UP Ghaziabad News: विवाह की नई परिभाषा: जब गाजियाबाद में 11 हजार पौधों का दहेज और बैलगाड़ी की विदाई बनीं प्रेरणा
विवाह—जो प्रायः वैभव, विलासिता और आडंबर का प्रतीक माना जाता है—गाजियाबाद के रईसपुर गांव में एक नए स्वरूप में अवतरित हुआ। यहाँ एक ऐसा परिणय संस्कार संपन्न हुआ, जो युगों-युगों तक स्मरणीय रहेगा। यह केवल वर-वधु का मिलन नहीं, बल्कि सामाजिक चेतना, पर्यावरण संरक्षण और परंपराओं की पुनर्स्थापना का संगम था।
UP Ghaziabad News: विवाह—जो प्रायः वैभव, विलासिता और आडंबर का प्रतीक माना जाता है—गाजियाबाद के रईसपुर गांव में एक नए स्वरूप में अवतरित हुआ। यहाँ एक ऐसा परिणय संस्कार संपन्न हुआ, जो युगों-युगों तक स्मरणीय रहेगा। यह केवल वर-वधु का मिलन नहीं, बल्कि सामाजिक चेतना, पर्यावरण संरक्षण और परंपराओं की पुनर्स्थापना का संगम था। पर्यावरण प्रहरी सुरविंदर किसान की यह अनूठी शादी न केवल ग्राम्य जीवन के नैसर्गिक सौंदर्य को प्रतिबिंबित करती है, बल्कि नवविवाहितों के लिए एक नूतन दृष्टिकोण भी प्रस्तुत करती है।
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जब दहेज बना हरियाली का प्रतीक
आज के युग में जहाँ विवाह के साथ दहेज की कुरीति जुड़ी हुई है, वहीं सुरविंदर किसान ने इस परंपरा को नया आयाम दिया। उन्होंने सोने-चाँदी, संपत्ति या नकद धनराशि की बजाय 11 हजार पौधे दहेज में स्वीकार किए। यह कदम न केवल एक व्यक्तिगत संकल्प था, बल्कि सम्पूर्ण समाज के लिए एक चेतावनी और प्रेरणा भी थी कि विवाह का वास्तविक उद्देश्य समाज एवं प्रकृति के उत्थान से जुड़ा होना चाहिए। “जब धरती माता के आँगन में हरियाली ही सबसे बड़ा आभूषण है, तो फिर गहनों और धन की क्या आवश्यकता?”—सुरविंदर के इस वाक्य ने उपस्थित जनसमूह को न केवल मंत्रमुग्ध किया, बल्कि एक गहरी सीख भी दी।
बैलगाड़ी से विदाई: आधुनिकता में खोई परंपरा की पुनर्स्थापना
एक और दृश्य जिसने इस विवाह को अनूठा बना दिया, वह था दुल्हन की विदाई। आज जहाँ महँगी गाड़ियाँ, भव्य सजावट और आधुनिक सुविधाओं से युक्त विवाह अनिवार्यता बन चुके हैं, वहीं इस अनोखी शादी में दुल्हन बैलगाड़ी में सवार होकर अपने ससुराल के लिए विदा हुई। यह केवल एक सांकेतिक कृत्य नहीं था, बल्कि एक संदेश था कि गति और विलासिता के अंधानुकरण में हमें अपनी जड़ों को नहीं भूलना चाहिए। “हमारे पूर्वजों की सादगी ही उनका वैभव थी, और हमें उसी मार्ग पर लौटना होगा,”—इस संकल्पना के साथ बैलगाड़ी से विदाई ने यह सिद्ध कर दिया कि विकास का अर्थ अपनी संस्कृति से विमुख होना नहीं, बल्कि उसे और समृद्ध बनाना है।
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शादी का निमंत्रण पत्र: जब आमंत्रण बना जागरण का दस्तावेज
