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Uttar Pradesh News: ज़बरदस्ती धर्म बदलवाने वालों की अब खैर नहीं…धर्मांतरण पर चिंतित क्यों हुआ इलाहाबाद हाईकोर्ट?

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक याचिका खारिज करते हुए कहा कि भारत का संविधान हर नागरिक को अपने धर्म का स्वतंत्र रूप से पालन करने और उसका प्रसार करने का अधिकार देता है। लेकिन यह जबरन या धोखाधड़ी से धर्म परिवर्तन का समर्थन नहीं करता है।

Uttar Pradesh News: इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कहा है कि जबरन धर्म परिवर्तन भारतीय संविधान के सिद्धांतों के विपरीत है। न्यायालय ने धर्म परिवर्तन से जुड़ी एक याचिका को खारिज करते हुए यह स्पष्ट किया कि भारतीय संविधान प्रत्येक नागरिक को अपने धर्म को स्वतंत्रतापूर्वक मानने, आचरण करने और उसका प्रचार करने का अधिकार देता है, लेकिन यह जबरन धर्मांतरण की अनुमति नहीं देता।

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दरअसल, जस्टिस विनोद दिवाकर की बेंच ने उस याचिका को सुना, जिसमें कुछ लोगों ने अपने खिलाफ दर्ज FIR को रद्द करने की गुहार लगाई थी। इन लोगों पर आरोप था कि इन्होंने भोले-भाले लोगों को पैसे और मुफ्त इलाज का लालच देकर उन्हें ईसाई धर्म अपनाने पर मजबूर किया।

कोर्ट ने इस याचिका को सिरे से खारिज कर दिया और कहा कि मामला गंभीर है। अब पुलिस इस मामले में पूरी सख्ती से कार्रवाई करेगी। आपको बता दें कि इन चार आरोपियों के खिलाफ उत्तर प्रदेश के नए धर्म परिवर्तन कानून, यानी उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म परिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम, 2021 के तहत मामला दर्ज किया गया था।

सुनवाई के दौरान हाई कोर्ट ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25 का हवाला दिया। कोर्ट ने कहा कि हमारा संविधान हर नागरिक को अपनी मर्जी से किसी भी धर्म को मानने, उस पर चलने और उसका प्रचार करने की पूरी आज़ादी देता है। लेकिन, इसका मतलब ये बिल्कुल नहीं है कि आप किसी को डरा-धमकाकर या लालच देकर उसका धर्म बदलवा सकते हैं।

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कोर्ट ने ये भी कहा कि किसी एक धर्म को दूसरे से बेहतर समझना, ये हमारी सेक्युलर यानी धर्मनिरपेक्ष सोच के बिल्कुल खिलाफ है। कोर्ट ने सख्त लहजे में कहा कि अगर आप किसी एक धर्म को ऊंचा मानते हैं, तो इसका मतलब है कि आप बाकी धर्मों को उससे कमतर आंक रहे हैं। और ये सोच भारतीय संविधान की भावना के एकदम उलट है। हमारा देश सभी धर्मों को बराबर मानता है और सरकार को भी सभी धर्मों से बराबर दूरी बनाकर रखनी चाहिए।

अब आपको बताते हैं कि आखिर ये अनुच्छेद 25 है क्या, जिसका ज़िक्र कोर्ट ने किया। दरअसल, भारतीय संविधान ने हमें कुल 6 मौलिक अधिकार दिए हैं, जो अनुच्छेद 12 से 35 तक हैं। इनमें से अनुच्छेद 25 हमें ये हक देता है कि हम अपनी पसंद का धर्म चुन सकते हैं, उस पर अमल कर सकते हैं और उसका प्रचार भी कर सकते हैं। लेकिन, इसमें एक साफ शर्त है कि आप किसी को भी ज़ोर डालकर या बहला-फुसलाकर उसका धर्म नहीं बदलवा सकते। हमारे संविधान में कोई भी धर्म बड़ा या छोटा नहीं है, सभी बराबर हैं।

तो ये था इलाहाबाद हाई कोर्ट का अहम फैसला, जिसने जबरन धर्म परिवर्तन के मुद्दे पर एक बड़ा संदेश दिया है। देखना होगा कि इस फैसले का आगे क्या असर होता है।

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