Bharat Ratna Award :हिंदुस्तान की सियासत के शिखर पुरुष, बीजेपी को सर्वोच्च स्थान पर पहुंचाने वाले और भारतीय जनता पार्टी के वो नेता जिन्होंने पार्टी के लिए सबकुछ दिया। जी हां बात कर रहे हैं पूर्व उप-प्रधानमंत्री लालकृष्ण की, जिनके लिए उनके शिष्य नरेंद्र मोदी की ओर से भारत रत्न की घोषणा कर दी।
दरअसल ये पुरस्कार महज सम्मान नहीं है, बल्कि ये एक शिष्य का अपने गुरु के प्रति समर्पण और गुरुदक्षिणा भी है। 96 साल के लालकृष्ण आडवाणी को भारत रत्न की घोषणा खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने की है। पहले सोशल मीडिया पर और फिर ओडिशा की रैली में की। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी आडवाणी की तारीफ की।
यकीनन ये सम्मान सिर्फ लालकृष्ण आडवाणी का नहीं बल्कि बीजेपी और भारत वर्ष के उन करोड़ों लोगों का सम्मान है। जिन्होंने देश में बीजेपी सरकार की उम्मीद लगाई और स्वतंत्र भारत का सबसे शक्तिशाली प्रधानमंत्री दिया।
बीजेपी के दिग्गज नेताओं ने खुशी जताई तो वहीं दूसरी ओर लालकृष्ण आडवाणी की बेटी प्रतिभा आडवाणी ने इस फैसले पर खुशी जताई।प्रतिभा आडवाणी ने कहा कि हम लोग बहुत खुश हैं कि उनको ये सम्मान दिया गया, क्योंकि मैंने देखा है कि दादा जब तिरेंगे को सलाम करते हैं तो आंसू होते हैं उनकी आंखों में तो मुझे बहुत खुशी होती है और मैं कहती हूं कि वो ये सम्मान डिजर्व करते हैं।
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे तक ने इस फैसले का स्वागत किया और बीजेपी के लौह पुरुष को बधाई दी।
लेकिन देश में विपक्ष के कुछ दलों को आडवाणी का सम्मान हजम नहीं हुआ। AIMIM अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने बेहिचक ऐलान कर डाला कि ये फैसला अवॉर्ड की तौहीन है और भारत रत्न के रुतबे के खिलाफ है।ओवैसी के मुताबिक “लाल कृष्ण आडवाणी की रथयात्रा जहां जहां से गुजरी थी, वहां वहां दंगे हुए और लोगों की मौत हुई।
समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव ने भी छूटते ही कहा कि ये सब वोट बैंक के लिए किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि ये भारत रत्न अपने वोट को बांधने के लिए दिया जा रहा है ये सम्मान में नहीं दिया जा रहा है। जमात ए इस्लामी हिंद अखिलेश यादव से दो कदम आगे बढ़ा और इस फैसले पर आपत्ति जताई। जमात-ए-इस्लामी हिंद के सचिव मोहतसिम खान ने कहा कि मौजूदा सरकार के रवैये के ऐन मुताबिक है कि वो बाबरी मस्जिद को तोड़ने वालों को इनाम दे। लालकृष्ण आडवाणी के लिए भारत रत्न सम्मान पर टिप्पणी BRS ने भी की। लेकिन BRS नेता के. कविता का लहजा थोड़ा अलग था।
दरअसल लालकृष्ण आडवाणी को भारत रत्न के विरोध में जो भी आवाज़ सुनाई दे रही है। वो किनकी है और उनका इतिहास क्या है… इसपर गौर करना जरूरी है। दरअसल, ये वो लोग हैं जिनपर हमेशा अल्पसंख्यकों की तुष्टीकरण वाली सियासत का आरोप लगता रहा है। लालकृष्ण आडवाणी के विरोध करने वाले इस बात को दरकिनार नहीं कर सकते कि बीजेपी के लौह पुरुष ने उस वक्त सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का झंडा बुलंद किया। जब तमाम दल अल्पसंख्यकों के दम पर सरकार चाहते और बनाते थे। रथ पर सवार होने का साहस तो किसी दूसरे दल में शायद था ही नहीं।