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रामलला की नई मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा के बाद क्या होगा पुरानी मूर्ति का ?

Ayodhya Ram Mandir Ayodhya: 22 जनवरी 2024 की तारीख स्वर्णिम अक्षरों में भारत के इतिहास में लिखी जाएगी. 22 जनवरी को पूरे देश में दिवाली मनाई जाएगी क्योंकि ये तारीख प्रमाण होने जा रही है लाखों लोगों के 74 सालों के इंतज़ार का, लाखों लोगों की भगवान राम से जुड़ी भावनाओं का। रामलला अयोध्या के नए मंदिर में विराजमान होने के लिए पूरी तरह तैयार हैं। रामलला की प्राण प्रतिष्ठा की तैयारियां जारी है। इसी बीच एक सवाल जो सबके मन में उठ रहा है, जिसका जवाब हर राम भक्त जानना चाहता है। सवाल ये कि नई मूर्ति के मंदिर में स्थापित होने के बाद पुरानी मूर्ति का क्या होगा ?

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मंदिर से जुड़े कई सूत्र ये बता रहे हैं कि पहले से मौजूद राम लला की मूर्ति को मंदिर में ही जगह दी जाएगी। कई सूत्र ये बता रहे हैं कि फिलहाल पुरानी मूर्ति को भी गर्भगृह में नए मूर्ति के साथ रखा जाएगा। साथ ही ये भी कहा जा रहा है कि इस नई मूर्ति को अचल मूर्ति की संज्ञा दी जाएगी, और पुरानी मूर्ति की पहचान उत्सव मूर्ति के रूप में होगी। हालांकि हम यहां साफ करना चाहते हैं कि इसे लेकर मंदिर ट्रस्ट की ओर से आधिकारिक तौर पर कुछ नहीं कहा गया है। तो चलिए हम आपको रामलला की पुरानी मूर्ति का वो इतिहास बताते हैं जो न जाने बीते सालों में किन-किन संघर्षों से गुज़रा, जिसने न जाने कितनी यातनाएं सही, जिसने न जानें अपनी आंखों से कैसे-कैसे दृश्य देखे और जिस मूर्ति पर बन गया देश का सबसे बड़ा इतिहास।

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रामलला की वर्तमान प्रतिमा का दर्शन लोग पिछले 74 वर्षों से कर रहे हैं तो लाजमी सी बात है कि रामलला की इस पुरानी मूर्ति के साथ राम भक्तों की अपार भावनाएं जुड़ी हुई हैं। आपको बता दें कि रामलला की मूर्ति 74 साल पहले प्रकट हुई थी। 23 दिसंबर 1949 का वो दिन जब रामलला ने अपने भक्तों को पहली बार दर्शन दिया था। यह वही दिन था जब कथित बाबरी मस्जिद के अंदर रामलला की इसी मूर्ति ने भक्तों को अपने दर्शन दिए थे। इससे पहले बाहर चबूतरे पर पूजा-पाठ होता था। इसके बाद वहां हजारों लोग जुटे थे और ‘भए प्रकट कृपाला, दीन दयाला, कौशल्या हितकारी’ से पूरी अयोध्या गूँज उठी थी। इस घटना को ‘रामलला का प्राकट्य’ के नाम से जाना गया। 29 दिसंबर को बाबरी ढाँचे को विवादित संपत्ति का हिस्सा मान कर प्रशासन ने ताला जड़ दिया। जिस चबूतरे का यहां हमने जिक्र किया, वहां सैकड़ों वर्षों से भगवान श्रीराम की पूजा होती आ रही थी।

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1951 में श्रद्धालुओं की याचिका पर अदालत ने फैसला सुनाया कि मुकदमे की समाप्ति तक वहां से मूर्तियों को न हटाया जाए। मुस्लिमों ने तब आरोप लगाया था कि किसी ने अंदर घुस कर चुपचाप मूर्ति रख दी है। जहाँ मूर्ति प्रकट हुई थी, वो बाबरी ढाँचे, जिसे मुस्लिम मस्जिद कहते थे, उसके मुख्य गुंबद के नीचे वाला कमरा था। इस पूरे विवाद को सुलझने में पूरे 74 साल लग गए और कलयुग की यह अयोध्या त्रेता युग की उस अयोध्या की याद दिलाने लगी जिस अयोध्या ने प्रभू राम का चौदह वर्षों तक इंतज़ार किया था। तो देखा आपने ये थी रामलला के पुरानी मूर्ति की लंबी यात्रा। ऐसे में भक्तों के मन में रामलला की इस पुरानी मूर्ति के रखरखाव को लेकर प्रश्न तो उठेंगे ही ?

Rohit Mishra

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