधानमंत्री मोदी ने नई परिभाषा का इजात किया है। अब वे कहने लगे हैं कि जिसके परिवार के लोग राजनीति करते हैं वे परिवारवादी नहीं हैं। असली परिवारवादी तो वे लोग है जिनके परिवार के हित में कोई पार्टी पीढ़ी -दर पीढ़ी चल रही है। यह बीजेपी का नया परिवारवाद पर परिभाषा है। पीएम मोदी ने ही इस परिभाषा को गाढ़ा है। मोदी का यह परिभाषा अद्भुत है। इसकी वजह भी है। बीजेपी के अब बहुत से नेता अपने बच्चो को राजनीतिक मैदान में उतार रहे है। पहले से बहुत से नेताओं के बच्चे बीजेपी के साथ जुड़े हुए हैं। बीजेपी पर इसको लेकर बहुत से सवाल उठा रहे हैं। पीएम मोदी ने कहा है कि किसी भी परिवार के कई लोग भी राजनीति करते हैं तो यह परिवारवाद नहीं है लेकिन एक परिवार द्वारा पार्टी का संचालन किया जाना ही सबसे बड़ा परिवारवाद है।
मोदी ने कुछ इसी तरह की बातें इस बार संसद में की है। मोदी के इस बयान के साथ ही बीजेपी के वे सभी नेता जो अब तक परिवारवाद के शिकार थे ,मुक्त हो गए। खूब तालियां बजा रहे हैं और कह रहे हैं कि वे परिवारवादी नहीं। परिवारवादी तो वे है जो पार्टी को परिवार से संचालित करते हैं। तो क्या माना जाए कि अगर किसी भी परिवार के दस लोग राजनीति कर रहे हैं तो वे परिवारवादी नहीं है लेकिन अगर बीजेपी जैसी पार्टी परिवारवादी पार्टियों के साथ मिलकर सत्ता और राजनीति चला रही है तो उसे क्या कहा जा सकता है ? फिर बीजेपी परिवारवादी पार्टी के साथ तालमेल क्यों कर रही है ? उसका समर्थन क्यों कर रही है और उसका प्रचार भी क्यों कर रही है ? देवगौड़ा की पार्टी के बारे में पीएम क्या सोंचते हैं ? अजित पवार की पार्टी को क्या मानते हैं ? चिराग की पार्टी को क्या कहते हैं ? संजय निषाद की पार्टी के बारे में उनकी क्या राय है ? अनुप्रिया पटेल की पार्टी के साथ बीजेपी सरकार क्यों चला रही है ? दुष्यंत चौटाला के साथ बीजेपी क्या कर रही है ? शिवसेना ,अकाली दल ,पीडीपी और टीडीपी के साथ बीजेपी अब तक क्या करती रही है ? इसलिए बड़ा सच तो यही है कि नेता की कहानी को नेता ही जान सकते हैं। जबतक इस देश की जनता नेताओं के जाल में फांसी रहेगी इस देश का कभी काया कल्प नहीं होगा और यह देश इसी -तरह के जाल में फंसकर आगे नहीं बढ़ पायेगा।