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मायावती के अधिकतर सांसद पाला बदलने को तैयार!

UP Politics News Mayawati (BSP)! एक समय था जब बसपा नेता और पूर्व मुख्यमंत्री मायावती के एक हुंकार पर बहुजन समाज के लोग राजनीति को बदलने का दम रखते थे। लेकिन अब ऐसा नहीं है। अब न बसपा की वह ताकत बची है और न ही बहुजन समाज की मायावती एक मात्र नेता रह गई है। बसपा भी कई टुकड़ों में बंटी है और हालिया दौर में मायावती का बड़ा वोट बैंक दलित नेता चंद्रशेखर आजाद से साथ जा खड़ा हुआ है। कम से कम पश्चिन यूपी के सन्दर्भ में तो ऐसा ही कहा जा सकता है। इसके साथ ही कई अन्य राज्यों में भी बसपा का वोट बैंक हुआ करता था ,जो अब न के बराबर है। जो वोट बैंक बचे भी हैं वह चुनाव को प्रभावित नहीं कर रहे।


अगले चुनाव में मायावती कह रही है कि यूपी में वह अकेले चुनाव लड़ेगी।

लोकसभा चुनाव में वह किसी भी पार्टी से गठबंधन नहीं करेगी। ऐसा वह किस लिए कह रही है यह किसी को पता नहीं। लेकिन कहा जा रहा है कि मायावती बीजेपी और केंद्र सरकार के दवाब में हैं। उन पर कई तरह के जांच चल रहे हैं। लेकिन उस जाँच को अभी रोका गया है। लेकिन बसपा के सांसद मान रहे हैं कि अगर हम किसी किसी पार्टी के साथ गठबंधन करके चुनाव नहीं लड़ेंगे तो बड़ी हार निश्चित है। इसके साथ ही मौजूदा कई सांसद पाला बदलने की तैयारी भी कर रहे हैं। खबर तो ये भी हैं कि अभी लोकसभा में बसपा के जो दस सांसद हैं उनमे से आठ सांसद पाला बदल सकते हैं और उनकी कई पार्टियों से बात भी चल रही है। कुछ सांसद सपा के साथ जाने को तैयार हैं जबकि कुछ सांसद के सम्बन्ध बीजेपी से बढ़ते जा रहे हैं। कई पूर्व सांसद भी दूसरी पार्टी में जाने की राह तलाश रहे हैं।

बसपा के सांसदों को लगने लगा है कि अकेले चुनाव लड़ने का बसपा की राजनीति पर पड़ेगा। बसपा ने 2014 का चुनाव अकेले लड़ा था और उनकी पार्टी का एक भी संसद नहीं जीत सका। जबकि वोट 20 फीसदी मिले थे। 2019 के चुनाव में बसपा और सपा का गठबंधन था। इस चुनाव में बसपा को 10 सीटों पर जीत हासिल हो गई जबकि सपा को पांच सेटों पर ही जीत हुई। ऐसे में बसपा के सांसद ही कह रहे हैं कि जब 2014 के त्रिकोणात्मक मुकाबले में बसपा को कुछ भी नहीं मिला तो अब क्या मिलेगा। अब तो राजनीति भी बदली है और लोगों का मिजाज भी बदल गया है। इसके साथ ही पिछले साल के विधान सभा चुनाव में भी बसपा कुछ हाथ नहीं लगा। बसपा को मात्र 12 फीसदी वोट मिले और विधान सभा की एक सीट मिली। ऐसे में वह लोकसभा का चुनाव अकेले लड़ती है तो बसपा की हालत 2014 से भी ख़राब हो सकती है। बसपा सांसदों को यही डर सत्ता रहा है। कहा जा रहा है कि अगले लोकसभा चुनाव में बसपा को दस फीसदी वोट भी नहीं मिल सकते हैं तो पार्टी को बचाना भी मुश्किल हो सकता है।

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बसपा के सांसद बेचैन हैं। बसपा के लोग बराबर मायावती को कह रहे हैं कि विपक्षी पार्टियों के साथ मिलकर चुनाव लड़े लेकिन अभी तक मायावती ऐसा नहीं सोंच रही। अमरोहा से बसपा के सांसद कुंवर दानिश अली ने मायावती से गठबंधन में शामिल होने की अपील की है। अली को पता है कि पिछली बार सपा के साथ तालमेल की वजह से ही वे जीत पाए थे और अब अगर बसपा अकेले चुनाव लड़ती है तो वे जीत नहीं पाएंगे। बसपा के एक और सांसद रितेश पांडे भी इन दिनों काफी परेशान हैं और लगातार सपा के नेताओं से मिल भी रहे हैं। कहा जा रहा है कि पांडे सपा में जा सकते हैं। कुशल तिवारी बसपा से निकलकर सपा में पहले ही जा चुके हैं और कई और पूर्व सांसद पार्टी तलाश रहे हैं।

कहा जा रहा है कि बसपा के मौजूदा आठ सांसद पार्टी छोड़ने की तैयारी में हैं। अगर बसपा गठबंधन के साथ चुनाव तो बसपा की राजनीति कमजोर हो सकती है क्योंकि अधिकतर मौजूदा सांसद पार्टी छोड़ सकते हैं। अब फैसला मायावती को करना है। उधर मुस्लिम वोट बड़ी संख्या में बसपा से निकलकर सपा और कांग्रेस के तरफ जाते दिख रहे हैं। ऐसे में फैसला मायावती को लेना है।

Akhilesh Akhil

Political Editor

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