इस विवाह का आकर्षण केवल इसकी अनूठी परंपराएँ नहीं थीं, बल्कि वह संदेश भी था जो इसे एक अभियान के रूप में प्रस्तुत करता है। सुरविंदर किसान के निमंत्रण पत्र में केवल विवाह की तिथि और स्थल ही नहीं, बल्कि 10 सामाजिक एवं पर्यावरणीय संकल्प भी अंकित थे, जो इस विवाह को एक जनचेतना अभियान में परिवर्तित कर रहे थे।
10 संकल्प जो समाज के लिए मार्गदर्शन बने:
- दहेज की कुरीति का अंत कर, प्रकृति को समर्पित जीवन जीएँगे।
- विवाह को सादगी और संस्कारों से जोड़कर, फिजूलखर्ची का परित्याग करेंगे।
- पर्यावरण की रक्षा के लिए हर वर्ष अधिक से अधिक पेड़ लगाएँगे।
- गांव और समाज की उन्नति के लिए कार्य करेंगे।
- नशामुक्त जीवन जीकर, दूसरों को भी प्रेरित करेंगे।
- नारी समानता और सशक्तिकरण को अपने परिवार में प्रमुख स्थान देंगे।
- बुजुर्गों का सम्मान और उनकी देखभाल को जीवन का कर्तव्य मानेंगे।
- प्लास्टिक मुक्त जीवनशैली अपनाकर, स्वच्छता का प्रसार करेंगे।
- शिक्षा को बढ़ावा देकर, समाज के हर वर्ग को शिक्षित करने का प्रयास करेंगे।
- भारतीय संस्कृति और परंपराओं को जीवित रखते हुए, आधुनिकता को दिशा देंगे।
यह केवल वचन नहीं थे, बल्कि समाज के लिए एक नई दिशा थे, जो यह बताते हैं कि विवाह मात्र दो व्यक्तियों का नहीं, बल्कि पूरे समाज और प्रकृति के प्रति उत्तरदायित्व का बंधन है।
हस्तियों की उपस्थिति: जब विवाह बना समाजोत्थान का मंच
यह विवाह केवल ग्रामीण समाज में ही नहीं, बल्कि राजनीतिक, सामाजिक और पर्यावरणीय हलकों में भी चर्चा का विषय बन गया। विवाह समारोह में पूर्व मेयर आशु वर्मा, समाजसेवी ऋचा सूद, कांग्रेस नेत्री डॉली शर्मा सहित कई प्रतिष्ठित हस्तियाँ उपस्थित रहीं। सभी ने इस विवाह को नवयुग की संकल्पना का प्रतीक बताया और इसे देशभर में फैलाने योग्य अभियान करार दिया। “जब एक किसान अपने विवाह को समाज की भलाई के लिए समर्पित कर सकता है, तो हम क्यों नहीं?”—समारोह में उपस्थित एक गणमान्य अतिथि के इस प्रश्न ने समस्त समाज को आत्ममंथन के लिए विवश कर दिया।
अंतिम संदेश: जब विवाह एक आंदोलन बना
यह विवाह केवल एक व्यक्तिगत आयोजन नहीं था, बल्कि विवाह की परिभाषा को नए सिरे से गढ़ने का प्रयास था। यह उन सभी के लिए एक उत्तर था, जो विवाह को महज धन-वैभव और भौतिकता का पर्याय मानते हैं। यह सिद्ध करता है कि विवाह केवल आत्मीय मिलन नहीं, बल्कि समाज, पर्यावरण और संस्कृति के प्रति संकल्पबद्ध होने का अवसर भी है। इस विवाह ने एक मार्ग प्रशस्त किया है—एक ऐसा मार्ग जो हमें सादगी, नैतिकता, पर्यावरण संरक्षण और सामाजिक उत्थान की ओर ले जाता है। सुरविंदर किसान और उनकी नवविवाहिता ने यह सिद्ध कर दिया कि जब विवाह को सही अर्थों में अपनाया जाए, तो वह केवल एक अनुष्ठान नहीं, बल्कि एक युगांतरकारी आंदोलन बन सकता है।”पर्यावरण का संरक्षण ही वास्तविक धन है, और सादगी ही असली शान।”—इस संदेश के साथ यह विवाह समाज के लिए एक नई रोशनी, एक नई दिशा और एक नए युग की शुरुआत बन गया।
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